महाभारत: अश्वथामा के आज भी जिंदा होने के यहां मिलते हैं सबूत, लोगों से घाव पर लगाने के लिए मांगते हैं हल्दी-तेल
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: July 1, 2019 03:13 PM2019-07-01T15:13:25+5:302019-07-01T15:48:50+5:30
मध्य प्रदेश के बुरहानपुर में स्थित असीरगढ़ के किले का संबंध महाभारत काल से बताया जाता है। यह जगह खांडव जिले के पास है जो उस समय खांडव क्षेत्र के नाम से जाना जाता था।
महाभारत से जुड़ी वैसे तो कई कहानियां हैं जो बेहद दिलचस्प हैं लेकिन इन सभी में सबसे हैरान करने वाली कहानी अश्वथामा की है। गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वथामा के बारे में ऐसी मान्यता है कि श्रीकृष्ण के एक शाप की वजह से वह आज भी पृथ्वी पर भटक रहे हैं।
यही नहीं, कलियुग में कई लोगों ने अश्वथामा के देखे जाने के दावे तक किये हैं। मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले में स्थित असीरगढ़ किले के बारे में तो ये तक कहा जाता है कि यहां हर रोज भगवान शिव के मंदिर में आज भी अश्वथामा पूजा करने आते हैं। आइए, हम आपको बताते हैं अश्वथामा को मिले शाप और असीरगढ़ किले से जुड़ी कहानी के बारे में....
गुरु द्रोण के मारे जाने से हताश हुए थे अश्वथामा
महाभारत के युद्ध में भीष्म पितामह के बाद गुरु द्रोणाचार्य जब कौरवों के सेनापति बने तो उन्होंने पांडवों की सेना में बड़ी तबाही मचाई। पांडवों को गुरु द्रोण से निपटने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था। ऐसे में कृष्ण ने युधिष्ठिर को कूटनीति से काम लेने का सुझाव दिया। एक दिन युद्ध के बीच पांडवों की ओर से यह बात फैला दी गई कि अश्वथामा मारा गया। गुरु द्रोण अपने पुत्र से बहुत प्रेम करते थे। उन्हें इस सूचना पर विश्वास नहीं हुआ और उन्होंने इस बारे में युधिष्ठिर से पूछने की ठानी जो कभी झूठ नहीं बोलते थे।
श्रीकृष्ण इस बात को जानते थे कि द्रोण जरूर युधिष्ठिर से इस बारे में पूछताछ करेंगे। इस लिए उन्होंने यह योजना बनाई थी कि अश्वथामा के मारे जाने की खबर फैलाने से पहले भीम दरअसल अश्वथामा नाम के एक हाथी को मारेंगे। भीम ने ऐसा ही किया था।
ऐसे में जब द्रोण ने आकर युधिष्ठिर से सवाल किया, 'क्या सच में अश्वथामा मारा गया', तो युधिष्ठिर ने कहा 'हां अश्वथामा मारा गया लेकिन नहीं पता कि वह मानव है या हाथी।' गुरु द्रोण ने युधिष्ठिर का पहला वाक्य तो सुन लिया लेकिन दूसरी बात नहीं सुन सके। इसके बाद गुरु द्रोण वियोग में अपना हथियार आदि जमीन पर रखकर बैठ गये। यही पांडवों के लिए मौका था और दृष्टधुम्न ने गुरु द्रोण का सिर काटकर जमीन पर गिरा दिया।
श्रीकृष्ण ने दिया शाप
महाभारत के युद्ध में जब दुर्योधन मौत की कगार पर था तो उसने अश्वथामा को अपना आखिरी सेनापति बनाया। अश्वथामा ने इसके बाद धोखेबाजी से पांडवों के शिविर में रात के अंधेरे में प्रवेश किया और पांडवों के पांच पुत्रों के सिर काट कर ले आये। अश्वथामा को लगा कि उसने पांडवों को मारा है। हालांकि, उसे गलती का अहसास हुआ लेकिन द्रोण के मृत्यु से विचलित अश्वथामा ने अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे शिशु को भी मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चला दिया और जाकर छिप गया।
श्रीकृष्ण ने इसके बाद अश्वथामा को खोजा और उसके माथे में छिपे मणी को निकालने के लिए उसे मजबूर किया। इसकी मदद से श्रीकृष्ण ने अभिमन्यु के संतान की रक्षा की। साथ ही श्रीकृष्ण ने अश्वथामा को इस पाप के लिए युगों-युगों तक पृथ्वी पर भटकते रहने का शाप भी दे दिया।
असीरगढ़ किले में आज भी पूजा करता है अश्वथामा
मध्य प्रदेश के बुरहानपुर में स्थित असीरगढ़ के किले का संबंध महाभारत काल से बताया जाता है। यह जगह खांडव जिले के पास है जो उस समय खांडव क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। इसी किले में स्थित शिव मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां हर रोज अश्वथामा पूजा करने आता है। इस शिवमंदिर में रोज तड़के ताजे फूल, जल और रोली चढ़े हुए मिलते हैं। इस शिव मंदिर को गुप्तेश्वर महादेव मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
अश्वथामा करता है हल्दी और तेल की मांग
यहां के कई स्थानीय और बुजुर्ग लोग बताते हैं कि उनसे अश्वथामा ने घाव पर लगाने के लिए हल्दी और तेल की मांग की। कई बुजुर्ग ये तक कहते हैं कि जो भी अश्वथामा को देख लेता है उसका मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है।