धृतराष्ट्र के गांधारी से 100 पुत्र और दुशाला नाम की पुत्री थी। दुर्योधन इन सभी में सबसे बड़ा था। वहीं पांडव केवल पांच भाई थे। इसके बावजूद वे महाभारत की सबसे भीषण लड़ाई में जीत हासिल करने में कामयाब रहे। दुर्योधन और माम शकुनि के षडयंत्रों के कारण ही पांडवों को अपनी शुरुआती जीवन का ज्यादातर समय जंगलों में भटककर गुजारना पड़ा।
पांडव ही नहीं बल्कि उनकी मां कुंती को भी एक समय दुर्योधन के षडयंत्र के कारण वन में रहना पड़ा। यहां तक कि बाद में जब द्रौपदी का आगमन पांडवों के जीवन में हुआ तो उन्हें भी कष्ट झेलने पड़े और अपशब्द भी सहने पड़े।
पांडव इसके बावजूद धर्म का साथ देने से कभी पीछे नहीं हटे और आखिरकार उनकी जीत हुई। वैसे, क्या आपको मालूम है कि असल में धृतराष्ट्र के 100 नहीं बल्कि 101 पुत्र थे। धृतराष्ट्र का ये 101वां पुत्र ही था जिसने महाभारत की लड़ाई में पांडवों के पक्ष में युद्ध लड़ा।
धृतराष्ट्र के 101वें पुत्र युयुत्सु जिसने पांडवों के लिए लड़ा युद्ध
महाभारत की कथा के अनुसार युयुत्सु का जन्म सौवाली के गर्भ से हुआ था। सौवाली क्षत्रीय नहीं बल्कि वैश्य जाति से ताल्लुक रखती थी। वह उन दिनों में धृतराष्ट्र की देखरेख में जुटी थी जब गांधारी गर्भवती थीं और दो साल होने के बावजूद किसी बच्चे को जन्म नहीं दे सकी थीं। कथा के अनुसार इसी दौरान धृतराष्ट्र के संबंध सौवाली से हुए और युयुत्सु का जन्म हुआ। युयुत्सु का जन्म भी दुर्योधन के जन्म के साथ ही हुआ था।
युयुत्सु ने पांडव के लिए लड़ा युद्ध
युयुत्सु भले ही धृतराष्ट्र के पुत्र थे और कौरवों के साथ उनका भी पालन-पोषण हुआ लेकिन वैचारिक तौर पर वे हमेशा दुर्योधन से अलग खड़े रहे। उन्होंने बचपन में कई बार तो पांडवों को दुर्योधन की साजिश से भी आगाह किया जिसमें भीम को जहर से बचाना भी शामिल है। इसके अलावा भी उन्होंने कई बार पांडव के लिए आवाज उठाई।
युयुत्सु ने द्रौपदी के चीरहरण के समय भी दुर्योधन का विरोध किया था। युद्ध शुरू होने से पहले जब पाला बदलने का विकल्प आया तो युयुत्सु ने पांडवों के शिविर में शामिल होना बेहतर समझा। इस तरह धृतराष्ट्र का एक पुत्र महाभारत में पांडवों के लिए लड़ा।