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Durga Puja 2020: कोलकाता के दुर्गा प्रतिमा बनाने वाले कारीगरों का छलका दर्द, कोरोना महामारी की वजह से हो रहा है भारी नुकसान

By मेघना वर्मा | Updated: May 15, 2020 09:49 IST

इस साल शारदीय नवरात्रि 17 अक्टूबर से लग रही है। वहीं दूर्गा पूजा 22 अक्टूबर से शुरू होकर 26 अक्टूबर तक चलने वाला है।

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ठळक मुद्देदुर्गा पूजा दरअसल पश्चिम बंगाल का मुख्य त्योहार है लेकिन इसे पूरे भारत में धूमधाम से मनाया जाता है।माता दुर्गा की मूर्ति बनाने को लेकर भी कुछ खास परंपरा हैं जिनका पालन किया जाता है।

Durga Puja 2020: देश के कुछ प्रमुख त्योहारों में दुर्गा पूजा का अत्यधिक महत्व होता है। शारदीय नवरात्रि पर लगने वाले दुर्गा पूजा का रंग पूरे देश में देखने को मिलता है। माना जाता है कि माता दुर्गा इन 9 से 10 दिनों तक चलने वाले त्योहार के दौरान धरती पर मौजूद होती हैं। 

इस साल शारदीय नवरात्रि 17 अक्टूबर से लग रही है। वहीं दूर्गा पूजा 22 अक्टूबर से शुरू होकर 26 अक्टूबर तक चलने वाला है। ऐसे में दुर्गा पूजा की तैयारियां होनी शुरू हो गई है। कोलकाता में देवी की नव मूर्ति का निर्माण भी शुरू हो चुका है। 

दुर्गा पूजा दरअसल पश्चिम बंगाल का मुख्य त्योहार है लेकिन इसे पूरे भारत में धूमधाम से मनाया जाता है। खासकर उत्तर भारत में इस दौरान शहरों-कस्बों में चौक-चौराहों पर पंडाल बनाये जाते हैं और माता दुर्गा की मूर्ति स्थापित कर उनकी पूजा की जाती है।

कारीगरों ने बताया अपना दर्द

न्यूज एजेंसी एएन आई की रिपोर्ट के अनुसार मां दुर्गा की मूर्ति बनाने वाले पश्चिम बंगाल के कौमारतुली के कारीगरों ने बताया है कि इस साल उन्हें भारी नुकसान पहुंच रहा है। लॉकडाउन के चलते मां दुर्गा की प्रतिमा को बनाने की संख्या लगभग आधी रह गई है। 

दुर्गा मां की प्रतिमा बनाने वाले सुबोल पाल ने एजेंसी को बताया कि इस बार रॉ मटेरियल के साथ लेबर की भी बहुत कमी है। दुर्गा पूजा पर विदेशों से भी मुर्तियां बनाने के ऑर्डर आया करते थे। मगर इस बार कोरोना महामारी के चलते अभी तक वहां से किसी भी तरह की बात नहीं हुई है। अभी तक राज्य में ही दुर्गा पूजा के भव्य रूप में मनाये जाने को लेकर कुछ कहा नहीं जा सकता। हम सभी चिंतत हैं।

माता दुर्गा की मूर्ति बनाने को लेकर भी कुछ खास परंपरा हैं जिनका पालन किया जाता है। इसी में से एक ये है कि जिस मिट्टी से माता दुर्गा की मूर्ति बनाई जाती है उसमें वेश्यालय से लाई गई मिट्टी को जरूर मिलाया जाता है। इसके बिना मूर्ति अधूरी मानी जाती है। 

कई जानकार यह भी बताते हैं कि पश्चिम बंगाल में सामाजिक सुधार को लेकर पूर्व में कई आंदोलन चले हैं। इसी दौरान ये बात प्रचलित हुई कि नारी शक्ति का स्वरूप है फिर वह चाहे वेश्या ही क्यों न हो। वेश्यालय से मिट्टी लाने की परंपरा को कई लोग इस दृष्टि से भी देखते हैं। 

टॅग्स :दुर्गा पूजामां दुर्गा
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