दो पुत्रों के अलावा शिव-पार्वती की एक पुत्री भी हैं, जानें उनके बारे में

By धीरज पाल | Published: March 9, 2018 07:47 AM2018-03-09T07:47:45+5:302018-03-09T07:47:45+5:30

एक बार माता को अकेलापन महसूस होने लगा इसलिए अपना अकेलापन दूर करने के लिए उन्होंने एक पुत्री की इच्छा व्यक्त की।

lord shiva and devi parvati 3 sons and also a daughter sundari | दो पुत्रों के अलावा शिव-पार्वती की एक पुत्री भी हैं, जानें उनके बारे में

दो पुत्रों के अलावा शिव-पार्वती की एक पुत्री भी हैं, जानें उनके बारे में

बहुत से लोगों को मालूम होगा कि भगवान शिव और माता पार्वती की दो संताने हैं लेकिन ये सच नहीं है। कार्तिकेय और गणेश के अलावा उनकी एक पुत्री भी थी। यानी उनकी तीन संताने थी। जिनके बारे में बहुत कम लोगों को मालूम होगा। भगवान शिव की पुत्री का जिक्र पद्मपुराण में किया गया है। इनका नाम अशोक सुंदरी थी। आज हम आपको भगवान शिव और माता पार्वती की पुत्री के बारे में बताएंगे। जिनके पीछे एक रोचक किंवदंती है। 

अशोक सुंदरी का जन्म

पौराणिक कथा के मुताबिक भगवान शिव व पार्वती अशोक सुंदरी एक देव कन्या थी जो बेहद ही सुंदर थी। जैसा कि शिव और पार्वती की इस पुत्री का वर्णन पद्मपुराण में है। पुराण के मुताबिक एक दिन माता पार्वती ने भगवान शिव से संसार के सबसे सुंदर उद्यान में घूमने का आग्रह किया। उनकी इच्छानुसार भगवान शिव ने उन्हें नंदनवन ले गए जहाँ माता पार्वती को कल्पवृक्ष नामक एक पेड़ से मन को भा गया। कल्पवृक्ष मनोकामनाएं पूर्ण करने वाला वृक्ष था अतः माता उसे अपने साथ कैलाश ले आयी और एक उद्यान में स्थापित किया।

एक दिन माता अकेले ही अपने उद्यान में विचरण कर रही थी और भगवान शिव लीन थे। माता को अकेलापन महसूस होने लगा इसलिए अपना अकेलापन दूर करने के लिए उन्होंने एक पुत्री की इच्छा व्यक्त की। तभी माता को कल्पवृक्ष का ध्यान आया जिसके पश्चात वह उसके पास गयीं और एक पुत्री की कामना की। चूँकि कल्पवृक्ष मनोकामना पूर्ति करने वाला वृक्ष था इसलिए उसने तुरंत ही माता की इच्छा पूरी कर दी जिसके फलस्वरूप उन्हें एक सुन्दर कन्या मिली जिसका नाम उन्होंने अशोक सुंदरी रखा। उसे सुंदरी इसलिए कहा गया क्योंकि वह बेहद खूबसूरत थी।

माता पार्वती ने अशोक सुंदरी को दिया था वरदान

माता पार्वती अपनी पुत्री को प्राप्त कर बहुत ही प्रसन्न थी इसलिए माता ने अशोक सुंदरी को यह वरदान दिया था कि उसका विवाह देवराज इंद्र जितने शक्तिशाली युवक से होगा। ऐसा माना जाता है कि अशोक सुंदरी का विवाह चंद्रवंशीय ययाति के पौत्र नहुष के साथ होना तय था। एक बार अशोक सुंदरी अपनी सखियों के संग नंदनवन में विचरण कर रहीं थीं तभी वहां हुंड नामक एक राक्षस आया। वह अशोक सुंदरी की सुन्दरता से इतना मोहित हो गया कि उससे विवाह करने का प्रस्ताव रख दिया।

अशोक सुंदरी ने विवाह से मना कर दिया। यह सुनकर हुंड क्रोधित हो उठा और उसने कहा कि वह नहुष का वध करके उससे विवाह करेगा। राक्षस की दृढ़ता देखकर अशोक सुंदरी ने उसे श्राप दिया कि उसकी मृत्यु उसके पति के हाथों ही होगी।

तब उस दुष्ट राक्षस ने नहुष को ढूंढ निकाला और उसका अपहरण कर लिया। जिस समय हुंड ने नहुष को अगवा किया था उस वक़्त वह बालक थे। राक्षस की एक दासी ने किसी तरह राजकुमार को बचाया और ऋषि विशिष्ठ के आश्रम ले आयी जहां उनका पालन पोषण हुआ ।

जब राजकुमार बड़े हुए तब उन्होंने हुंड का वध कर दिया जिसके पश्चात माता पार्वती और भोलेनाथ के आशीर्वाद से उनका विवाह अशोक सुंदरी के साथ संपन्न हुआ। बाद में अशोक सुंदरी को ययाति जैसा वीर पुत्र और सौ रूपवान कन्याओ की प्राप्ति हुई।

इंद्र के  घमंड के कारण उसे श्राप मिला तथा जिससे उसका पतन हुआ। उसके अभाव में नहूष को आस्थायी रूप से उसकी गद्दी दे दी गयी थी जिसे बाद में इंद्रा ने पुनः ग्रहण कर लिया था।

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