पाकिस्तान के करतारपुर गुरुद्वारा से जुड़ी 8 अनजानी बातें, भारत-पाक बंटवारे के बाद हो गया था ऐसा हाल
By गुलनीत कौर | Published: November 26, 2018 12:35 PM2018-11-26T12:35:47+5:302018-11-26T14:16:08+5:30
Kartarpur Sahib Gurdwara History, Unknown facts, Kartarpur Corridor: सिख इतिहास के मुताबिक जीवनभर का ज्ञान बटोरने के बाद गुरु नानक करतारपुर के इसी स्थान पर आए और जीवन के अंतिम 18 वर्ष उन्होंने यहीं बिताए
भारत-पाकिस्तान बॉर्डर के नजदीक स्थित गुरुद्वारा दरबार साहिब, करतारपुर (पाकिस्तान) इस समय मीडिया की सुर्खियों में बना हुआ है। यह गुरुद्वारा सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी से संबंधित है। मीडिया ख़बरों के मुताबिक इस साल गुरु नानक की 550वीं जयंती को मद्देनजर रखते हुए कांग्रेस पंजाब के नेता नवजोत सिंह सिद्धू द्वारा पाकिस्तान सरकार के सामने भारत से एक कॉरिडोर बनाए जाने की मांग रखी गई।
यह कॉरिडोर सीधा पाकिस्तान के इस गुरुद्वारा तक जाएगा जिस बदौलत सिख श्रद्धालु इस धार्मिक स्थल के दर्शन कर सकते हैं। बहरहाल भारतीय और पाकिस्तानी दोनों सरकारों की ओर से कॉरिडोर को मंजूरी मिली है। कॉरिडोर बन जाने के बाद भारत से बिना वीजा के ही सिख श्रद्धालु पाकिस्तान दाखिल हो सकते हैं।
इस प्रोजेक्ट के तहत भारत में पंजाब के गुरदासपुर से एक ब्रिज बनाया जाएगा। पाकिस्तान जाने वाले सिख श्रद्धालु इस ब्रिज से सीधा गुरुद्वारा साबित पहुंचेगे। उन्हें गुरुद्वारा दरबार साहिब के अलावा पाकिस्तान में और कहीं भी जाने की अनुमति नहीं होगी।
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गुरुद्वारा दरबार साहिब करतारपुर इतिहास, रोचक तथ्य:
1. गुरुद्वारा दरबार साहिब, करतारपुर सिख धर्म का वह पवित्र धार्मिक स्थल है जहां इस धर्म के संस्थापक श्री गुरु नानक देव जी एन अपनी अंतिम सांसें ली थीं
2. सिख इतिहास के मुताबिक जीवनभर का ज्ञान बटोरने के बाद गुरु नानक करतारपुर के इसी स्थान पर आए और जीवन के अंतिम 18 वर्ष उन्होंने यहीं बिताए
3. इसी जगह पर उन्होंने लोगों को अपने साथ जोड़ा और उन्हें एकेश्वर्वाद का महत्व समझाया। उन्होंने यह उपदेश दिया कि पूरी दुनिया का कर्ता-धर्ता केवल एक अकाल पुरख है। वह अकाल पुरख निरंकार (निर-आकार) है
4. गुरु नानक ने इसी स्थान पर अपनी रचनाओं और उपदेशों को कुछ पन्नों की एक पोथी का रूप दिया और उसे अगले गुरु के हाथों सौंप दिया था। इन पन्नों में आगे के गुरुओं द्वारा और भी रचनाएं जुड़ीं और अंत में सिखों के धार्मिक ग्रन्थ की रचना की गई
5. गुरु नानक ने 22 सितंबर, 1539 को इस स्थान पर अपनी अंतिम सांसें लीं। कहते हैं कि उनकी मृत्यु के बाद किसी को भी उनका शव नहीं मिला। शव की बजाय कुछ फूल हासिल हुए जिन्हें हिन्दुओं ने जला दिया और मुस्लिम भाईयों ने दफन कर दिया
6. भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद लाखों सिख पाकिस्तान से भारत आ गए, तब यह गुरुद्वारा वीरान पड़ गया। मगर कुछ सालों बाद नानक के मुस्लिम श्रद्धालुओं ने इसे संभाला। वे यहां दर्शन के लिए आने लगे और इसकी देख-रेख करने लगे। पाकिस्तान के सिखों के लिए गुरुद्वारा दरबार साहिब, करतारपुर उनके प्रथम गुरु का धार्मिक स्थल है तो वहीं यहां के मुस्लिमों के लिए यह उनके पीर की जगह है
7. वर्षों बाद पाकिस्तान सरकार की भी इस जगह पर नजर पड़ी। गुरुद्वारा दरबार साहिब के नवीनीकरण पर काम किया गया। मई, 2017 में एक अमेरिकी सिख संगठन की मदद से गुरूद्वारे के आसपास बड़ी गिनती में पेड़ लगाने का काम भी किया गया
8. यह गुरुद्वारा भारत में पाकिस्तानी सीमा से 100 मीटर दूरी पर स्थित डेरा बाबा नानक से दूरबीन की सहायता से दिखाई देता है। दूरबीन से गुरुद्वारा दरबार साहिब के दर्शन का यह काम CRPF की निगरानी में किया जाता है