Kanakadhara Stotram: कनकधारा स्तोत्र से मिलता है धन-ऐश्वर्य, होता है शत्रुओं का नाश, करें हर शुक्रवार को इसका पाठ

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: March 15, 2024 06:54 AM2024-03-15T06:54:25+5:302024-03-15T06:54:25+5:30

शुभ कर्मों का फल देने वाली माता लक्ष्मी कृपा और कामना के साथ कनकधारा स्तोत्र का जाप मनुष्य के जीवन में खुशियां लाता है।

Kanakadhara Stotram: Kanakadhara Stotram gives wealth and prosperity, destroys enemies, recite it every Friday | Kanakadhara Stotram: कनकधारा स्तोत्र से मिलता है धन-ऐश्वर्य, होता है शत्रुओं का नाश, करें हर शुक्रवार को इसका पाठ

फाइल फोटो

Highlightsधन की देवी लक्ष्मी के जप और मनन से मनुष्य को ऐश्वर्य, वैभव और सुकीर्ति की प्राप्ति होती हैकनकधारा स्तोत्र के जाप से मनुष्य के जीवन में खुशियां आती हैं और अत्यंत सौभाग्य की प्राप्ति होती हैमां लक्ष्मी की प्रेरणा से आदि गुरु शंकराचार्य ने कनकधारा स्त्रोत का सर्वप्रथम पाठ किया था

Kanakadhara Stotram: लक्ष्मी धन की देवी हैं। इनके जप और मनन से मनुष्य को ऐश्वर्य, वैभव और सुकीर्ति की प्राप्ति होती है। हिंदू शास्त्रों में कई जगहों पर इस बात का उल्लेख मिलता है कि, जिस भी घर में मां लक्ष्मी का वास होत है, वहां पर हर तरह की सुख सुविधाएं सदैव मौजूद रहती हैं।

कहा जाता है कि मां लक्ष्मी की कृपा जिस भी घर पर होती है, वहां मां अन्नपूर्णा समेत सभी देवताओं का वास होता है। ये मां लक्ष्मी ही हैं, जिनके आशीर्वाद से मनुष्य के घर में धन-धान्य, समृद्धि और पुत्र सुख बना रहता है। 

भगवान विष्णु की अर्धांगिनि माता लक्ष्मी की कृपा से मनुष्य के जीवन के सारे विषाद दूर होते हैं। शुभ कर्मों का फल देने वाली माता लक्ष्मी कृपा और कामना के साथ कनकधारा स्तोत्र का जाप मनुष्य के जीवन में खुशियां लाता है और उसे अत्यंत सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

कनकधारा स्त्रोत की रचना किसने की

मां लक्ष्मी की प्रेरणा से आदि गुरु शंकराचार्य ने कनकधारा स्त्रोत का सर्वप्रथम पाठ किया। कहा जाता है कि मां लक्ष्मी की कृपा से आदि शंकराचार्य ने रचना की। किंवदंतियों के मुताबिक मां लक्ष्मी के इस दिव्य स्तोत्र की रचना के पीछे आदि शंकराचार्य से जुड़ी एक कथा बेहद प्रचलित है।

पौराणिक मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि एक बार अद्वैत मत के जनक आदि शंकराचार्य भिक्षाटन के लिए अपनी कुटिया से निकले थे। मार्ग में 'मातु भिक्षाम देहि' का उद्गार मुख से करते हुए शंकराचार्य इधर-उधर भटक रहे थे।

उसी समय उनकी दृष्टि एक महिला पर गई, जो अपने बालक के साथ क्षुधा तृप्ति के लिए नगरवासियों से भिक्षा मांग रही थी। शंकराचार्य का उस महिला और उसके बालक के प्रति अजीब सा खिंचाव महसूस हुआ। वह स्त्री बेहद निर्धन थी, इस कारण से उसके पास बालक को भोजन कराने की क्षमता नहीं थी। महिला को भिक्षा मांगने पर स्वयं के प्रति लज्जा, घृणा और दुर्भाग्य पर बहुत क्रोध आ रहा था।

आदि शंकराचार्य उस स्त्री की व्यथा समझते हुए भी उसके पास गये और उन्होंने अपना दानपात्र सामने रखकर उससे भिक्षा की मांग की। उस स्त्री ने एकादशी का व्रत रखा हुआ था और उसके पास व्रत खोलने के लिए केवल वही एक बेर बचा हुआ था लेकिन उसने व्रत की परवाह न करते हुए बेर को शंकराचार्य के दानपात्र में डाल दिया।

वहां से निकलते हुए शंकराचर्य ने लक्ष्मी जी के उसी कनकधारा मंत्र का जाप किया। जिसके बाद अचानक वहां बेरों की बरसात सी होने लगी और देखते ही देखते उस स्त्री के घर का आंगन बेरों से भर गया।

कनक धारा स्तोत्र के पाठ की विधि

इस स्तोत्र का पाठ शुक्रवार के दिन करना शुभ माना जाता है।

शुक्र देव वैभव, सुख और संपदा के कारक ग्रह माने जाते हैं।

कनकधारा स्तोत्र के पाठ से पहले घर में कनकधारा यंत्र की स्थापना करें।

शुक्रवार के दिन से गंगाजल से शुद्ध करने के बाद यंत्र को पूजा स्थल में स्थापित करना चाहिए।

इसके बाद शुद्ध मन से इस स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।

पाठ करने के उपरांत माता लक्ष्मी का ध्यान करना चाहिए और उनसे मनोकामना कहनी चाहिए। 

कनकधारा स्तोत्र

अंगहरे पुलकभूषण माश्रयन्ती भृगांगनैव मुकुलाभरणं तमालम।

अंगीकृताखिल विभूतिरपांगलीला मांगल्यदास्तु मम मंगलदेवताया:।1।

मुग्ध्या मुहुर्विदधती वदनै मुरारै: प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि।

माला दृशोर्मधुकर विमहोत्पले या सा मै श्रियं दिशतु सागर सम्भवाया:।2।

विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षमानन्द हेतु रधिकं मधुविद्विषोपि।

ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्द्धमिन्दोवरोदर सहोदरमिन्दिराय:।3।

आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दमानन्दकन्दम निमेषमनंगतन्त्रम्।

आकेकर स्थित कनी निकपक्ष्म नेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजंगरायांगनाया:।4।

बाह्यन्तरे मधुजित: श्रितकौस्तुभै या हारावलीव हरि‍नीलमयी विभाति।

कामप्रदा भगवतो पि कटाक्षमाला कल्याण भावहतु मे कमलालयाया:।5।

कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेर्धाराधरे स्फुरति या तडिदंगनेव्।

मातु: समस्त जगतां महनीय मूर्तिभद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनाया:।6।

प्राप्तं पदं प्रथमत: किल यत्प्रभावान्मांगल्य भाजि: मधुमायनि मन्मथेन।

मध्यापतेत दिह मन्थर मीक्षणार्द्ध मन्दालसं च मकरालयकन्यकाया:।7।

दद्याद दयानुपवनो द्रविणाम्बुधाराम स्मिभकिंचन विहंग शिशौ विषण्ण।

दुष्कर्मधर्ममपनीय चिराय दूरं नारायण प्रणयिनी नयनाम्बुवाह:।8।

इष्टा विशिष्टमतयो पि यथा ययार्द्रदृष्टया त्रिविष्टपपदं सुलभं लभंते।

दृष्टि: प्रहूष्टकमलोदर दीप्ति रिष्टां पुष्टि कृषीष्ट मम पुष्कर विष्टराया:।9।

गीर्देवतैति गरुड़ध्वज भामिनीति शाकम्भरीति शशिशेखर वल्लभेति।

सृष्टि स्थिति प्रलय केलिषु संस्थितायै तस्यै ‍नमस्त्रि भुवनैक गुरोस्तरूण्यै ।10।

श्रुत्यै नमोस्तु शुभकर्मफल प्रसूत्यै रत्यै नमोस्तु रमणीय गुणार्णवायै।

शक्तयै नमोस्तु शतपात्र निकेतानायै पुष्टयै नमोस्तु पुरूषोत्तम वल्लभायै।11।

नमोस्तु नालीक निभाननायै नमोस्तु दुग्धौदधि जन्म भूत्यै ।

नमोस्तु सोमामृत सोदरायै नमोस्तु नारायण वल्लभायै।12।

सम्पतकराणि सकलेन्द्रिय नन्दानि साम्राज्यदान विभवानि सरोरूहाक्षि।

त्व द्वंदनानि दुरिता हरणाद्यतानि मामेव मातर निशं कलयन्तु नान्यम्।13।

यत्कटाक्षसमुपासना विधि: सेवकस्य कलार्थ सम्पद:।

संतनोति वचनांगमानसंसत्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे।14।

सरसिजनिलये सरोज हस्ते धवलमांशुकगन्धमाल्यशोभे।

भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम्।15।

दग्धिस्तिमि: कनकुंभमुखा व सृष्टिस्वर्वाहिनी विमलचारू जल प्लुतांगीम।

प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष लोकाधिनाथ गृहिणी ममृताब्धिपुत्रीम्।16।

कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं करुणापूरतरां गतैरपाड़ंगै:।

अवलोकय माम किंचनानां प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयाया : ।17।

स्तुवन्ति ये स्तुतिभिर भूमिरन्वहं त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।

गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो भवन्ति ते बुधभाविताया:।18।

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