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Kalashtami: काल भैरव अपने हाथ में क्यों पकड़े रहते हैं ब्रह्माजी का कटा हुआ सिर, पढ़िए भगवान भैरव की कथा

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: December 18, 2019 19:07 IST

कालभैरव को शिव का पांचवां अवतार माना गया है। मान्यता है कि कालभैरव भगवान शिव के क्रोध से उत्पन्न हुए थे। कालभैरव की विधिवत पूजा से व्यक्ति के मन में भय दूर होता है।

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ठळक मुद्देभगवान शिव के ही एक रूप हैं काल भैरव, शिव के क्रोध से हुए थे उत्पन्नकालाष्टमी हर माह कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को होता है, काल भैरव की इस दिन होती है विशेष पूजा

Kalashtami vrat: हिंदू धर्म में भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव की भी पूजा की विशेष मान्यता है। कहते हैं कि भगवान शिव के इस रूप से काल भी भय खाता है। यही कारण है कि हर महीने कालाष्टमी पर्व मनाया जाता है। इस दिन भगवान काल भैरव की विशेष पूजा की मान्यता है। कालाष्टमी हर माह कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस बार ये 19 दिसंबर, 2019 को है।

कालभैरव को शिव का अवतार माना गया है। काल भैरव भगवान शिव के क्रोध से उत्पन्न हुए थे।  मान्यता है कि काल भैरव की विधिवत पूजा से व्यक्ति के मन में भय दूर होता है। साथ ही काल भैरव की पूजा करने वालों से नकारात्मक शक्तियां भी दूर रहती हैं। यही नहीं, काल भैरव की पूजा से शनि और राहू जैसे ग्रह भी शांत हो जाते हैं। आखिर कौन हैं काल भैरव और क्या है उनकी कहानी जानिए...

Kaal Bhairav ki Katha: काल भैरव की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के बीच श्रेष्ठता को लेकर विवाद छिड़ गया। विवाद जब ज्यादा बढ़ गया तो सभी देवताओं और ऋषि-मुनियों को बुलाया गया और उनसे राय पूछी गई। सभी के विचार-विमर्श के बाद ये नतीजा निकला कि भगवान शिव ही श्रेष्ठ हैं। भगवान विष्णु ने तो ये बात स्वीकर कर ली लेकिन ब्रह्मा जी इससे संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने भगवान शिव का अपमान कर दिया।

यह देख शिव को क्रोध आ गया और इसी क्रोध से काल भैरव का जन्म हुआ। शिवजी के इस रूप को देख सभी घबरा गये। काल भैरव ने ब्रह्मा जी के पांच मुख में से एक मुख को काट दिया। इसके बाद से ही ब्रह्मा चार मुख वाले रह गये। हालांकि, ब्रह्मा जी का सिर काटने के कारण काल भैरव पर ब्रह्महत्या का पाप आ गया। 

काल भैरव ने इसके बाद ब्रह्माजी से अपने किये के लिए माफी मांगी। कथा के अनुसार अपने पाप के कारण भैरव को सजा स्वरूप कई दिनों तक भिखारी की तरह भी रहना पड़ा। कई वर्षों के पश्चाताप के बाद काल भैरव का दंड वाराणसी में समाप्त हुआ। इसलिए काल भैरव का एक नाम दंडपाणी भी पड़ा।   

काल भैरव के मंत्र

अतिक्रूर महाकाय कल्पान्त दहनोपम्, भैरव नमस्तुभ्यं अनुज्ञा दातुमर्हासि!!

काल भैरव के अन्य मंत्र

ऊं कालभैरवाय नम:ऊं भयहरणं च भैरव:ऊं ह्रीं बं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरूकुरू बटुकाय ह्रींऊं भ्रं कालभैरवाय फट्

टॅग्स :काल भैरव मंदिरभगवान शिवभगवान विष्णु
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