आज की भागदौड़ की जिंदगी में ये सवाल कई लोगों के मन में आता होगा कि आखिरकार भगवान का ध्यान कैसे करें। कई बार तो व्यस्तता इतनी रहती है कि खाने-पीने और दूसरे कार्यों के लिए भी समय नहीं मिल पाता है। ऐसे में आखिर अपने ईश्वर का ध्यान कैसे करना चाहिए, इसे लेकर कबीरदास से जुड़ी एक कथा बहुत प्रचलित है।
बात तब की है जब एक बार संत कबीर कपड़ा बुन रहे थे। उसी समय काशी के एक बड़े विद्वान जयंत आचार्य उनसे मिलने पहुंच गये। जयंत आचार्य कबीरदास के ज्ञान और ख्याति को सुनकर आए थे। उन्हें लगा था कि कबीर चूकी विद्वान और संत हैं तो उनकी वेष-भूषा अनूठी होगी और कुछ अलग देखने को मिलेगा।
जयंत आचार्य जब कबीरदास के पास पहुंचे तो हैरान रह गये। कबीर बेहद साधारण और आम लोगों जैसे कपड़े पहने हुए थे। कबीरदास से जब उनकी बातचीत हुई तो उन्हें ये भी पता चल गया वे बेहद साधारण हैं और दिन भर दुनियादारी के कामों में लगे रहते हैं।
आखिरकार जयंत आचार्य ने पूछ लिया- आप दिन भर कपड़ा बुनते रहते हैं, तो ईश्वर को याद कब करते हैं? ये सवाल सुनने के बाद कबीर उन्हें जयंत आचार्य को अपने साथ लेकर झोपड़ी से बाहर आए और बोले कि यहां कुछ खड़े रहिए।
इसके बाद कबीर ने उन्हें दिखाया कि एक औरत पानी का मटका सिर पर रखे हुई थी और कुएं से पानी भरकर लौट रही थी। वह प्रसन्न नजर आ रही थी और उसकी चाल में भी रफ्तार थी। साथ ही उसने मटके को पकड़ कर भी नहीं रखा था। फिर भी उसका मटका संभला हुआ था। वह कोई गीत भी गुनगुना रही थी। कबीर ने जयंत आचार्य से कहा, 'उस औरत को देखो जरा।'
कबीर ने पूछा अब आप बताओ कि उसे इस तरह तेज चलते हुए और गीत गुनगुनाते हुए मटके की याद होगी या नहीं? जयंत आचार्य ने तत्काल जवाब दिया- 'बिल्कुल याद होगी, उसे मटके की याद नहीं होती, तो अब तक तो वह नीचे गिर चुकी होती।'
कबीर बोले- ये साधारण औरत सिर पर मटका रखकर और मजे से गीत गाते हुए रास्ता पार करती है फिर भी मटका का ख्याल उसके मन में बना हुआ है। क्या अब भी आप समझते हैं कि परमात्मा के स्मरण के लिए मुझे अलग से समय निकालने की जरूरत है? कपड़ा बुनने का काम शरीर करता है, आत्मा नहीं। ये सुनकर जयंत आचार्य उनकी बातों का सार समझ गये।