Jaya Ekadashi 2020: जया एकादशी व्रत का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है। पंचांग के अनुसार हर माह के दोनों पक्षों में एक-एक एकादशी व्रत आता है। इस लिहाज से हर माह में दो एकादशी व्रत पड़ते हैं।
भगवान विष्णु को समर्पित सभी एकादशी व्रत महत्वपूर्ण हैं लेकिन कुछ एकादशी बेहद पुण्यदायक माने गये हैं। इसी में से एक जया एकादशी भी है। माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी कहा गया है। इस बार ये 5 फरवरी (बुधवार) को पड़ रहा है।
Jaya Ekadashi 2020: एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा का महत्व
हिंदू धर्म में जिस प्रकार हर प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव को पूजने की परंपरा है। ठीक वैसे ही हर एकादशी पर भगवान विष्णु की विशेष पूजा करनी चाहिए। ऐसी मान्यता है कि एकादशी का दिन भगवान विष्णु को बहुत प्रिय है। इसलिए इस दिन पूरे विधि विधान से भगवान नारायण की पूजा करनी चाहिए।
मान्यता है कि माघ के शुक्ल पक्ष की एकादशी व्रत को करने से धन की कमी से जूझ रहे लोगों को समृद्धि मिलती है। साथ ही मृत्यु के बाद भूत-पिशाच जैसी योनि भी प्राप्त नहीं होती। विष्णु सहस्त्रनाम और विष्णु सतनाम स्तोत्र का पाठ जरूर करें। साथ ही इस दिन सदाचार का पालन करें और सात्विक भोजन करें।
Jaya Ekadashi 2020: जया एकादशी व्रत कथा
जया एकादशी की कथा का वर्णन 'पद्मपुराण' में मिलता है। कथा के अनुसार एक बार देवराज इंद्र नंदन वन में अप्सराओं के साथ गंधर्व गान कर रहे थे। इस उत्सव में प्रसिद्ध गंधर्व पुष्पदंत, उनकी कन्या पुष्पवती तथा चित्रसेन और उनकी पत्नी मालिनी भी उपस्थित थे। मालिनी के पुत्र पुष्पवान और उसका पुत्र माल्यवान भी इस उत्सव में थे और गंधर्व गान में साथ दे रहे थे।
इसी दौरान माल्यवान को देख गंधर्व कन्या पुष्पवती उस पर मोहित हो गई। उसने अपने रूप और आकर्षक नृत्य से से माल्यवान को मंत्रमुग्ध कर दिया। ऐसे में दोनों का चित्त चंचल हो गया। इसके चलते उनका सुर, लय और ताल बिगड़ गया।
इसे इंद्र ने अपना अपमान समझा और क्रोधित हो गए। उन्होंने दोनों को श्राप देते हुए स्त्री-पुरुष के रूप में मृत्युलोक जाकर अपने कर्म का फल भोगते रहने को कहा। दोनों ने नीच योनि में जन्म लिया और बाद में पिशाच बन गए।
दोनों हिमालय पर्वत क्षेत्र में एक वृक्ष पर रहने लगे और अपना दुख भरा जीवन व्यतीत करने लगे। इसी तरह एक दिन माघ मास में शुक्लपक्ष एकादशी तिथि आ गयी।
दोनों ने निराहार रहकर दिन गुजारा और संध्या काल पीपल वृक्ष के नीचे अपने पाप से मुक्ति हेतु ऋषिकेश भगवान विष्णु को स्मरण करते रहे। उस रात दोनों सोए भी नहीं और इसी व्रत के प्रभाव से अगले दिन दोनों को पिशाच योनि से मुक्ति मिल गई और वे स्वर्गलोक प्रस्थान कर गए।