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पिछले जन्म के बारे में बताती है 'जाति स्मरण' साधना, क्या है ये और कैसे करते हैं इसे, जानिए

By विनीत कुमार | Updated: February 29, 2020 12:13 IST

पूर्वजन्म की बातों को याद करने के लिए 'जाति स्मरण' साधना की बात कही गई है। इस अभ्यास के लिए सर्वप्रथम मन और चित्त को शांत करना जरूरी है। इसके लिए नियमित रूप से कई दिनों तक ध्यान क्रिया किया जाता है।

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ठळक मुद्देपिछले जन्म की बातों को याद करा देती है 'जाति स्मरण' साधना'जाति स्मरण' साधना के अलावा सम्मोहन क्रिया और कायोत्सर्ग विधि का भी किया जाता है जिक्र

पूर्वजन्म या पिछले जन्म जैसे विषयों की चर्चा इंसान के लिए हमेशा ही रोचक और दिलचस्पी वाली रही है। इस बात को लेकर भी तरह-तरह की बहस होती रहती है कि कोई पूर्वजन्म जैसी बात होती भी है या नहीं। हालांकि, हिंदू धर्म में पूर्वजन्म होने की मान्यता है। ऐसा माना जाता है कि मनुष्य या कोई अन्य जीव अपने कर्मों के अनुसार ही अगला जन्म लेता है। 

कहते हैं कि पिछले जन्म की याद अगर हमारे साथ रहे तो इंसान तमाम तरह की उलझनों में फंसा रहेगा, इसलिए परमात्मा ने ये खेल बनाया है कि नया जन्म होते ही इंसान पिछले जन्म को भूल जाएगा। जीवन के चलते रहने के लिए ये जरूरी भी है। हालांकि, अगर आप इसे याद करना चाहे तो एक कठिन साधना से इसके बारे में जान भी सकते हैं। इस साधना को 'जाति स्मरण' कहा गया है।

पिछले जन्म की बातें क्यों नहीं रहती याद

दरअसल पिछले जन्म की यादों का आना और फिर उससे खुद को अलग रखने के लिए बहुत साहस की जरूरत होती है। कई बार ये यादें काफी परेशान करने वाली भी हो सकती हैं। पिछले जन्म के कष्ट, दुश्मनी, अस्वाभाविक मौत जैसी बातें किसी भी इंसान को परेशान कर सकती हैं। ऐसे में मन परेशान रहेगा और जीना मुश्किल होगा। यह भी मुमकिन है पिछले जन्म में व्यक्ति किसी दूसरी योनि से निकला हो। मसलन वह कोई जानवर, कीड़ा, पक्षी या समुद्री जीव भी रहा हो। 

इन सब योनिया के स्मरण को सहने की क्षमता हम आम इंसानों में नहीं होती। इसलिए प्रकृति ने ऐसा तरीका बनाया है जिससे हम पूर्व की बातें भूल जाते हैं। हालांकि, फिर भी कोई मन और चित्त से कोई मजबूत हो तो पुरानी बातें याद कर सकता है। इसके लिए 'जाति स्मरण' साधना का तरीका बताया गया है।

'जाति स्मरण' साधना क्या है और कैसे होता है?

पिछले जन्म की बातों को याद करने की साधना के बारे में जानने से पहले ये जरूरी है कि हम ये जान लें कि मन और चित्त में अंतर है। चित्त में लाखों जन्मों की स्मृतियां संग्रहित होती है जबकि मन केवल कुछ खास और अधिक से अधिक एक जन्म की बातों को ही याद रख सकता है। जाति स्मरण साधना में हम उसी चित्त को जाग्रत करने का प्रयास करते हैं।

इस अभ्यास के लिए सर्वप्रथम मन और चित्त को शांत करना जरूरी है। इसके लिए नियमित रूप से कई दिनों तक ध्यान क्रिया किया जाता है। जब ये महसूस होने लगे कि चित्त शांत होकर एकाग्र होने लगा है तो जाति स्मरण का प्रयोग शुरू किया जाना चाहिए।

जाति स्मरण के प्रयोग के लिए ध्यान को जारी रखते हुए आप जब भी बिस्तर पर सोने जाएं तब आंखे बंद करके उल्टे क्रम में अपनी दिनचर्या के घटनाक्रम को याद करें। जैसे सोने से पूर्व आप क्या कर रहे थे, फिर उससे पूर्व क्या कर रहे थे तब इस तरह की स्मृतियों को सुबह उठने तक ले जाएं।

इसे रोज करें और अपनी मेमोरी को बढ़ाते जाएं। इस पूरे प्रयोग के दौरान आहार और व्यवहार में भी संयम जरूरी है। ध्यान दरअसल इसलिए किया जाता है कि आप बेमतलब की स्मृतियों, तर्क आदि से खुद को खाली करें। जब ये चीजें आपके चित्त से हटेगी तो नीचे दबी हुई स्मृतियां बाहर आएंगी। 

इस पूरे अभ्यास या कार्य में अपने गुरु की सहायता भी जरूर लें। गुरु देखता है कि यादों का असर चित्त पर कैसा पड़ रहा है। यदि व्यक्ति चित्त के स्तर पर कमजोर है तो उसे पिछले जन्में की साधना नहीं कराई जाती। यह अभ्यास पढ़ने या सुनने में भले ही आसान लग रहा हो लेकिन असल में ये बेहद कठिन होता है और इसमें काफी नियम और लंबे समय तक इसे जारी रखने की जरूरत होती है।

इसका भी ध्यान रखें कि इन सिद्धियों के अभ्यास का बखान अन्य लोगों के पास नहीं करना चाहिए। सम्मोहन क्रिया से भी पूर्वजन्म की बातों के बारे में जानकारी हासिल की जा सकती है। कहते हैं कि इन अभ्यासों से 9 जन्मों तक के बारे में जानकारी हासिल की जा सकती है। सम्मोहन के अलावा कायोत्सर्ग विधि से भी पुर्वजन्म के बारे में जाना जा सकता है। इस क्रिया में व्यक्ति को अपनी काया यानी शरीर की चेतना से मुक्त होना पड़ता है।

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