Gayatri Mantra: शत्रु संहारक है गायत्री मंत्र, इसके जप से होता है रोगों का नाश, जानिए इसका लाभ, कैसे करें आराधना

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: February 22, 2024 07:34 AM2024-02-22T07:34:17+5:302024-02-22T07:34:17+5:30

हिंदू सनातन मान्यता में गायत्री मंत्र को संसार का सबसे छोटा एवं समग्र धर्मशास्त्र की संज्ञा दी गई है। गायत्री मंत्र को सभी मंत्रों की जननी माना जाता है।

Gayatri Mantra: Gayatri Mantra is the destroyer of enemies, chanting it destroys diseases, know its benefits, how to worship it | Gayatri Mantra: शत्रु संहारक है गायत्री मंत्र, इसके जप से होता है रोगों का नाश, जानिए इसका लाभ, कैसे करें आराधना

फाइल फोटो

Highlightsहिंदू सनातन मान्यता में गायत्री मंत्र को संसार का सबसे छोटा एवं समग्र धर्मशास्त्र की संज्ञा दी गई हैगायत्री मंत्र को सभी मंत्रों की जननी माना जाता है, यह मंत्र अंधकार का विध्वंस करता हैशास्त्रों में कहा गया है कि गायत्री मंत्र का ज्ञान सर्वप्रथम ब्रह्मर्षि विश्वामित्र को हुआ था

Gayatri Mantra: हिंदू सनातन मान्यता में गायत्री मंत्र को संसार का सबसे छोटा एवं समग्र धर्मशास्त्र की संज्ञा दी गई है। गायत्री मंत्र को सभी मंत्रों की जननी माना जाता है। यह मंत्र सभी प्रकार के अंधकार का विध्वंस करता है और शत्रु का संहारक है। इसी कारण से गायत्री मंत्र को ' महामंत्र ' या ' गुरु मंत्र ' भी कहा जाता है।

गायत्री मंत्र  यजुर्वेद के मन्त्र 'ॐ भूर्भुवः स्वः' और ऋग्वेद के छन्दों के युग्म से बना ऐसा महत्त्वपूर्ण मंत्र है, जिसकी महत्ता ॐ के बराबर मानी जाती है।

शास्त्रों में कहा गया है कि गायत्री मंत्र का ज्ञान सर्वप्रथम ब्रह्मर्षि विश्वामित्र को हुआ था। गायत्री मंत्र का मूल महत्व सूर्य देव की आराधना है। वेदों के अनुसार गायत्री मंत्र का जाप सुबह और शाम सूर्य देव के सामने किया जा सकता है।

हिंदू मान्यता के अनुसार गायत्री के नौ शब्द ही महाकाली की नौ प्रतिमाएं हैं, जिन्हें आश्विन की नवदुर्गाओं के रूप में पूजा जाता है। देवी भागवत् में गायत्री की तीन शक्तियों- ब्राह्मी वैष्णवी, शाम्भवी के रूप में निरूपित किया गया है और नारी- वर्ग की महाशक्तियों को चौबीस की संख्या में निरूपित करते हुए उनमें से प्रत्येक के माहात्म्यों का विस्तार से वर्णन किया गया है।

गायत्री के चौबीस अक्षरों का आलंकारिक रूप से अन्य प्रसंगों में भी निरूपण किया गया है। भगवान् के दस ही नहीं, चौबीस अवतारों का भी पुराणों में वर्णन है। ऋषियों में सप्त ऋषियों की तरह उनमें से चौबीस को प्रमुख माना गया है।

यह गायत्री के अक्षर ही हैं। देवताओं में से त्रिदेवों की ही प्रमुखता है, परन्तु विस्तार में जाने पर पता चलता है कि वे इतने ही नहीं वरन् चौबीस की संख्या में मूर्द्धन्य देव प्रतिष्ठा प्राप्त करते रहे हैं। महर्षि दत्तात्रेय ने ब्रह्माजी के परामर्श से चौबीस गुरुओं से अपनी ज्ञान- पिपासा को पूर्ण किया था। यह चौबीस गुरु प्रकारान्तर से गायत्री के चौबीस अक्षर ही हैं।

गायत्री मंत्र- ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

गायत्री मंत्र का जाप दिन में तीन बार प्रातः, मध्यान्ह और संध्या में किया जा सकता है। प्रातःकाल में यह मंत्र भगवान ब्रम्हा को समर्पित है, वहीं मध्यान्ह में यह भगवान विष्णु की आराधना के लिए किया जाता है, जबकि संध्याकाल में गायत्री मंत्री भगवान शिव को समर्पित है।

गायत्री मन्त्र के मनन एवं चिन्तन करने से मनुष्य के अन्तःकरण में उन तत्त्वों की वृद्धि होती है, जो मनुष्य को देवत्व की ओर ले जाते हैं। यह भाव बड़े ही शक्तिदायक, उत्साहप्रद, सतोगुणी, उन्नायक एवं आत्मबल बढ़ाने वाले हैं।

गायत्री मंत्र के लाभ

गायत्री मंत्र का जाप सार्वभौमिक चेतना की प्राप्ति और सहज शक्तियों के जागरण के लिए किया जाता है। ऐसा माना और कहा जाता है कि गायत्री मंत्र का नियमित जाप जीवन शक्ति को सक्रिय करता है, अच्छा स्वास्थ्य, ज्ञान, मानसिक शक्ति, समृद्धि और आत्मज्ञान प्रदान करता है।

गायत्री मन्त्र का अर्थ जब एक बार हृदयंगम हो जाता है तो उसका परिणाम कुछ ही दिनों में दिखाई पड़ने लगता है और मनुष्य ता मन कुविचारों और कुकर्मों से हटकर सद्विचारों और सत्कर्मों में लग जाता है।

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