Eid al-Adha 2025 Date: ईद-उल-अज़हा कब है? जानिए कुर्बानी के त्यौहार के बारे में सबकुछ
By रुस्तम राणा | Updated: May 16, 2025 19:53 IST2025-05-16T19:53:04+5:302025-05-16T19:53:04+5:30
इस्लामिक रिलीफ की वेबसाइट के अनुसार, "ज़ुल हिज्जा 2025 के पहले 10 दिन चाँद दिखने के बाद 28 मई 2025 को शुरू होने की उम्मीद है।

Eid al-Adha 2025 Date: ईद-उल-अज़हा कब है? जानिए कुर्बानी के त्यौहार के बारे में सबकुछ
Eid al-Adha 2025 Date: ईद-उल-अज़हा या बकरा ईद का त्यौहार मुसलमानों के लिए सबसे महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक है। ईद-उल-अज़हा उन दो मुबारक ईदों में से एक है जिसे मुसलमान हर साल मनाते हैं। इसे कुर्बानी के त्यौहार के रूप में भी जाना जाता है और यह 10 ज़िल-हिज्जा को मनाया जाता है, जो हज के तीसरे दिन के साथ मेल खाता है, और तीन दिनों तक चलता है।
इस्लामिक मान्यता के अनुसार, ईद-उल-अज़हा के पहले दिन, जो मुसलमान [क़ुर्बानी] दे सकते हैं वे एक जानवर की क़ुर्बानी करते हैं और उसके मांस का एक निश्चित प्रतिशत गरीब लोगों में बाँटते हैं। यह पैगंबर इब्राहिम की प्रतीकात्मक याद में किया जाता है, जिन्हें इस्लामी आस्था के अनुसार, भगवान ने अपने बेटे इस्माइल की क़ुर्बानी करने के लिए कहा था।
ईद-उल-अज़हा कब है?
इस्लामिक रिलीफ की वेबसाइट के अनुसार, "ज़ुल हिज्जा 2025 के पहले 10 दिन चाँद दिखने के बाद 28 मई 2025 को शुरू होने की उम्मीद है। ज़ुल हिज्जा की 9वीं तारीख (अराफ़ा का दिन) 5 जून 2025 को होगी, और 10वीं ज़ुल हिज्जा (ईद-उल-अज़हा) 6 जून 2025 को होगी।"
ईद-उल-अज़हा की कहानी
मान्यता के अनुसार, कुरान में, इब्राहिम को एक सपना आता है जिसमें अल्लाह उसे अपने बेटे इस्माइल की कुर्बानी देने का आदेश देते हैं। हालांकि इस बीच शैतान, इब्राहिम को भ्रमित करने और उसे ऐसा न करने के लिए प्रेरित करने का प्रयास करता है। शैतान ने पूछा कि वह भला अपने बेटे की कुर्बानी देने क्यों जा रहे हैं? इसे सुन इब्राहिम का मन थोड़े समय के लिए डगमगा भी गया लेकिन आखिरकार उन्हें अल्लाह की बात याद आई और कुर्बानी के लिए चल पड़े।
कहते हैं कि इब्राहिम ने बेटे की कुर्बानी देने के समय अपने आंखों पर पट्टी बांध ली ताकि उन्हें दुख न हो। कुर्बानी के बाद जैसे ही उन्होंने अपनी पट्टी खोली, अपने बेटे को उन्होंने सही-सलामत सामने खड़ा पाया। दरअसल, अल्लाह इब्राहिम के धैर्य और भरोसे की परीक्षा ले रहे थे। कुर्बानी का समय जैसे ही आया तो अचानक किसी फरिश्ते ने छुरी के नीचे स्माइल को हटाकर दुंबे (भेड़) को आगे कर दिया। ऐसे में दुंबे की कुर्बानी हो गई और बेटे की जान बच गई। इसी के बाद से कुर्बानी देने की परंपरा शुरू हो गई।