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3000 फुट ऊंचाई पर स्थित है गणेश प्रतिमा, जुड़ी है ये मिथकीय कथा

By धीरज पाल | Updated: January 2, 2018 18:35 IST

भगवान गणेश की इस मूर्ति को नक्सलियों द्वारा क्षतिग्रस्त कर दिया गया था, लेकिन प्रशासन की कोशिश से इसे पुनः स्थापित किया गया।

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ढोल कल गणेश, जिला दंतेवाड़ा के फरसपाल पहाड़ों के ऊपर स्थित है। दंतेवाड़ा राजस्थान की राजधानी से तकरीबन 350 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। माना गया है कि 3000 फीट की ऊंचाई पर स्थित भगवान गणेश की यह मूर्ति 9वीं शताब्दी में स्थापित की गई थी। ग्रेनास्टोन से बनी यह मूर्ति 3 फीट लंबी और साढ़े तीन फीट चौड़ी है।  

मंदिर तक पहुंचना आसान नहीं है   ढोल कल की चोटी तक पहुंचने के लिए 5 किलो मीटर का रास्ता तय करना पड़ता है। ट्रैक का रास्ता आसान नहीं है, रास्ते में आपको घने जंगल, झरने और प्राचीन समय के पेड़ों की लंबी-लंबी जड़ें आज भी देखने को मिलेंगी। बताया जा रहा है इस जगह की खोज सन् 1934 में एक इंग्लिश जिओलॉजिस्ट क्रुकशैंक ने किया था। हालांकि यह जगह कुछ सालों के लिए खो गई थी। इसके बाद इसे दो पत्रकारों ने खोजा था। इस ट्रैक की चढ़ाई के लिए आपको गाइड आसानी से मिल जाएंगे जो आपको जंगल, झरने से होते हुए भगवान गणेश की मूर्ति तक ले जाएंगे।

गणेश और परशुराम का युद्ध

माना जाता है कि गणेश  जी और परशुराम की लड़ाई इसी चोटी पर हुई थी। परशुराम विष्णु के अवतार थे। परशुराम शिव जी के वरदान से एक बड़ा युद्ध जीत के आए थे और वे भगवान शिव के दर्शन व आशीर्वाद लेने जा ही रहे थे कि अचानक भगवान गणेश ने उनको अंदर जाने से रोका। इस दौरान दोनों के बीच घमासान युद्ध हुआ। युद्ध के दौरान परशुराम जी ने अपने लोहे के शस्त्र से गणेश जी का दांत काट दिया। शायद आपने ध्यान दिया होगा कि भगवान गणेश की मूर्ति में एक दांत कटा होता है। वो दांत परशुराम ने काटा थी। 

लोहे के पहाड़ के पीछे कि किंवदंती

भगवान गणेश और परशुराम के बीच हुए घमासान युद्ध के दौरान परशुराम जी ने जिस लोहे के शस्त्र से भगवान गणेश पर वार किया था वो लोहे का शस्त्र आसापास पहाड़ों में जा गिरा जो आजतक नहीं मिल पाया। तभी से इन पहाड़ों को लोहे का पहाड़ भी कहा जाता है। 

फरसे के नाम पर पड़ा फरसपाल

भगवान गणेश की मूर्ति फरसपाल पहाड़ों के सबसे ऊपरी बिंदू पर विराजित है। फरसपाल नाम के पीछे एक किंवदंती काफी प्रचलित है। कहा जाता है कि परशुराम ने जिस लोहे के फरसे से भगवान गणेश पर वार किया था वो फरसा इन्हीं पहाड़ों में गिर गया था। तभी से इस इलाके का नाम फरसपाल पड़ा ।      

नक्सलियों ने किया था मूर्ति को नष्ट 

यह मंदिर तब सुर्खियों में आया जब इन जंगलों में राज करने वाले नक्सलियों ने मूर्ति को तोड़ कर फेंक दिया था। जब पर्यटक और श्रद्धालू इस मंदिर में सुबह दर्शन करने के लिए गए तो उन्होंने मूर्ति गायब पाई। प्रशासन द्वारा मूर्ति को खोजा गया। मूर्ति लगभग 2500 फीट नीचे मिली। जिसकी वजह से मूर्ति के 15 टुकड़े हो गए थे। इसके बाद मूर्ति को पुनः स्थापित किया गया। पर्यटन और पुरातत्व विभाग ने इस क्षेत्र को विकसित करने के लिए राज्य सरकार से 2 करोड़ रुपये खर्च करने का प्रस्ताव दिया था।  बताया जा रहा था कि गणेश भगवान की यह मूर्ति धीरे-धीर काफी प्रचलित होती गई और दिन-ब-दिन पर्यटकों और श्रद्धालुओं का जमावड़ा देख नक्सलियों ने इस मूर्ति को फेंक दिया। ताकि जंगल में नक्सलियों का डर बना रहे। 

आदिवासियों के आस्था का प्रतीक है यह मंदिर 

 माना जाता है कि इस मूर्ति की स्थापना भगवान गणेश और परशुराम के बीच हुए युद्ध की याद में छिंदक नागवंशी राजाओं ने शिखर पर गणेश की मूर्ति को स्थापति किया था। यह मंदिर आदिवासियों की आस्था का प्रतीक है। क्योंकि जंगल में आदिवासियों का निवास है। 

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