देवउठनी एकादशी कब है? जानें तिथि, शुभ मुहूर्त, व्रत विधि और कथा
By रुस्तम राणा | Published: October 31, 2022 02:17 PM2022-10-31T14:17:59+5:302022-10-31T14:17:59+5:30
धार्मिक मान्यता है कि देवउठनी एकादशी पर्ा भगवान विष्णु चार माह के निद्रा काल से जागते हैं और पुनः सृष्टि के पालन का कार्यभार संभालते हैं। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु जी सच्चे मन से आराधना करने से स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है।
Dev Uthani Ekadashi 2022: हिन्दू धर्म में देवउठनी एकादशी बेहद महत्वपूर्ण तिथि मानी जाती है। कहते हैं इसी दिन से चतुर्मास का अंत माना जाता है और शादी-ब्याह जैसे मांगलिक कार्य पुनः शुरू हो जाते हैं। कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देव उठनी एकादशी कहा जाता है। शास्त्रों में इसे प्रबोधिनी या फिर देव उत्थानी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार माह के निद्रा काल से जागते हैं और पुनः सृष्टि के पालन का कार्यभार संभालते हैं। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु जी सच्चे मन से आराधना करने से स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है। इस साल देव उठनी एकादशी 4 जुलाई शुक्रवार को है।
होता है तुलसी विवाह का आयोजन
देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह का आयोजन बड़ी धूमधाम के साथ किया जाता है। इस दिन तुलसी को दुलहन की तरह सजाया जाता है। संपूर्ण शृंगार किया जाता है, फिर विधि-विधान से भगवान शालिग्राम के साथ उनका विवाह किया जाता है। विवाह के लिए तुलसी विवाह का दिन सर्वोत्तम दिन माना जाता है। इसी दिन से विवाह मुहूर्त प्रारंभ हो जाते हैं। इस साल तुलसी विवाह का आयोजन 5 नवंबर को किया जाएगा।
देवउठनी एकादशी मुहूर्त 2022
एकादशी तिथि प्रारंभ - गुरुवार 3 नवंबर को संध्याकाल में 7 बजकर 30 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त - शुक्रवार 4 नवंबर को संध्याकाल में 6 बजकर 8 मिनट पर
व्रत पारण मुहूर्त - शनिवार 5 नवंबर को सुबह 8 बजकर 52 मिनट तक
देवउठनी एकादशी व्रत विधि
सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और व्रत का संकल्प करें।
भगवान विष्णु जी के समक्ष दीप प्रज्जवलित करें। गंगा जल से अभिषेक करें।
विष्णु जी को तुलसी का पत्ता चढ़ाएं।
उन्हें सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है।
शाम को तुलसी के समक्ष दीप जलाएं।
विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
द्वादशी के दिन शुभ मुहूर्त पर व्रत खोलें।
ब्राह्मणों को भोजन कराकर प्रसाद वितरण करें।
देवउठनी व्रत कथा
एक राजा के राज्य में सभी लोग एकादशी का व्रत रखते थे। प्रजा तथा नौकर-चाकरों से लेकर पशुओं तक को एकादशी के दिन अन्न नहीं दिया जाता था। एक दिन किसी दूसरे राज्य का एक व्यक्ति राजा के पास आकर बोला महाराज! कृपा करके मुझे नौकरी पर रख लें। तब राजा ने उसके सामने एक शर्त रखी कि ठीक है रख लेते हैं। किन्तु रोज तो तुम्हें खाने को सब कुछ मिलेगा पर एकादशी को अन्न नहीं मिलेगा। उस व्यक्ति ने उस समय यह स्वीकार कर लिया, पर एकादशी के दिन जब उसे फलाहार का सामान दिया गया तो वह राजा के सामने जाकर गिड़गिड़ाने लगा- महाराज! इससे मेरा पेट नहीं भरेगा। मैं भूखा ही मर जाऊंगा। मुझे अन्न दे दो।
तब राजा ने उसे शर्त की बात याद दिलाई, पर वह अन्न छोड़ने को राजी नहीं हुआ, तब राजा ने उसे आटा-दाल-चावल आदि दिए। वह नित्य की तरह नदी पर पहुंचा और स्नान कर भोजन पकाने लगा। जब भोजन बन गया तो वह भगवान को बुलाने लगा- आओ भगवान! भोजन तैयार है। उसके बुलाने पर पीतांबर धारण किए भगवान चतुर्भुज रूप में आ पहुंचे और प्रेम से उसके साथ भोजन करने लगे। भोजन करके भगवान अंतर्धान हो गए और वह अपने काम पर चला गया। 15 दिन बाद अगली एकादशी को वह राजा से कहने लगा कि महाराज मुझे दोगुना सामान दीजिए। उस दिन तो मैं भूखा ही रह गया। राजा ने कारण पूछा तो उसने बताया कि हमारे साथ भगवान भी खाते हैं। इसीलिए हम दोनों के लिए ये सामान पूरा नहीं होता।
यह सुनकर राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ। वह बोला मैं नहीं मान सकता कि भगवान तुम्हारे साथ खाते हैं। मैं तो इतना व्रत रखता हूं, पूजा करता हूं, पर भगवान ने मुझे कभी दर्शन नहीं दिए। राजा की बात सुनकर वह बोला महाराज! यदि विश्वास न हो तो साथ चलकर देख लें। राजा एक पेड़ के पीछे छिपकर बैठ गया। उस व्यक्ति ने भोजन बनाया तथा भगवान को शाम तक पुकारता रहा, परंतु भगवान नहीं आए। अंत में उसने कहा- हे भगवान! यदि आप नहीं आए तो मैं नदी में कूदकर प्राण त्याग दूंगा।
लेकिन भगवान नहीं आए, तब वह प्राण त्यागने के उद्देश्य से नदी की तरफ बढ़ा। प्राण त्यागने का उसका दृढ़ इरादा जान शीघ्र ही भगवान ने प्रकट होकर उसे रोक लिया और साथ बैठकर भोजन करने लगे। खा-पीकर वे उसे अपने विमान में बिठाकर अपने धाम ले गए। यह देख राजा ने सोचा कि व्रत-उपवास से तब तक कोई फायदा नहीं होता, जब तक मन शुद्ध न हो। इससे राजा को ज्ञान मिला। वह भी मन से व्रत-उपवास करने लगा और अंत में स्वर्गलोक को प्राप्त हुआ।