आस्था का महापर्व छठः जानें पूजा की संपूर्ण प्रक्रिया, शुभ मुहूर्त और सूर्य को अर्घ्य का महत्व

By एस पी सिन्हा | Published: November 11, 2018 01:22 PM2018-11-11T13:22:01+5:302018-11-11T13:22:01+5:30

संभवतः ये अपने आप में ऐसा पर्व है जिसमें अस्ताचलगामी व उदीयमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है व उनकी वंदना की जाती है. सांझ(शाम)-सुबह की इन दोनों अर्घ्यों के पीछे हमारे समाज में एक आस्था काम करती है.

Chhath Festival 2018: All you need to know about process, fast and Shubh Muhurt | आस्था का महापर्व छठः जानें पूजा की संपूर्ण प्रक्रिया, शुभ मुहूर्त और सूर्य को अर्घ्य का महत्व

आस्था का महापर्व छठः जानें पूजा की संपूर्ण प्रक्रिया, शुभ मुहूर्त और सूर्य को अर्घ्य का महत्व

लोक आस्था के महापर्व छठ की शुरुआत आज 'नहाय-खाय' के साथ हो चुकी है. राजधानी पटना समेत राज्य के अन्य जिलों में भी नदियों-तालाबों पर स्थित घाटों पर हजारों की तादाद में श्रद्धालुओं ने अपने परिजनों के साथ डुबकी लगाई. स्नान करने का बाद महिलाएं भगवान सूर्य की पूजा अर्चना भी कर रही हैं. इस दौरान छठ के गीत भी गुनगुना रही हैं. इस महापर्व छठ को लेकर राज्यभर में उमंग है. लोग छठ की तैयारियों में जोर-शोर से लगे हुए हैं. 

पर्व के दूसरे दिन यानि खरना के दिन से ही व्रतियों का उपवास शुरू हो जाता है. बिहार का यह एक मात्र ऐसा पर्व है, जिसमें 36 घंटे तक उपवास की जाती है. छठ की शुरुआत नहाय-खाय से हुई और यह पर्व सप्तमी को सूर्य को अर्घ्य देने के साथ संपन्न होगी. सांझ(शाम) वाली और सुबह वाली अर्घ्य क्रमश: 13 और 14 नवंबर को होगी. वहीं, कल दूसरे दिन यानि की खरना के दिन व्रतियां पूजा के बाद पारन तक 36 घंटे तक निर्जला उपवास करती हैं. 12 नवंबर को खरना के बाद से ही व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाएगा. 

खरना के दिन व्रत रखने वाली महिलाएं और पुरूष  दिनभर के उपवास के बाद शाम को स्नान कर विधि-विधान के साथ रोटी और गुड की खीर प्रसाद के रूप में बनाते हैं. व्रतियां मिट्टी के चूल्हे पर प्रसाद तैयार करती हैं और जलावन के रूप में आम की लकडी का उपयोग करती हैं. इसके बाद भगवान भाष्कर की पूजा की जाती है और प्रसाद के रूप में केला, गुड की खीर, रोटी और अन्य चीजें चढाई जाती हैं. वहीं, पारन तक व्रतियां नमक, चीनी के साथ ही लहसून और प्याज भी नहीं खाती हैं. 

बिहार-झारखंड में चारों ओर छठ के गीत गूंज रहे हैं. व्रतियों द्वारा गाये जा रहे छठ के गीत से पूरा माहौल भक्तिमय हो गया है. पहले दिन छठ व्रत करने वाले पुरुषों और महिलाओं ने अंत:करण की शुद्धि के लिए नदियों, तालाबों और विभिन्न जलाशयों में स्नान करते हैं. इसके बाद अरवा चावल, चने की दाल और लौकी (कद्दू) की सब्जी को प्रसाद के रूप में ग्रहण करने की मान्यता है.

कार्तिक माह में मनाये जाने वाला लोक आस्था का महापर्व छठ का हिंदू धर्म में एक विशेष और अलग स्थान है. कहा जाता है कि इस पर्व में सूर्य की पूजा होती है. शुद्धता व पवित्रता इस पर्व का मुख्य अंग है. प्रकृति के अवयवो में से एक जल स्रोतों के निकट छठ पूजा का आयोजन होता है. व्रती द्वारा पानी में खडे होकर सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है. 

संभवतः ये अपने आप में ऐसा पर्व है जिसमें अस्ताचलगामी व उदीयमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है व उनकी वंदना की जाती है. सांझ(शाम)-सुबह की इन दोनों अर्घ्यों के पीछे हमारे समाज में एक आस्था काम करती है. पौराणिक कथा के अनुसार सूर्य देव भगवान की दो पत्नियां हैं- ऊषा और प्रत्युषा. सूर्य के सुबह की किरण ऊषा होती है और सांझ की प्रत्युषा. अतः सांझ-सुबह दोनों समय अर्घ्य देने का उद्देश्य सूर्य की इन दोनों पत्नियों की अर्चना-वंदना होती है. 

दिखावा और आडंबर से अलग हटकर इस पर्व का आयोजन होता है. अस्ता चलगामी सूर्य व उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के बाद ही इस महाअनुष्ठान का समापन होता है. आधुनिकता से अलग छठ पर्व में मिट्टी और कृषि उत्पादनों का शुरू से लेकर अंत तक इस्तेमाल होता है. मिट्टी के चूल्हों पर खरना का प्रसाद व पकवान, बांस से निर्मित डाला को सजाकर ही छठ व्रती अपने परिवार के साथ घाटों की और प्रस्थान करते है. जबकि, पूजा सामग्री में भी पानी सिंघाडा, ईख, हल्दी, नारियल, नींबू के अलावे मौसमी फल और गाय के दूध की अनिवार्यता होती है. 

बदलते समय और आधुनिकता से छठ पर्व पर कोई असर नहीं हुआ है. घर से बाहर नदी और तालाबों के निकट मनाये जाने से एक सामाजिक वातावरण का माहौल भी स्थापित होता है. छठ के मौके पर अन्य प्रदेश और विदेश में रहने वाले भी घर लौटते है.

Web Title: Chhath Festival 2018: All you need to know about process, fast and Shubh Muhurt

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