तड़के सुबह साढ़े 4 बजे खुल गए बद्रीनाथ मंदिर के कपाट, श्रद्धालुओं की लगी भारी भीड़, जानें मंदिर के इतिहास की 5 बातें
By गुलनीत कौर | Published: May 10, 2019 10:15 AM2019-05-10T10:15:43+5:302019-05-10T10:15:43+5:30
पौराणिक कथा के अनुसार कृष्ण रूप में अवतरित होने से ठीक पहले भगवान विष्णु स्वयं अलकनंद के तट पर श्रद्धालुओं को दर्शन देते थे। किन्तु कृष्ण अवतार लेने से पहले उन्होंने खुद को मूर्ति रूप में यहां परिवर्तित कर लिया।
आज सुबह तड़के साढ़े 4 बजे आम लोगों के लिए बद्रीनाथ मंदिर के कपाट खोल दिए गए हैं। एक दिन पहले ही मंदिर को सजावट का काम शुरू हो गया था और आज सुबह ब्रह्ममुहूर्त को ध्यान में रखते हुए भक्तों के लिए इस विष्णु धाम के कपाट खोल दिए गए। बीते दिन गुरूवार को भगवान शिव के धाम केदारनाथ के कपाट खुले थे और आज विष्णु धाम बद्रीनाथ के कपाट को भी आम भक्तों के लिए दर्शन के लिए खोल दिया गया है। कपाट खोलने के समय हजारों की संख्या में वहां श्रद्धालू मौजूद थे।
हर साल गर्मियों में खुलते हैं कपाट
केदारनाथ और बद्रीनाथ दो ऐसे हिन्दू धार्मिक स्थल हैं जिनके कपाट सर्दियां करीब आते ही बंद कर दिए जाते हैं। ठंडे इलाके में होने से यहां भारी बर्फबारी के कारण भक्तों के लिए मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। केदारनाथ मंदिर के कपाट तो सितंबर के महीने में ही बंद कर दिए जाते हैं। बद्रीनाथ मंदिर के कपाट नवंबर से लेकर अगले 6 महीने के लिए बंद किए जाते हैं।
Uttarakhand: The portals of Badrinath shrine have been thrown open for pilgrims early morning today. pic.twitter.com/u12IX6uB89
— ANI (@ANI) May 10, 2019
कहाँ है बद्रीनाथ मंदिर?
भगवान बद्रीनाथ यानी भगवान विष्णु को समर्पित बद्रीनाथ मंदिर उत्तर भारत के उत्तराखंड राज्य में अलकनंदा नदी के पास स्थित है। यह मंदिर हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध धामों में से एक है। यहां पहुँचने के लिए ऋषिकेश तक ट्रेन या हवाई सफर या फिर सड़क मार्ग से पहुंचा जाता है। इसके बाद मंदिर तक का सफर भी सदल मार्ग से आसानी से तय किया जा सकता है।
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बद्रीनाथ मंदिर की 5 खास बातें
1) बद्रीनाथ मंदिर और इसके आस पास का पूरा क्षेत्र किसी जमाने में भगवान शिव का निवास स्थान कहलाता था। किन्तु पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यहां भगवान विष्णु की मूर्ति के चमत्कारी रूप से प्रकट होने के कारण यह धार्मिक स्थल भगवान बद्रीनाथ (विष्णु) का कहलाने लगा
2) पौराणिक कथा के अनुसार कृष्ण रूप में अवतरित होने से ठीक पहले भगवान विष्णु स्वयं अलकनंद के तट पर श्रद्धालुओं को दर्शन देते थे। किन्तु कृष्ण अवतार लेने से पहले उन्होंने खुद को मूर्ति रूप में यहां परिवर्तित कर लिया। मंदिर में रखी मूर्ति भगवान विष्णु का स्वरूप ही मानी जाती है
3) यह मूर्ति शालीग्राम पत्थरों से बनी हुई है। शालीग्राम पत्थर को पुराणों में भगवान विष्णु का रूप ही माना गया है। मूर्ति की लम्बाई करीब 3।3 फीट है
4) एक जमाने में हिन्दू और बौद्ध धर्म के बीच संघर्ष के चलते मूर्ति को कुंड में छिपाकर रख दिया गया था। किन्तु 16वीं शताब्दी में जब गढ़वाल के राजा ने मंदिर का पुनर्निर्माण कराया तो उस समय मूर्ति को कुंड से बाहर निकालकर मंदिर में स्थापित किया गया
5) यदि आप मूर्ति की ओर देखें तो आपको भगवान बद्रीनाथ के चार हाथ दिखेंगे। एक हाथ में उन्होंने चक्र और दूसरे में शंख थामा हुआ है। बाकी के दो हाथ योग मुद्रा में हैं