Chamliyal Fair start 2024: चमलियाल सीमा चौकी (जम्मू सीमा से), 27 जून। चमलियाल सीमा चौकी पर हर साल सच में यह अद्धभुत नजारा होता था, जब सीमा पर बंदूकें शांत होकर झुक जाती थीं और दोनों देशों की सेनाएं शक्कर व शर्बत बांटने के पूर्व की औपचारिकताएं पूरी करने में जुट जाती थीं। और जीरो लाइन पर जैसे ही बीएसएफ के अफसर पाक रेंजरों अफसरों को गले लगााते थे तो महसूस होता था कि जैसे समय रुक गया। समय रुकता हुआ नजर इसलिए आता था ताकि इस एतिहासिक क्षण को कैमरों में कैद किया जा सके।
पर पाक रेंजरों के अड़ियल रवैये ने इस नजारे से लोगों को लगातार 7वीं बार वंचित रखा है। यही कारण था कि पंजाब के फिरोजपुर से आने वाले लखबर बग्गा और उड़ीसा से आए रतिकांत पहली बार चमलियाल मेले में आए तो सही लेकिन उन्हें निराशा ही हाथ लगी। वे इस मेले के प्रति कई सालों से सुन रहे थे और पहली बार आने पर उन्हें मालूम हुआ कि इस बार भी दोनों मुल्कों के बीच शक्कर और शर्बत का आदान प्रदान नहीं हुआ जो इस मेले का मुख्य आकर्षण हुआ करता था और लगातार 7वें साल यह परंपरा टूट गई।
अगर स्पष्ट शब्दों में कहें तो चमलियाल मेला एक साथ खड़े, एक ही बोली बोलने वालों, एक ही पहनावा डालने वालों, एक ही हवा में सांस लेने वालों तथा एक ही आसमान के नीचे खड़े होने वालों को एक कटु सत्य के दर्शन भी करवाता रहा है कि चाहे सब कुछ एक है मगर उनकी घड़ियों के समय का अंतर हमेशा यह बताता था कि दोनों की राष्ट्रीयता अलग अलग है।
हालांकि यह कल्पना भी रोमांच भर देने वाली होती थी कि एक ही बोली बोलने, एक ही हवा में सांस लेने वाले अपनी घड़ियों के समय से पहचाने जाते थे जब कि दोनों दोनों अलग अलग देशों से संबंध रखने वाले होते थे जिन्हें अदृश्य मानसिक रेखा ने बांट रखा है। जम्मू से करीब 45 किमी की दूरी पर रामगढ़ सेक्टर में एक बार फिर इस नजारे को देखने की खातिर हजारों की भीड़ को निराशा ही हाथ लगी।
मेले की शक्ल ले चुके बाबा चमलियाल की तैयारी में लोग दो दिनों से जुटे हुए थे। विभिन्न प्रकार के स्टाल और झूले लगे हुए थे उस भारत-पाक सीमा पर जहां पाक सैनिक कुछ दिन पहले तनातनी का माहौल पैदा करने में लगे हुए थे। आधिकारिक रिकार्ड के मुताबिक आजादी के बाद से ही मेला लगता है।
इतना ही नहीं रामगढ़ सेक्टर के चमलियाल उप-सेक्टर में चमलियाल सीमा चौकी पर स्थित बाबा दिलीप सिंह मन्हास की समाधि के दशनार्थ पाकिस्तानी जनता भारतीय सीमा के भीतर भी आती रही है। लेकिन यह सब 1971 के भारत-पाक युद्ध तक ही चला था, उसके बाद संबंध खट्टे हुए कि आज तक खटास दूर नहीं हो सकी।
यह दरगाह चर्म रोगों से मुक्ति के लिए जानी जाती है जहां की मिट्टी तथा कुएं के पानी के लेप से चर्म रोगों से छुटकारा पाया जा सकता है। असल में यहां की मिट्टी तथा पानी में रासायनिक तत्व हैं और यूही तत्व चर्म रोगों से मुक्ति दिलवाते हैं। ऐसा भी नहीं है कि चर्म रोगों से मुक्ति पाने के लिए सिर्फ हिन्दुस्तानी जनता ही इस दरगाह पर मन्नत मांगती है।