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Chaiti Chhath 2020: आज नहाय-खाए के साथ शुरू हो गया चैती छठ, शनिदेव की बहन यमुना की होगी उपासना-पढ़िए पौराणिक कथा

By मेघना वर्मा | Updated: March 28, 2020 09:36 IST

चैती छठ की शुरूआत आज नहाय खाय से हो चुकी है। मुख्य रूप से सूर्यदेव की उपासना का ये महापर्व बिहार सहित पूर्वांचल के कई हिस्सों और नेपाल के कई क्षेत्रों में भी मनाया जाता है।

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ठळक मुद्देपुरानी कथाओं की मानें तो सनातन धर्म में नदियों को विशेषकर स्थान दिया गया है। छठ पूजा के दूसरा दिन को खरना कहा जाता है।

Chaiti Chhath 2020: हिन्दू धर्म में तीज त्योहारों को बड़े उल्लास के साथ मनाया जाता है। व्रत कोई भी हो लोगों की आस्था देखते ही बनती है। इन्हीं व्रत में से एक है चैती छठ। छठ व्रत साल में दो बार मनाया जाता है। कार्तिक की छठ पूजा की ही तरह चैत्र माह में पड़ने वाले छठ का बहुत महत्व है।  

चैती छठ की शुरूआत आज नहाय खाय से हो चुकी है। मुख्य रूप से सूर्यदेव की उपासना का ये महापर्व बिहार सहित पूर्वांचल के कई हिस्सों और नेपाल के कई क्षेत्रों में भी मनाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार छठ माई सूर्य देवता की बहन हैं। इसलिए इन दिनों में सूर्य की उपासना से छठी मईया खुश होती हैं और साधक के घर-परिवार में सुख और शांति प्रदान करती हैं।

चैती छठ व्रत भी कार्तिक मास में पड़ने वाले छठ की तरह चार दिनों के होते हैं। इन्हें बेहद कठिन माना गया है। इस व्रत में शुद्धता का विशेष महत्व होता है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से परिवार के सदस्यों की सेहत अच्छी रहती है और घर भी धन-धान्य से भरा होता है।

इस बार यानी साल 2020 में चैती छठ का आरंभ 28 मार्च (शनिवार) को नहाय खाय के साथ हो रहा है। वहीं, छठ व्रत के बाद पारण का दिन 31 मार्च का होगा। वहीं, कार्तिक छठ व्रत की शुरुआत 18 नवंबर को नहाय खाय के साथ होगी।

ऐसे करते हैं छठ व्रत

छठ व्रत की पूजा चार दिनों तक होती है। पहला दिन नहाय खाय से शुरू होता है। यह कार्तिक या चैत्र के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी का दिन होता है। इस दिन उपासक स्नान आदि कर नये वस्त्र धारण करते हैं और भोजन लेते हैं। उपासक के भोजन करने के बाद ही घर के बाकि सदस्य भोजन करते हैं।

छठ पूजा के दूसरा दिन को खरना कहा जाता है। इस पूरे दिन व्रत रखा जाता है और शाम को व्रती भोजन ग्रहण करते हैं। शाम को चावल और गुड़ से खीर बनाकर खाया जाता है। भोजन में नमक या चीनी का इस्तेमाल नहीं किया जाता। घी लगी रोटी भी प्रसाद के रूप में खाई और बांटी जाती है।

इसके बाद षष्ठी के दिन छठ पूजा का प्रसाद बनाया जाता है। इसमें ठेकुआ विशेष होता है। प्रसाद और फल एक साफ और नये टोकरी में सजाये जाते हैं। टोकरी की पूजा कर सभी व्रती सूर्य को अर्घ्य देने के लिये तालाब, नदी या घाट आदि पर जाते हैं। स्नान कर डूबते सूर्य की आराधना की जाती है।

ऐसे ही अगले दिन सुबह उतते हुए सूर्य को अर्ध्य देने की परंपरा है। इस दौरान शुद्धता का विशेष ख्याल रखा जाता है। उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही व्रत का भी समापन होता है और साधक पारण करते हैं। अब चूंकी पूरा देश इन दिनों बंद चल रहा है तो आप अपने घर पर ही कुछ ऐसी व्यवस्था कर सकते हैं जिससे आप सूर्य को अर्ग्घ दे सकें।

यमुना छठ की पौराणिक कथा

पुरानी कथाओं की मानें तो सनातन धर्म में नदियों को विशेषकर स्थान दिया गया है। इन्हें मां के रूप में पूजा जाता है। सूर्य की पुत्री यमुना, यम की बहन हैं वहीं शनि देव भी उनके अनुज हैं। माना जाता है कि इस दिन यमुना नदी का वार्न श्याम है। बताया ये भी जाता है कि राधा कृष्ण के उनके तक पर विचरण करने से राधा रानी के अंदर लुप्त कस्तूरी धीरे-धीरे यमुना नदी मे लुप्त होती रही यही कारण है कि उनका रंग श्यामल हो गया। 

वहीं यमुना को कृष्ण की पत्नी भी माना जाता है। किवदंति ये भी है कि कृष्ण के प्रेम में विलय रहने की वजह से भी उनका रंग कृष्ण के रंग से मिल गया। भगवान कृष्ण की पटरानी और सूर्य पुत्री यमुना को ब्रज में माता के रूप में पूजा जाता है। गर्ग संहिता के अनुसार, जब भगवान कृष्ण ने राधे मां को पृथ्वी पर अवतरित होने का आग्रह किया तो उन्होंने भी श्रीकृष्ण से अनुरोध किया, कि आप वृंदावन, यमुना, गोवर्धन को भी उस स्थान पर अवलोकित करिए। इसी आग्रह को पूरा करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने माता यमुना को इस स्थान पर अवतरित किया।

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