हनुमान (संस्कृत: हनुमान्, आंजनेय और मारुति भी) परमेश्वर की भक्ति (हिंदू धर्म में भगवान की भक्ति) की सबसे लोकप्रिय अवधारणाओं और भारतीय महाकाव्य रामायण में सबसे महत्वपूर्ण व्यक्तियों में प्रधान हैं। वह कुछ विचारों के अनुसार भगवान शिवजी के ११वें रुद्रावतार, सबसे बलवान और बुद्धिमान माने जाते हैं।[1] रामायण के अनुसार वे जानकी के अत्यधिक प्रिय हैं। इस धरा पर जिन सात मनीषियों को अमरत्व का वरदान प्राप्त है, उनमें बजरंगबली भी हैं। हनुमान जी का अवतार भगवान राम की सहायता के लिये हुआ। हनुमान जी के पराक्रम की असंख्य गाथाएं प्रचलित हैं। इन्होंने जिस तरह से राम के साथ सुग्रीव की मैत्री कराई और फिर वानरों की मदद से राक्षसों का मर्दन किया, वह अत्यन्त प्रसिद्ध है।
कौन थे हनुमान के पिता?
भगवान हनुमान का जन्म वानर रूप में हुआ था। उनके पिता का नाम केसरी था, जो कि पौराणिक कथाओं के मुताबिक बृहस्पति देव के पुत्र थे। हनुमान की माता 'अंजनी' एक अप्सरा थीं जो एक श्राप के चलते वानर रूप में धरती पर अपनी जीवन व्यतीत कर रही थीं। हनुमान का जन्म माता अंजनी की कोख से भगवान शिव से मिले वरदान के परिणाम से हुआ था।
भगवान हनुमान का जन्म
अंजनी एक अप्सरा की पुत्री थी मगर एक ऋषि से मिले श्राप की वजह से वे धरती पर आ गई और एक साधारण वानर स्त्री के रूप में जीवन व्यतीत करने लगी। एक पुत्र को जन्म देने के बाद ही वह श्राप से मुक्त हो सकती थी। धरती पर आकर अंजनी का विवाह वानरों के राजा केसरी से हुआ। दोनों ने मिलकर भगवान शिव की अराधना की और वरदान हेतु अंजनी को पुत्र रूप में 'मारुति' (हनुमान) की प्राप्ति हुई। इस तरह हनुमान शिव के अंश बताए जाते हैं।
वायु देव के पुत्र हनुमान
'एकनाथ भावार्थ रामायण' में दर्ज एक कथा के अनुसार हनुमान वायु देव के पुत्र थे। इसलिए उन्हें पवनपुत्र के नाम से भी संबोधित किया जाता है। कथा के मुताबिक त्रेता युग में राजा दशरथ पुत्रों की प्राप्ति के लिए महायज्ञ (वायु देव को समर्पित) करवा रहे थे। उस यज्ञ में खास प्रकार का प्रसाद 'पयासम' तैयार किया गया था। यह प्रसाद राजा की तीनों पत्नियों को ग्रहण करना था।
मगर अचानक ही एक पक्षी आया और उसने अपने पंजों में इस पवित्र प्रसाद का कुछ भाग दबोच लिया और वहा उड़ गया। वह पंछी उस जंगल के ऊपर से गुजरा जहां माता अंजनी तपस्या आकार रही थीं। उसके पंजों से प्रसाद छोट आज्ञा और सीधा माता अंजनी के हाथों में जाकर गिरा। अंजनी ने उसे शिव का प्रसाद समझ ग्रहण कर लिया। यही कारण है कि वायु देव को हनुमान का पिता बताया जाता है। और इसलिए हनुमान में वायु की तरह उड़ने की चमत्कारी शक्ति भी थी।
भगवान हनुमान का परिवार
केसरीनंदन हनुमान राजा केसरी और माता अंजनी की ज्येष्ठ संतान थे। उनके बाद केसरी और अंजनी के पांच पुत्र और हुए। इनके नाम इस प्रकार हैं - मतिमान, श्रुतिमान, केतुमान, गतिमान और धृतिमान। इन सभी का विवाह हुआ था और धार्मिक ग्रंथों में इनकी संतानों का उल्लेख भी मिलता है। पौराणिक कथाओं में भगवान हनुमान की संतान को 'मकरध्वज' के नाम से जाना जाता है।