भोपाल: फिल्म और संगीत के क्षेत्र में वर्षों तक सक्रिय भूमिका निभाने के बाद ऋषिकेश पांडेय, जिन्हें एक समय 'ऋषिकिंग' के नाम से जाना जाता था, अब ‘देवऋषि’ के रूप में भारतीय अध्यात्म और वैदिक ज्ञान परंपरा के संवाहक की भूमिका निभा रहे हैं। अक्षय तृतीया के अवसर पर उन्होंने 'सनातन विजडम फाउंडेशन' की स्थापना की, जिसका उद्देश्य भारतीय ज्ञान परंपरा के वैज्ञानिक अध्ययन को बढ़ावा देना है।
सामाजिक सरोकार से वैदिक साधना तक
देवऋषि का प्रारंभिक रचनात्मक जीवन सामाजिक मुद्दों से जुड़े गीतों और दक्षिण भारतीय फिल्मों के निर्माण में बीता। विशेष रूप से स्वच्छ भारत अभियान से जुड़े गीतों, जैसे ‘सदानीरा’, ने भोपाल और इंदौर जैसे शहरों में स्वच्छता को लेकर जन-जागरूकता फैलाने में भूमिका निभाई। इन्हीं वर्षों में उन्हें वैदिक मंत्र विज्ञान और भारतीय संस्कृति के प्रति गहरी रुचि उत्पन्न हुई, जिसने आगे चलकर उन्हें आध्यात्मिक शोध और साधना की ओर प्रेरित किया।
नाद योग और ध्वनि चिकित्सा पर अनुसंधान
सनातन विजडम फाउंडेशन के अंतर्गत देवऋषि द्वारा 'नाद योग रिसर्च काउंसिल' (NYRC) की स्थापना की गई है। यह संस्था वैदिक मंत्रों, ध्वनि चिकित्सा, और नाद योग को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझने के लिए कार्य कर रही है। संस्था द्वारा मानसिक स्वास्थ्य, नींद विकार, तनाव प्रबंधन और ध्यान के प्रभाव जैसे विषयों पर अनुसंधान किया जाएगा। इसके लिए न्यूरो रिस्पॉन्स, बायोमैट्रिक संकेतों और ध्वनि आवृत्तियों के प्रभावों का विश्लेषण प्रस्तावित है।
साहित्यिक और सांस्कृतिक योगदान
देवऋषि का साहित्यिक योगदान भी उल्लेखनीय रहा है। उनकी प्रमुख पुस्तकों में 'रामराजा', 'शाकरी विक्रमादित्य', और 'द कृष्णा इफेक्ट' शामिल हैं, जो वैदिक दर्शन और आधुनिक यथार्थ के बीच संवाद स्थापित करने का प्रयास करती हैं। इसके अतिरिक्त, देवऋषि द्वारा स्थापित 'महागाथा' प्रोडक्शन कंपनी धार्मिक-सांस्कृतिक फिल्मों और गीतों के निर्माण में सक्रिय है। उनकी पुस्तक 'रामराजा' पर आधारित एक फिल्म की तैयारी दक्षिण भारतीय निर्देशक भरत चौधरी के सहयोग से चल रही है, जिसकी शूटिंग सितंबर में अयोध्या और मध्य प्रदेश में शुरू होने की योजना है। फिल्म का शीर्षक गीत प्रसिद्ध गायक शान ने गाया है।
वैश्विक संस्थाओं के साथ संवाद का प्रयास
देवऋषि का मानना है कि मंत्र और ध्वनि आधारित चिकित्सा पद्धतियाँ वैश्विक स्वास्थ्य परिदृश्य में सकारात्मक भूमिका निभा सकती हैं। इसी उद्देश्य से वे विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), यूनेस्को, और संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाओं के साथ सहयोग की संभावनाएँ तलाश रहे हैं। उनका उद्देश्य भारतीय ज्ञान परंपरा को वैज्ञानिक प्रमाणों के साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रस्तुत करना है।