Amla Navami: महिलाएं क्यों करती हैं इसदिन व्रत, जानें व्रत के लाभ और आंवला नवमी की व्रत कथा
By गुलनीत कौर | Published: November 17, 2018 07:52 AM2018-11-17T07:52:29+5:302018-11-17T07:52:29+5:30
शास्त्रों के अनुसार आंवला नवमी के दिन व्रत एवं पूजन किया जाता है। सुहागन महिलाएं इसदिन व्रत करती हैं। सतना प्राप्ति और संतान के सुखी जीवन की कामना के लिए इसदिन महिलाओं द्वारा व्रत और पूजन किया जाता है।
हिन्दू धर्म में कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को 'आंवला नवमी' का पर्व मनाया जाता है। इसदिन महिलाओं द्वारा पूरे दिन का व्रत किया जाता है और आंवला के वृक्ष के नीचे बैठकर भगवान की पूजा की जाती है। इस साल यह व्रत 17 नवंबर, दिन शनिवार को पड़ रहा है।
आंवला नवमी के दिन हिन्दू महिलाएं स्नान करके, साफ-सुथरे कपड़े पहनकर आंवला के वृक्ष के नीचे जाती हैं। यहां पूजा की आवश्यक सामग्री अर्पित करती हैं। पेड़ की जड़ों में दूध और जल अप्रीत करती हैं और इस पवित्र वृक्ष की परिक्रमा करते हुए पूजा पूरी करती हैं।
क्यों मनाते हैं आंवला नवमी?
शास्त्रों के अनुसार आंवला नवमी के दिन व्रत एवं पूजन किया जाता है। सुहागन महिलाएं इसदिन व्रत करती हैं। सतना प्राप्ति और संतान के सुखी जीवन की कामना के लिए इसदिन महिलाओं द्वारा व्रत और पूजन किया जाता है। आइए आपको इस पर्व की कथा बताते हैं।
आंवला नवमी की व्रत कथा
एक बार की बात है, एक वैश्य दंपत्ति थे जो संतान के सुख से वंचित थे। पति-पत्नी दोनों ही चाहते थे कि उन्हें जल्द से जल्द संतान का सुख प्राप्त हो ताकि उनका वंश आगे बढ़ सके। एक बार पत्नी की पड़ोसन ने उसे एक सुझाव दिया कि तुम भैरव के नाम से एक नौजवान की बलि चढ़ा दो, तुम्हें अवश्य ही पुत्र की प्राप्ति होगी।
पत्नी ने इस बलि के बारे में अपने पति को बताया तो वह क्रिधित हो उठा और पत्नी से ऐसा काम करने से सख्त मना किया। किन्तु पत्नी फिर भी ना माने। वह रोजाना मौक़ा खोजती रही कि कब उसे कोई नौजवान मिले जिसकी वह बलि दी सके।
एक दिन उसे सुनसान जगह पर एक कुंवारी कन्या दिखाई दी। उसने उसे कुएं में धकेल दिया और उसके शव को भैरव देवता के सामने बलि के रूप में चढ़ा दिया। अब उसे लगा कि भैरव देवता उसकी बलि से प्रसन्न होंगे और उसे संतान सुख देनेगे, परंतु उसे विपरीत परिणाम मिले।
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उसके पूरे शरीर पर कोढ़ आ गया और जिस कन्या का उसने वध किया था उसकी भटकती आत्मा उसे हर रात सताने लगी। इस सबसे परेशान होकर उसने अपने पति को सारा सच बताया। पति ने कहा कि शास्त्रों के अनुसार गौवध, ब्राह्यण वध तथा बाल वध करने वाला इंसान महापापी होता है।
इस महापाप की मुक्ति सिर्फ और सिर्फ गंगा स्नान एवं मां गंगा की तपस्या से ही मिलती है, उसने पत्नी से कहा कि तुम गंगा किनारे जाओ। कुछ दिन तपस्या करो। अपनी भूल की क्षमा मांगो और गंगा में स्नान कर अपने पापों से मुक्ति पाओ।
पत्नी ने ठीक वैसा ही किया जैसा उसके पति ने कहा था। बहुत दिनों की तपस्या के बाद मां गंगा प्रकट हुई और उन्होंने उस वैश्य पत्नी को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला के वृक्ष की पूजा करने को कहा।
वैश्य पत्नी ने आज्ञा पाकर व्रत किया और आंवला के वृक्ष का पूजन भी किया। व्रत के परिणाम से उसका कोढ़ी शरीर ठीक हो गया। भटकती आत्मा ने उसे परेशान करना बंद कर दिया। इतना ही नहीं, मां गंगा के आशीर्वाद से उसे जल्द ही पुत्र की भी प्राप्ति हुई।
इसी कथा को आधार मानते हुए हिन्दू महिलाओं द्वारा आंवला नवमी का व्रत किया जाता है।