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राजस्थानः राहुल गांधी की बढ़ती सियासी ताकत से बेचैन क्यों हैं कुछ नेता?

By प्रदीप द्विवेदी | Updated: December 17, 2018 16:50 IST

राजस्थान सहित तीन राज्यों के चुनावों ने राहुल गांधी के लिए संभावनाओं के द्वार खोल दिए हैं। इस वक्त आधा दर्जन से ज्यादा ऐसे राज्य हैं जहां कांग्रेस, बगैर महागठबंधन के भी बड़ी कामयाबी हांसिल कर सकती है।

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राजस्थान में कांग्रेस की नई सरकार का शपथ ग्रहण समारोह आयोजित हुआ। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने शपथ ग्रहण की, लेकिन यह मौका इतना भर नहीं था, यह मौका था- गैर भाजपाई एकता प्रदर्शित करने का। एकता प्रदर्शित भी हुई। इस अवसर पर एचडी देवेगौड़ा, शरद यादव, शरद पवार, चन्द्रबाबू नायडू, फारूक अब्दुल्ला सहित अनेक गैर कांग्रेसी बड़े नेता मौजूद थे, जो 2019 में केन्द्र से भाजपा सरकार को हटाना चाहते हैं, लेकिन जिनको सबकी नजरें तलाश रही थी- मायावती और ममता बनर्जी, वे नजर नहीं आई और न ही कर्नाटक जैसा विपक्षी एकता का प्रदर्शन दिखाई दिया। एक बार फिर यह राजनीतिक सच उभर कर सामने आया कि राहुल गांधी की बढ़ती सियासी ताकत से पीएम नरेन्द्र मोदी और अमित शाह ही नहीं, मायावती, ममता बनर्जी जैसे कुछ और नेता भी बेचैन हैं। दरअसल, पीएम नरेन्द्र मोदी और अमित शाह देश की राजनीति में गांधी परिवार के ग्लैमर से परेशान हैं और यही वजह है कि इन साढ़े चार वर्षों में दोनों भाजपा नेता हर मौके पर गांधी परिवार पर निशाना साधते रहे। शायद इन्हें आशंका है कि यदि एक बार राहुल गांधी दिल्ली की गद्दी पर बैठ गए तो दशकों तक उन्हें हटाना मुश्किल हो जाएगा?विपक्ष में भी कई ऐसे नेता हैं जो पीएम बनने का सपना पाले बैठे हैं और इस समय ऐसे सियासी हालात हैं कि यदि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ताकतवर हो कर नहीं उभरते हैं तो उनका सपना साकार हो सकता है। 

यही कारण है कि मायावती, ममता बनर्जी जैसे नेता महागठबंधन को महत्व नहीं दे रहे हैं। इन नेताओं की सबसे बड़ी परेशानी यह है कि इनके प्रभाव क्षेत्र में इतनी भी लोकसभा सीटें नहीं हैं कि पचास सीटों की जीत का आंकड़ा भी पार कर सकें, जबकि आज के सियासी माहौल में कांग्रेस अगले लोस चुनाव में एक सौ सीटों का आंकड़ा तो पार कर ही लेगी। ऐसी स्थिति में यदि विपक्ष की सरकार बनती है, तब भी सबसे बड़े दल कांग्रेस को छोड़ कर किसी और दल का पीएम बनना संभव नहीं हो पाएगा। मायावती ने तो इसी कारण से कांग्रेस से अलग, राजस्थान सहित तीन राज्यों में चुनाव लड़ा था, किन्तु अपेक्षित कामयाबी नहीं मिली।

कुछ गैर भाजपाई नेता नहीं चाहते कि चुनाव से पहले महागठबंधन की ओर से राहुल गांधी को पीएम का उम्मीदवार घोषित किया जाए, क्योंकि उन्हें उम्मीद है कि केन्द्र में कर्नाटक विस चुनाव जैसी विषम स्थिति भी बन सकती है और ऐसे समय में उन्हें पीएम बनने का अवसर मिल सकता है।

राजस्थान सहित तीन राज्यों के चुनावों ने राहुल गांधी के लिए संभावनाओं के द्वार खोल दिए हैं। इस वक्त आधा दर्जन से ज्यादा ऐसे राज्य हैं जहां कांग्रेस, बगैर महागठबंधन के भी बड़ी कामयाबी हांसिल कर सकती है। इनके अलावा दक्षिण भारत के भी कुछ राज्य हैं जहां के क्षेत्रीय दल खुलकर राहुल गांधी के साथ आते जा रहे हैं।

इस वक्त उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल, दो ऐसे राज्य हैं जहां क्षेत्रीय दलों द्वारा भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस को भी आगे बढ़ने से रोकने के प्रयास हो रहे हैं, लेकिन तीन राज्यों के नतीजे बता रहे हैं कि इन क्षेत्रीय दलों के बड़े वोट बैंक- मुस्लिम और दलित, भी अब कांग्रेस की ओर बढ़ रहे हैं, क्योंकि यह सियासी धारणा प्रबल होती जा रही है कि केन्द्र में पीएम मोदी की भाजपा सरकार को टक्कर देने में तो केवल कांग्रेस ही सक्षम है। यदि इस धारणा ने जोर पकड़ लिया तो यूपी, बंगाल में साथ रख कर कांग्रेस को सियासी बौंसाई बनाने की कोशिशें ढेर हो जाएंगी। यही कारण भी हैं कि राहुल गांधी की बढ़ती सियासी ताकत से कई गैर कांग्रेसी नेता बेचैन होते जा रहे हैं!

टॅग्स :राहुल गांधीकांग्रेस
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