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MP में विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका अहम, 22 बागी विधायकों का भविष्य दांव पर, शिवराज को सीएम पद के लिए करना होगा इंतजार!

By हरीश गुप्ता | Updated: March 13, 2020 08:13 IST

मध्य प्रदेश विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर कोई रुख अपनाने से पहले विधानसभा अध्यक्ष को कांग्रेस के उन 22 विधायकों के भाग्य का फैसला करना होगा, जिन्होंने अपने इस्तीफे के पत्र उन्हें भेजे हैं.

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ठळक मुद्देमध्यप्रदेश में सरकार बनाने की दिशा में आगे बढ़ने को लेकर भाजपा नेतृत्व काफी फूंक-फूंककर कदम रख रहा है. राज्य की कमलनाथ सरकार को हटाकर वैकल्पिक सरकार बनाने का भाजपा का दांव संभवत: एक लंबी खिंचने वाली लड़ाई का रूप ले सकता है.

मध्यप्रदेश में सरकार बनाने की दिशा में आगे बढ़ने को लेकर भाजपा नेतृत्व काफी फूंक-फूंककर कदम रख रहा है. राज्य की कमलनाथ सरकार को हटाकर वैकल्पिक सरकार बनाने का भाजपा का दांव संभवत: एक लंबी खिंचने वाली लड़ाई का रूप ले सकता है. हालांकि भाजपा आलाकमान ने कमलनाथ सरकार के गिरने की स्थिति में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को विधायक दल का नेतृत्व करने के लिए हरी झंडी दिखा दी है, लेकिन फिलहाल यह तय नहीं है कि ऐसा कब होगा. यानी राज्य में भाजपा सरकार गठित होने की स्थिति कब आएगी.

चौहान तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और हाल के समय में उन्होंने पार्टी आलाकमान का फिर एक बार विश्वास हासिल किया है. प्रदेश भाजपा में वे सर्वाधिक स्वीकार्य नेता हैं और वर्तमान में प्रदेश भाजपा विधायक दल के नेता गोपाल भार्गव को उनके लिए उम्मीद से कहीं पहले रास्ता खाली करना पड़ सकता है. लेकिन, फिलहाल राज्य की राजनीति का सबसे अहम पांसा विधानसभा अध्यक्ष नर्मदा प्रसाद प्रजापति के पास है.

विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर कोई रुख अपनाने से पहले विधानसभा अध्यक्ष को कांग्रेस के उन 22 विधायकों के भाग्य का फैसला करना होगा, जिन्होंने अपने इस्तीफे के पत्र उन्हें भेजे हैं. नि:संदेह नियमों के अनुसार, किसी अन्य कामकाज से पहले अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा कराने के लिए विधानसभा अध्यक्ष बाध्य हैं. लेकिन ऐसा करने से पहले उन्हें इन 22 विधायकों के भाग्य का फैसला करना होगा.

विधानसभा अध्यक्ष की ओर से इन सभी विधायकों से एक-एक कर व्यक्तिगत रूप से मुलाकात करने के लिए कहा जाएगा. इसके साथ ही इन विधायकों के समक्ष अध्यक्ष को इस बात से संतुष्ट करने की चुनौती भी होगी कि वे स्वेच्छा से सदन की सदस्यता छोड़ रहे हैं. हाल ही में कर्नाटक में और उससे पूर्व लोकसभा में हुए घटनाक्रमों के परिप्रेक्ष्य में देखें तो इस कार्रवाई में लंबा समय लग सकता है.

लोकसभा में हुए घटनाक्रम को देखें तो वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के सांसदों ने लोकसभा से 15 मार्च, 2018 को इस्तीफा दिया था और तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने इसे स्वीकार करने में लगभग तीन महीने का समय लिया था. लेकिन अब मध्यप्रदेश के मामले में विधानसभा अध्यक्ष को 22 विधायकों के इस्तीफे पर एक तय अवधि में फैसला लेना होगा, क्योंकि अविश्वास प्रस्ताव की तलवार लटक रही होगी.

हालांकि परिस्थिति कुछ पेचीदा होने की संभावना है, क्योंकि राज्यसभा चुनाव के तहत 26 मार्च को मतदान होना है. इसके चलते विधानसभा अध्यक्ष प्रजापति को बागी विधायकों के भाग्य का फैसला 26 मार्च तक करना होगा. भाजपा के एक नेता ने कहा कि यदि बागी विधायकों के इस्तीफे स्वीकार नहीं किए जाते, तो सभी 22 विधायक कांग्रेस सरकार के खिलाफ मतदान करेंगे. इस बीच, कांग्रेस भी अपनी रणनीति बनाने में जुटी है और भाजपा के समक्ष अपने विधायकों को अपने पाले में बनाए रखने की भी चुनौती है. 

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