राजस्थान सियासी संकटः विधानसभा का सत्र 14 अगस्त से, अब कांग्रेसी विधायकों पर निर्भर प्रदेश सरकार का सियासी भविष्य!
By प्रदीप द्विवेदी | Published: July 30, 2020 05:10 AM2020-07-30T05:10:56+5:302020-07-30T05:10:56+5:30
सीएम गहलोत के पास बहुमत तो है ही, वे कांग्रेस के अधिकृत मंच पर भी हैं, इसलिए मजबूत बन कर उभरे हैं.
राजस्थान पाॅलिटिकल ड्रामे के बीच राज्यपाल कलराज मिश्र ने राजस्थान विधानसभा के पंचम सत्र को मंत्रिमंडल द्वारा भेजे गए 14 अगस्त से आरंभ करने के प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी है. उल्लेखनीय है कि राजस्थान के सीएम गहलोत के आवास पर चली मंत्रिमंडल की बैठक के बाद राज्यपाल कलराज मिश्र के पास राजस्थान विधानसभा का सत्र 14 अगस्त से शुरू करने का संशोधित प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया था.
आगे क्या होगा, इस पर तत्काल अनुमान लगाना इसलिए जल्दीबाजी होगी, क्योंकि सभी खेमे पूरी तरह से सुरक्षित नहीं हैं. विधायक संख्याबल के आधार पर ही प्रदेश की राजनीति करवट लेगी. इस वक्त तो सियासी हालात ऐसे हैं-
अशोक गहलोतः सीएम गहलोत सियासी संकट शुरू होने के पहले दिन से ही बहुमत में हैं, लेकिन फ्लोर टेस्ट तक इस बहुमत की सुरक्षा करना बड़ी चुनौती है. विधानसभा सत्र जल्दी-से-जल्दी बुलाने को लेकर वे लगातार सक्रिय थे, लेकिन गतिरोध बना हुआ था. इस गतिरोध को समाप्त करने के लिए एक रास्ता अदालत का भी था, परन्तु इसमें भी समय निकलने और उलझने की संभावना ज्यादा थी, लिहाजा सीएम गहलोत ने टकराव का रास्ता छोड़ कर 14 अगस्त से सत्र का प्रस्ताव भेजा, जो मंजूर हो गया.
सचिन पायलटःउनके पास प्रारंभ से ही विधायक संख्याबल कम था, यही नहीं, वे कांग्रेस के अधिकृत मंच पर भी नहीं हैं, लिहाजा बागी विधायकों को संभालना उनके लिए आसान नहीं है. हो सकता है कि गहलोत खेमे में भी पायलट के कुछ समर्थक हों, किन्तु वर्तमान हालात में सियासी समीकरण इतना उलझ गया है कि उनका खुलकर सचिन पायलट को साथ मिलना बेहद मुश्किल है, जबकि यदि दो-चार विधायक भी पायलट खेमे से निकल गए तो फिर कुछ खास सियासी संभावनाएं सचिन पायलट के लिए नहीं बचेंगी.
बीजेपीः इस सारे पाॅलिटिकल ड्रामे में बीजेपी को केवल बदनामी ही मिली है. बीजेपी नेताओं का इस संकट से पल्ला झाड़ लेने के बावजूद यह साफ हो गया है कि इस सियासी खेल के असली खिलाड़ी कौन हैं.
हालांकि, विधानसभा सत्र में देरी के मुद्दे पर बीजेपी एक तरह से कामयाब रही है, परन्तु इसका कोई बड़ा फायदा मिलेगा, ऐसा लगता नहीं है. पायलट खेमे के समर्थक बढ़ने के बजाय, कम होने की आशंका ज्यादा है. यही नहीं, बीजेपी के इस सियासी खेल में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे कितना साथ देंगी, यह भी बड़ा प्रश्नचिन्ह है.
बीजेपी के लिए उम्मीद की किरण तो केवल अदालत में चल रहे विभिन्न मामले हैं, जिनमें से कोई फैसला फ्लोर टेस्ट से पहले गहलोत खेमे के खिलाफ हो जाता है, तो प्रदेश की सियासी तस्वीर बदल सकती है!