Election FlashBack: पानी पी कर पेट भर सको तो ही चुनाव प्रचार में आना?

By प्रदीप द्विवेदी | Published: November 18, 2018 05:09 AM2018-11-18T05:09:41+5:302018-11-18T05:09:41+5:30

आजादी के बाद पार्टियां कार्यकर्ताओं को केवल झंडे, पर्चे, पोस्टर आदि ही देती थी. बाकी की व्यवस्थाएं जुगाड़ पर निर्भर थीं?

Rajasthan Election Flash back: how campaign work on those days | Election FlashBack: पानी पी कर पेट भर सको तो ही चुनाव प्रचार में आना?

Election FlashBack: पानी पी कर पेट भर सको तो ही चुनाव प्रचार में आना?

बीसवीं सदी का अव्यवसायिक चुनाव प्रचार का युग समाप्त हो चुका है, अब प्राफेश्नल इलैक्शन कैंपिंग की एक्कीसवीं सदी है. हालांकि, बीसवीं सदी में भी आपातकाल के बाद हुए चुनाव तक ही कार्यकर्ता अपने खर्चे पर चुनाव प्रचार करते थे, लेकिन अस्सी के दशक में साइकिल का समय कमजोर पड़ा और मोटरसाइकिल का जोर बढ़ा तो पेट्रोल मनी के साथ ही चुनाव प्रचार का व्यवसायिक युग प्रारंभ हो गया. अब तो बगैर खर्चे-पानी के कोई एक कदम भी आगे नहीं बढ़ता!

आजादी के बाद पार्टियां कार्यकर्ताओं को केवल झंडे, पर्चे, पोस्टर आदि ही देती थी. बाकी की व्यवस्थाएं जुगाड़ पर निर्भर थीं?

अस्सी के दशक में राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी का गांवों में प्रचार चल रहा था. कई सभाएं करने के बाद दोपहर में एक गांव में पहुंचे, जहां खाने की व्यवस्था थी. निजी स्तर पर भोजन की व्यवस्था करने वाले नेता को सौ-डेढ़ सौ लोगों के खाने की सूचना दी थी और पहुंच गए तीस सौ से ज्यादा लोग. अब, अव्यवस्था तो होनी ही थी. किसी को केवल दाल मिली तो किसी को रोटी, किसी को चावल मिले तो किसी को सब्जी. कुछ नेता ग्लास में दाल और हाथ में रोटी लेकर लंच कर रहे थे तो कुछ प्लेट में सब्जी लेकर शेष खाद्य सामग्री की तलाश में जुटे थे. कुछ कटोरी से पानी पी कर ही काम चला रहे थे!

इस नजारे को देख कर वहां मौजूद जिला प्रमुख पवन कुमार रोकड़िया ने कार्यकर्ताओं को कहा- भाई, धूल फांक, पानी पी कर पेट भर सको तो ही चुनाव प्रचार में आना! वह नेताओं और अपने दल के प्रति समर्पण का युग था, इसलिए ऐसी स्थिति के बावजूद अगले दिन फिर नए जोश के साथ कार्यकर्ता चुनाव प्रचार में मौजूद थे. आज न तो नेताओं के प्रति निष्ठा बची है और न ही दल के प्रति समर्पण, मतलब... खर्चे-पानी की व्यवस्था नहीं हो तो- गया प्रचार पानी में! 

Web Title: Rajasthan Election Flash back: how campaign work on those days

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