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झारखंड में दलबदलुओं को जनता ने सिखाया सबक, कुछ को छोड़कर अधिकतर औंधे मुंह गिरे

By एस पी सिन्हा | Updated: December 25, 2019 04:14 IST

राज्य में ऐन वक्त पर पार्टी बदलने वाले शेष 11 उम्मीदवार पूरी तरह धराशायी हो गये. दरअसल 2019 के चुनाव से पहले विभिन्न पार्टियों में भगदड की स्थिति थी. दल बदलने वाले लगभग सभी लोग टिकट कटने से नाराज थे. इनमें राधाकृष्ण किशोर व फूलचंद मंडल जैसे वर्तमान विधायक भी थे.

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ठळक मुद्देचुनाव हारने वालों में इन दोनों के अलावा अंतु तिर्की, प्रदीप बलमुचु व शालिनी गुप्ता सहित अन्य प्रत्याशी शामिल हैं.प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहे सुखदेव भगत और प्रदीप बलमुचू को भी हार का सामना करना पडा.

झारखंड विधानसभा चुनाव में जनता ने दलबदलुओं को पूरी तरह से नकार दिया. पार्टी बदल कर चुनाव जीतने की उम्मीद पाले राजनीति के इन मौसम विज्ञानियों का अनुमान गलत साबित हुआ है. जिन 16 लोगों ने 2019 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पार्टी बदली थी, उनमें से ज्यादातर को हार का सामना करना पडा. 

राज्य में ऐन वक्त पर पार्टी बदलने वाले शेष 11 उम्मीदवार पूरी तरह धराशायी हो गये. दरअसल 2019 के चुनाव से पहले विभिन्न पार्टियों में भगदड की स्थिति थी. दल बदलने वाले लगभग सभी लोग टिकट कटने से नाराज थे. इनमें राधाकृष्ण किशोर व फूलचंद मंडल जैसे वर्तमान विधायक भी थे. चुनाव हारने वालों में इन दोनों के अलावा अंतु तिर्की, प्रदीप बलमुचु व शालिनी गुप्ता सहित अन्य प्रत्याशी शामिल हैं.

पूर्व मंत्री भानुप्रताप शाही को छोडकर अन्य सभी ऐसे नेता चुनाव हार गये. इनमें से कई सीटिंग विधायक थे. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहे सुखदेव भगत और प्रदीप बलमुचू को भी हार का सामना करना पडा. पूर्व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ताला मरांडी भी चुनाव हार गये. विधानसभा में भाजपा के सचेतक रहे राधाकृष्ण किशोर को भी हार का सामना करना पडा. इन सभी ने टिकट के चलते चुनाव से ठीक पहले सियासी घर बदल लिया था.

हालांकि अपनी पार्टी नौजवान संघर्ष मोर्चा छोडने वाले भवनाथपुर के भाजपा प्रत्याशी भानु प्रताप शाही, झारखंड विकास मोर्चा छोड कर राजद में आने वाले चतरा के प्रत्याशी सत्यानंद भोक्ता, आजसू छोड कर झारखंड मुक्ति मोर्चा में आये तमाड के उम्मीदवार विकास मुंडा, भाजपा छोड कांग्रेस में आये बरही प्रत्याशी उनाशंकर अकेला और झामुमो छोड कर भाजपा आये जय प्रकाश भाई पटेल (मांडू) इनमें अपवाद रहे. इन सभी को जनता का आशीर्वाद मिल गया है. 

 जबकि राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रहे पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखदेव भगत को लोहरदगा सीट पर हार का सामना करना पडा. चुनाव से ठीक पहले वे कांग्रेस का दामन छोडकर भाजपा में शामिल हो गये थे. भाजपा ने उन्हें लोहरदगा से मैदान में उतारा. लेकिन वे वर्तमान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रामेश्वर उरांव से चुनाव हार गये. सुखदेव भगत लोहरदगा से सीटिंग विधायक भी थे. इसी तरह चुनाव से ठीक पहले झामुमो को छोडकर भाजपा में शामिल होने वाले कुणाल सारंगी भी बहरागोडा सीट से चुनाव हार गये. उन्हें झामुमो के समीर मोहंती ने हराया. कुणाल बहरागोडा के सीटिंग विधायक थे. कांग्रेस छोड भाजपा में शामिल होने वाले मनोज यादव को भी बरही की जनता ने चुनाव में सबक सिखाया और हार का उपहार दिया. पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रदीप बलमुचू जिस आस से कांग्रेस छोडकर आजसू में शामिल हुए, वो पूरी नहीं हुई.

टिकट के चलते उन्होंने आजसू का दामन थामा. लेकिन घाटशिला की जनता ने उन्हें नकार दिया. पूर्व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ताला मरांडी को भी पाला बदलना काम ना आया. भाजपा छोडकर झामुमो में चले गये, लेकिन बोरियो की जनता को पाले में करने में नकाम रहे और चुनाव हार गये. इसी तरह फूलचंद मंडल भाजपा छोडकर झामुमो में शामिल हो गये थे. झामुमो ने उन्हें सिंदरी से उम्मीदवार बनाया, लेकिन वे जीत नहीं पाए.

फूलचंद यहां के सीटिंग विधायक थे. टिकट के लिए झामुमो छोडकर झाविमो जाने वाले शशिभूषण सामड को भी हार का सामना करना पडा. वे चक्रधरपुर से सीटिंग विधायक थे.

इस बार पाला बदलने वालों में कई ऐसे भी थे, जिन्होंने विधायक रहते भाजपा की सदस्याता ले ली. इनमें कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष रहे लोहरदगा के विधायक सुखदेव भगत, बरही सीट से कांग्रेस के विधायक मनोज यादव, बहरागोडा से झामुमो के विधायक कुणाल षाड़ंगी तथा लातेहार से झाविमो विधायक प्रकाश राम, शामिल हैं.

दूसरी ओर भाजपा में रहे छतरपुर के विधायक राधाकृष्ण किशोर तथा सिंदरी के विधायक फूलचंद मंडल ने भाजपा छोड क्रमश: आजसू व झामुमो की सदस्यता ग्रहण कर लिया था.

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