पीएम मोदी तो मस्जिद भी गए, मजार पर चादरें भी भेजी और फूल भी चढ़ाए हैं!, लेकिन...
By प्रदीप द्विवेदी | Published: July 28, 2020 09:37 PM2020-07-28T21:37:46+5:302020-07-28T21:38:48+5:30
औवेसी ने ट्वीट किया है- प्रधानमंत्री का भूमि पूजन में शामिल होना उनके संवैधानिक पद की शपथ का उल्लंघन हो सकता है. धर्मनिरपेक्षता हमारे संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है.
जयपुरः लंबे इंतजार के बाद अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर श्रीराम मंदिर का निर्माण हो रहा है. आगामी 5 अगस्त को अयोध्या में श्रीराम मंदिर के लिए भूमि पूजन होना है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल होंगे.
लेकिन, एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी को पीएम मोदी का अयोध्या जाना रास नहीं आ रहा है, लिहाजा पीएम मोदी के इस कदम को ओवैसी ने संविधान का उल्लंघन करार दिया है. औवेसी ने ट्वीट किया है- प्रधानमंत्री का भूमि पूजन में शामिल होना उनके संवैधानिक पद की शपथ का उल्लंघन हो सकता है. धर्मनिरपेक्षता हमारे संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है.
लेकिन, धर्मनिरपेक्षता किसी व्यक्ति की धार्मिक आस्था पर तो प्रतिबंध नहीं लगाती है. औवेसी, पीएम मोदी के श्रीराम मंदिर जाने पर तो प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं, परन्तु नरेन्द्र मोदी तो प्रधानमंत्री बनने के बाद देश-विदेश की अनेक मस्जिदों में भी गए हैं, मजार के लिए चादरें भी भेजी हैं और फूल भी चढ़ाए हैं.
खबरें थी कि वर्ष 2017 में मोदी जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे के साथ अहमदाबाद में 16वीं सदी में बनी सिदी सैयद की जाली मस्जिद में गए थे. वे विदेश यात्रा के दौरान वे इंडोनेशिया के इस्तकलाल मस्जिद भी गए थे, तो वर्ष 2018 की शुरूआत में पीएम मोदी ओमान के मस्कट में सुल्तान कबूज ग्रांड मस्जिद में गए थे.
यही नहीं, वे सिंगापुर की लगभग दो सौ साल पुरानी चिलुया मस्जिद भी गए थे. इतना ही नहीं, पीएम मोदी प्रसिद्ध सूफी संत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह, अजमेर में भी चादर भेजते रहे हैं. खबरें तो यह भी थीं कि पीएम मोदी वर्ष 2017 में म्यांमार यात्रा के दौरान बादशाह बहादुर शाह जफर की मजार पर भी गए थे, जहां उन्होंने फूल भी चढ़ाए थे और इत्र भी छिड़का था.
क्या यह सब भी संवैधानिक पद की शपथ का उल्लंघन माना जा सकता है. दरअसल, धर्मनिरपेक्षता का भावार्थ है- स्वधर्म स्वाभिमान, शेष धर्म सम्मान, लिहाजा यदि श्रीराम मंदिर भूमि पूजन में पीएम मोदी शामिल होते हैं, तो यह किसी भी रूप में संवैधानिक पद की शपथ का उल्लंघन नहीं माना जा सकता है.
यह बात अलग है कि श्रीराम मंदिर भूमि पूजन का पहला हक या तो सनातन धर्म के सर्वोच्च धर्मगुरु शंकराचार्य का है या फिर श्रीराम मंदिर आंदोलन का नेतृत्व करने वाले बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी का है!
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