किसानों पर गोली, CM शिवराज के लिए खड़ी कर सकती है मुश्किल, दिग्गी राजा भी गवां बैठे थे कुर्सी
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: June 23, 2018 05:54 PM2018-06-23T17:54:52+5:302018-06-25T10:18:27+5:30
क्षेत्रफल से लिहाज़ से भारत के दूसरे सबसे बड़े प्रदेश यानी मध्य प्रदेश की सत्ता की लड़ाई भले दो राजनैतिक दलों के बीच ही रही हो लेकिन सत्ता हासिल करने के दौरान उतार चढ़ाव बहुत रहा है।
भोपाल, 23 जून: क्षेत्रफल से लिहाज़ से भारत के दूसरे सबसे बड़े प्रदेश यानी मध्य प्रदेश की सत्ता की लड़ाई भले दो राजनैतिक दलों के बीच ही रही हो लेकिन सत्ता हासिल करने के दौरान उतार चढ़ाव बहुत रहा है। इतना ही नहीं मध्य प्रदेश की जनता के बीच नेताओं को सक्रीय बनाए रखने के लिए मुद्दों की कमी कभी नहीं हुई। वर्तमान साकार की ही बात करें तो कृषि सम्बंधी समेत ऐसे तमाम मुद्दे थे जिन पर सरकार ने कदम तो उठाए लेकिन उससे फायदा कितना हुआ यह आगामी चुनाव में ही स्पष्ट होगा।
किसानों को उनकी पैदावार का न्यूनतम समर्थन दिलाने के लिए शिवराज सरकार ने “भावान्तर योजना” शुरू की जिसकी मिली जुली प्रतिक्रया पूरे प्रदेश में रही। प्रदेश के किसानो के अनुसार भावान्तर योजना का लाभ सोयाबीन और आलू में तो मिला लेकिन हरी सब्जियों में नहीं। ऐसे ही सरकारी कर्मचारियों के लिए एक प्रावधान किया गया जिसके मुताबिक़ निवृत्ति की उम्र दो वर्ष बढ़ा दी गई हालांकि विपक्ष का कहना था कि यह बस चुनावी हित साधने के लिए किया गया था।
वर्तमान सरकार के कार्यकाल के दौरान दो ऐसी घटनाएं हुई जो निश्चित ही आगामी विधानसभा चुनावों को प्रभावित करेंगी। पहला व्यावसायिक परीक्षा मंडल में हुआ घोटाला और दूसरा मंदसौर में पुलिस द्वारा किसानों पर चलाई गई गोलियां। व्यापम में 100 से अधिक पत्रकारों की ह्त्या हुई और मंदसौर में 6 किसान पुलिस की गोलीबारी में मारे गए। माना जाता है कि दिग्विजय सरकार के सत्ता से बेदखल होने का एक बड़ा कारण मुलताई में हुई किसानों पर हुई गोलीबारी भी था जिसमें कुल 24 किसान मारे गए थे और 150 घायल।
लेकिन यह बात भी सही है कि बिना नीतियों के मध्य प्रदेश में जैसे प्रदेश में दो कार्यकाल नहीं पूरा किया जा सकता। लेकिन इसका अर्थ यह भी नहीं है कि सरकार जनता की हर कसौटी पर खरी उतर रही हो। प्रदेश में एंटी इन्कम्बंसी का माहौल ज़रूर है जिसका सीधा श्रेय मध्य प्रदेश में कांग्रेस के चुनावी रथ की अगुवाई कर रहे कमलनाथ झा को जाता है।
कांग्रेस के इस दिग्गज नेता ने चुनाव के कुछ महीनो पूर्व भले वापसी की हो लेकिन जनता ऐसी वापसी से होने वाले चुनावी हित बखूबी समझती है। इस चुनाव में कृषि से जुड़ा हर मुद्दा स्पष्ट रूप से अहम् होगा जिसका एक और मतलब साफ़ है कि चुनावी वायदे खेती बाड़ी के रास्ते हो कर ही जनता तक पहुंचेंगे।
भारतीय जनता पार्टी के साथ दो सकारात्मक बातें हैं इस चुनाव के लिहाज़ से, पहला पिछले दो पंचवर्षीय में स्पष्ट बहुमत और दूसरा कुछ क्षेत्रो में सार्थक नीतियाँ लागू करना। इन सबके बावजूद माहौल काफी हद तक भाजपा के पक्ष में नज़र नहीं आता और ऐसे अनेक क्षेत्र हैं जहां और कारगर नीतियों की आवश्यकता है।
कांग्रेस के साथ अच्छी बात यह है कि इस चुनाव में संगठन के लिहाज़ से वह व्यवस्थित हैं और इस चुनाव में हर वह मुद्दों पर बात की जिन पर शिवराज सरकार की नीतियाँ संतोषजनक नहीं थीं। ऐसे में जनता के लिये यह पहचानना और समझना ज़रूरी हो जाता है कि उनके लिए किस ओर जाना सही है?
रिपोर्ट: विभव देव शुक्ला