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​​​​​​​लोकसभा चुनाव में मोदी को होगा बड़ा नुकसान, हजारों साल पहले का अरस्तु सिद्धांत, 2019 में होगा सच?

By जनार्दन पाण्डेय | Updated: August 22, 2018 12:07 IST

इस वक्त करीब 60 से 70 करोड़ लोग मध्यम वर्गीय हैं। खास बात यह है कि यह तेजी से बढ़ रहा है।

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नई दिल्ली, 22 अगस्तः यूनान में 300 ईसा पूर्व की सदी में एक विद्वान उदय हुआ। उन्होंने भौतिकी, आध्यात्म, कविता, नाटक, संगीत, तर्कशास्त्र, राजनीति शास्त्र, नीतिशास्त्र, संचार, जीव विज्ञान समेत कई अन्य विषयों पर अपने सिद्धांत दिए। इसमें खासकर के राजनीति को लेकर दिए उनके सिद्धांतों के आधार पर उन्हें आधुनिक राजनीति का गुरु माना गया। उनका एक बेहद चर्चित सिद्धांत है, जो फिलहाल भारत में सच साबित होता दिखाई रहा है। इसका सबसे खास असर साल 2019 के लोकसभा चुनावों में देखने को मिल सकता है।

अरस्तु का सिद्धांत

अरस्तु का सिद्धांत है, किसी भी देश का मध्य वर्गीय वोटर सबसे ज्यादा महत्व रखने वाला राजनैतिक कम्यूनिटी है, यह गरीब और एलीट वर्ग के बीच में खड़ा सबसे ज्यादा संख्या बल वाला वह समुदाय होता है जो संतुलित और तार्किक शासन के लिए चुनी गई सरकारों को अनुशासित करता है।

भारत की मध्यवर्गीय जनसंख्या

हाल ही में द लोकल इंपैक्ट ऑफ ग्लोबलाइजेशन इन साउथ एंड साउथईस्ट एशिया ने भारतीय जनसंख्या पर एक लंबा शोध प्रकाशित किया है। इसमें बताया गया है कि भारत में इस वक्त करीब 60 से 70 करोड़ लोग मध्यम वर्गीय हैं। खास बात यह है कि यह तेजी से बढ़ रहा है। इसमें शहरों में काम करने वाले लोग भी शामिल हैं।

क्या मध्यम वर्ग नरेंद्र मोदी को सपोर्ट कर रहा है

यह एक बेहद अहम बात है कि भारतीय जनता पार्टी को प्रमुख रूप से सवर्ण और मध्यम वर्ग की पार्टी ही माना जाता है। इसी वर्ग के अपार सहयोग से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने अभूतपूर्व 325 सीटें जीतने में सफल हुई थी। लेकिन बीते चार सालों में मध्य वर्ग का भरोसा मोदी सरकार से दरका है। यह हम नहीं इंडिया टुडे का एक हालिया सर्वे कह रहा है।

सर्वे के मुताबिक जनवरी 2018 में करीब 57 फीसदी शहरी व मध्य वर्ग के लोग नरेंद्र मोदी के साथ थे, लेकिन जुलाई में यही प्रतिशत 47 पर आकर रुक गया है। जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में कई किसान आंदोलनों के बाद भी नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में कोई खासी कमी नहीं आई है। महज एक या दो फीसदी की नगण्य फीसदी की ही गिरावट आई है।

इसी बात को दूसरी भाषा में कहें कि हाल-फिलहाल दलितों और नीचे तबके को लुभाने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा उठाए गए कदम कारगर सा‌बित नहीं हो रहे हैं। बीजेपी को उसके आंतरिक सर्वे में पता चला कि उनके लिए परेशानी गांव बनने जा रहे हैं। लेकिन इंडिया टुडे के सर्वे में सामने आए आंकड़े उन्हें पूरी तरह नकारते हैं।

यहां अगर मध्यम वर्ग को थोड़े करीब से देखने की कोशिश करें तो पाएंगे कि बीते तीन वर्षों में इसकी ताकत घटी है। यूरोमनी इंटरनेशनल ने इस एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। इसमें पता चला था कि साल 1990 से 2015 के दौरान ऐसे भारतीयों की संख्या तेजी से बढ़ी थी जिनकी कमाई 50 हजार रुपये महीने होती है। रिपोर्ट के मुताबिक ऐसे लोगों की संख्या 25 लाख की तुलना में 50 लाख हो गई थी।

लेकिन अप्रत्याशित रूप से इसमें 2015 से कमी आ रही है। लोगों की कमाई में कमी आने के चलते लोगों में बजत कम हुई और मध्य वर्ग के निवेश पर इसका असर पड़ा। हालांकि ऐसी स्थिति में जब बाजार में पैसा कम है, तो मांग घट रही है। यानी कि वस्तुओं के मूल्य कम होने चाहिए। लेकिन दूसरी तरफ सरकारी नीतियों के चलते लगातार सामानों के मूल्य में इजाफा हुआ जा रहा है।

इसके पीछे कई अर्थशास्त्रियों का मानना है कि मोदी सरकार के फैसले जैसे नोटबंदी, जीएसटी व कुछ अन्य नीतियां हैं। जबकि दूसरी तरफ मूल्यों की कीमत बढ़ने, टैक्स, सब्‍सिडी खत्म करने, रोजगार की कमी आदि से मध्यम वर्ग में मोदी सरकार को लेकर खासी निराशा बढ़ रही है। और फिलहाल मोदी सरकार की ओर से महंगे तेल, फसलों की बढ़ी कीमत और कमजोर रुपए के साथ महंगाई इस तरह लौटी है कि रोकना मुश्किल है।

इंडिया टुडे अपनी संपादकीय में लिखता है कि पिछले दो दशकों में यह पहला मौका है जब भारत के मध्यम वर्गीय समाज में खपत और बचत दोनों में एकसाथ ऐसी गिरावट देखी जा रही है।

क्या अरस्तु का सिद्धांत होगा फलित?

मौजूदा स्थिति में अरस्तु का सिद्धांत बेहद प्रासंगिक हो गया है। उनका कहा था कि दुनिया की सबसे अच्छी सरकारें या संविधान वही हैं, जिनका नियंतत्रण मध्य वर्ग के हाथ में है। अन्यथा सरकारें या तो बहुत ही ज्यादा लोकलुभावन काम करने लगेंगी या फिर कुछ चंद लोगों की जागीर बन जाएंगी। गौर करके देखें तो विपक्ष इन्हीं दोनों पैमानों पर मोदी सरकार को घेरने में सफल होती दिखाई दे रही है। अविश्वास प्रस्ताव के दौरान जिस तरह से राफेल डील पर मोदी सरकार को विपक्ष ने घेरा और अमीरों को फायदा पहुंचाने का आरोप लगाया, उससे अभी भी मोदी सरकार उबर नहीं पाई है।

ऐसे में 2014 में कांग्रेस को सीधे से देश की राजनीति से बाहर करने की ओर अग्रसर मध्य वर्ग अब किस करवट बैठेगा, इसके लिए नरेंद्र मोदी ने लाल किले के प्रचीर से अपने कार्यकाल के आखिरी भाषण में आयुष्मान भारत जैसी योजनाएं फेंकी हैं। लेकिन यह उस नाराजगी से कितना उबार पाएगा, इसके लिए इंतजार करना पड़ेगा।

इसका असर अगर आगामी राजस्‍थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव जल्दी हो जाते हैं तब भी दिखाई देने लगेंगे, क्योंकि इन तीनों ही जगहों पर सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी है।

टॅग्स :लोकसभा चुनावनरेंद्र मोदीभारतीय जनता पार्टी (बीजेपी)
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