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हरियाणा विधानसभा चुनावः कार्यकाल पूरा होने से पहले ही 21 विधायकों ने छोड़ दिए अपने पद, भाजपा की ओर भागे

By बलवंत तक्षक | Updated: September 16, 2019 08:11 IST

Haryana Assembly Elections: यह भी पहली बार देखा गया कि विधायक चाहे इनेलो के हों, चाहे बसपा के, कांग्रेस हों या आजाद, दलबदल कर सब के सब भाजपा की तरफ ही भागे. 

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ठळक मुद्दे पांच साल का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही 21 विधायकों ने अपने पदों से इस्तीफे दे दिए हैं पांच विधायकों के इस्तीफे मंजूर किए जाने के बाद उन्हें अयोग्य ठहरा दिया गया हैविधायकों की बगावत के चलते इनेलो को विपक्ष के नेता का पद गंवाना पड़ा

हरियाणा विधानसभा में ऐसा पहली बार हुआ है कि पांच साल का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही 21 विधायकों ने अपने पदों से इस्तीफे दे दिए हों. ऐसा भी पहली बार देखने को मिला है कि पांच विधायकों के इस्तीफे मंजूर किए जाने के बाद उन्हें अयोग्य ठहरा दिया गया हो. यह भी पहली बार देखा गया कि विधायक चाहे इनेलो के हों, चाहे बसपा के, कांग्रेस हों या आजाद, दलबदल कर सब के सब भाजपा की तरफ ही भागे. 

विधायकों की बगावत के चलते इनेलो को विपक्ष के नेता का पद गंवाना पड़ा. पांच साल का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही सदन में इनेलो दूसरे से तीसरे और कांग्रेस तीसरे से दूसरे स्थान पर पहुंच कर विपक्ष के नेता पद की दावेदार हो गई हो. एक विधायक ने तो महीने भर के भीतर ही दो बार दलबदल लिया हो. यह भी पहली बार हुआ कि छह महीने से ज्यादा समय तक खाली सीट पर चुनाव ही नहीं कराया गया हो.

सदन से सबसे ज्यादा इस्तीफे इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के विधायकों ने दिए. चौटाला परिवार के दो फाड़ होने और जींद उप चुनाव में इनेलो उम्मीदवार की जमानत जब्त होने के बाद पार्टी में भगदड़ मच गई. अपने सुरिक्षत भविष्य के लिए एक-एक कर विधायक अपने पदों से इस्तीफे देते गए और भाजपा में शामिल होते गए.

भाजपा में शामिल होने वाले विधायकों में नलवा क्षेत्र के रणबीर सिंह गंगवा, हथीन के केहर सिंह रावत, फतेहाबाद के बलवान सिंह दौलतपुरिया, जुलाना के परिमंदर सिंह ढुल, रानिया के रामचंद्र कंबोज, रितया के रविंद्र बलियाला, सिरसा के मक्खन लाल सिंगला और फरीदाबाद एनआईटी के नागेंद्र सिंह भडाना शामिल हैं.

राज्य के मेवात क्षेत्र में भाजपा की स्थिति हमेशा ही कमजोर रही है. इस मुस्लिम बहुल इलाके में दल बदल के बाद आने वाले विधानसभा चुनावों में कमल खिलने की उम्मीद जाग गई है. नूंह के विधायक जाकिर हुसैन,पुन्हाना के रहीशा खान, फिरोजपुर झरिका के नसीम अहमद के भाजपा का दामन थाम लेके के बाद भाजपा यहां मजबूत दिखाई देने लगी है.

निर्दलीय विधायकों में समालखा क्षेत्र के रविंद्र माछरोली, पुंडरी के रमेश कौशिक, सफीदों के जसबीर देशवाल के अलावा बसपा के टेकचंद शर्मा भी भाजपा में शामिल हो चुके हैं. भाजपा के विधायक नायब सिंह सैनी ने कुरु क्षेत्र से सांसद चुने जाने के बाद अपनी सीट से इस्तीफा दे दिया. राई क्षेत्र के कांग्रेस के विधायक जयतीर्थ दिहया ने कांग्रेस के अध्यक्ष डॉ. अशोक तंवर को पद से नहीं हटाए जाने के विरोध स्वरूप अपनी सीट छोड़ दी.

इनेलो से अलग होने के बाद बनी जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के साथ आए दादरी के विधायक राजदीप फोगट, नरवाना के पृथ्वी सिंह नंबरदार, डबवाली की नैना सिंह चौटला और उकलाना के अनूप धानक भी अपने पदों से इस्तीफे दे चुके हैं. इस्तीफे मंजूर किए जाने के बाद स्पीकर कंवरपाल गुज्जर ने इन चारों विधायकों को दलबदल कानून के तहत अयोग्य ठहरा दिया. इसी तरह फिरोजपुर झरिका के विधायक नसीम अहमद पहले कांग्रेस में शामिल हुए, लेकिन लोकसभा चुनावों में जब कांग्रेस सभी सीटों पर हार गई तो वे फिर भाजपा में आ गए. स्पीकर ने अपने फैसले में उन्हें भी अयोग्य ठहरा दिया.

ऐसा भी विधानसभा में पहली बार दिखाई दिया कि मुख्य विपक्षी पार्टी इनेलो के पास पांच साल पूरे होते होते 19 में से सिर्फ तीन विधायक रह गए. इसकी वजह से इनेलो विधायक अभय सिंह चौटाला को विपक्ष के नेता का पद भी खोना पड़ा. सदन में 17 विधायकों वाली पार्टी कांग्रेस को मुख्य विपक्षी दल हो गई और पूर्व मुख्यमंत्नी भूपेंद्र सिंह हुड्डा विपक्ष के नेता का दर्जा पा गए. 

इनेलो विधायक जसविंदर सिंह संधू के निधन की वजह से पेहोवा सीट खाली हो गई, लेकिन विधानसभा चुनाव नजदीक होने के कारण छह महीने से ज्यादा समय बीत जाने के बावजूद पेहोवा सीट पर उप चुनाव नहीं करवाया गया.

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