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छत्तीसगढ़ विधान सभा चुनाव: बीजेपी या कांग्रेस, किसका खेल बिगाड़ेंगे अजीत जोगी?

By विनीत कुमार | Updated: October 18, 2018 08:18 IST

chhattisgarh chunav 2018: अजीत जागी का फैक्टर कई मायनों में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। अजीत जोगी छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री रहे हैं।

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छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में चुनावी जंग हमेशा से बेहद करीबी मामला रहा है। साल 2003 में जो वोट शेयर का अंतर 2.55 प्रतिशत था वह 2013 में कांग्रेस और बीजेपी के बीच करीब 0.75 प्रतिशत का रह गया।

साल 2000 में छत्तीसगढ़ के अस्तित्व में आने के बाद से अहम मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही रहा है और उम्मीद जताई जा रही है कि इस बार भी यही तस्वीर सामने रहेगी। लेकिन इन सबके बीच में कांग्रेस से अलग हुए अजीत जोगी और उनकी नई पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जेसीसी) के उभरने से पूरा गणित और दिलचस्प हो गया है।

बीजेपी के राज्य में अजीत जोगी की नई पार्टी के मायने क्या?

अजीत जागी का फैक्टर कई मायनों में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। किसी दौर में कांग्रेस में मजबूत पकड़ रखने वाले अजीत जोगी छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री रहे हैं। राज्य के निर्माण के बाद वह 2003 तक बतौर कांग्रेस के नेता मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रहे। 

इसके बाद बीजेपी ने राज्य में जो पकड़ बनाई उसे उसने अब तक बनाये रखा है। इसका श्रेय रमन सिंह को जाता है जो पिछले तीन बार से छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री हैं।

ऐसे में अजीत जोगी क्या बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती साबित होंगे? जोगी के छत्तीसगढ़ के सत्ता से बेदखल हुए करीब 15 साल बीत गये हैं और वे राज्य में तमाम छोटी-छोटी दूसरी पार्टियों को साधने में जुटे हैं। फिर चाहे मायावती की बहुजन समाज पार्टी हो, सीपीआई हो या फिर समाजवादी पार्टी। इन पार्टियों का छत्तीसगढ़ में बहुत प्रभुत्व रहा नहीं है इसलिए जोगी इनके साथ सफलता की कितनी सीढ़िया चढ़ेंगे, ये लाख टके का सवाल है।

बसपा, सपा, सीपीआई, गोंगपा की स्थिति छत्तीसगढ़ में क्या है

जोगी बसपा और सीपीआई को अपने साथ ले आए हैं। सपा पर भी उनकी नजर है लेकिन खास बात ये है इन सभी पार्टियों का जनाधार राज्य में बहुत कम है। बसपा एक ऐसी पार्टी जरूरी रही है जिसके विधायक हर बार राज्य की विधान सभा में पहुंचने में सफल रहे हैं। 

साल 2003 और 2008 में पार्टी के दो और फिर 2013 में एक विधायक सदन में पहुंचा। बहुजन समाज पार्टी इससे पहले हर चुनाव में सभी 90 सीटों पर प्रत्याशी खड़ा करती रही है लेकिन उसकी कहानी बहुत सीमित है। 

दूसरी ओर सीपीआई अलग राज्य बनने के बाद से ही यहां कोई सीट नहीं जीत सकी है। साल 2003 में पार्टी ने 18 प्रत्याशी उतारे में जिसमें 15 की तो जमानत जब्त हो गई। ऐसे ही 2008 में 21 और 2013 में 13 सीटों पर सीपीआई उम्मीदवार आए लेकिन नतीजा सिफर रहा। 

जोगी ने सीपीआई से हाथ मिलाते हुए दक्षिण बस्तर में दंतेवाड़ा और कोंटा में दो सीटे इस पार्टी को लड़ने के लिए दी है। इन सीटों पर चुनाव 12 नवंबर को होना है। इन दोनों सीटों पर फिलहाल कांग्रेस का कब्जा है। इन दोनों पर सीटों पर सीपीआई भले ही फिलहाल नहीं है लेकिन पकड़ अच्छ-खासी है। 

बात गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (गोंगपा) की करें तो इसने कांग्रेस के साथ जाने से फिलहाल इंकार किया और ऐसे में जोगी अपनी कोशिश अब भी जारी रखे हुए हैं। ऐसी खबरें हैं कि सरगुजा, कोरिया, कोरबा, बिलासपुर और बस्तर की कुछ सीटों पर गोंगपा से जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस का गठबंधन हो सकता है। वहीं, समाजवादी पार्टी के खाते में छत्तीसगढ़ में एक फीसदी वोट भी नहीं है।

बीजेपी या कांग्रेस, 'जोगी फैक्टर' से किसका खेल बिगड़ेगा?

11 दिसंबर को होने वाले मतों की गिनती से पहले यह कहना काफी मुश्किल है कि अजीत जोगी किसका नुकसान करेंगे लेकिन दोनों पार्टियां जोगी के उभरने को अपना  फायदा बता रही हैं।

कांग्रेस को लगता है कि उसने अगर 2013 में 40.29 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 90 में से 39 सीटें जीती थी तो उसके लिए मंजिल दूर नहीं होनी चाहिए और जोगी के आने से बीजेपी के वोट कटेंगे। बीजेपी 2013 में 41.04 प्रतिशत वोट शेयर और 49 सीट जीतकर सत्ता में आई थी। दूसरी ओर बीजेपी को इस लिहाज से फायदे की उम्मीद है कि कांग्रेस को मिलने वाली पिछड़ी जातियों के वोट में कमी आएगी और फायदा उसे होगा। 

दरअसल, छत्तीसगढ़ में जाति का फैक्टर भी अहम है। मायावती के साथ आने से जोगी की जनता कांग्रेस को उम्मीद है कि एससी वोट पर पकड़ पूरी तरह मजबूत हो जाएगी। खासकर सतनामी समाज जहां से जोगी आते हैं, उस पर सभी की नजर है। यह कांग्रेस का भी वोट बैंक है लेकिन जोगी के अलग होने से इस पर कुछ असर हो सकता है। वोट बैंक के तौर पर सतनामी समाज की छत्तीसगढ़ में बड़ी पकड़ है और 14 विधान सभा सीटों पर 20 से 35 प्रतिशत वोट इनके हैं। इसके अलावा दूसरी पिछड़ी जातियां भी हैं।

मायावती-जोगी बनेंगे किंगमेकर!

छत्तीसगढ़ में चुनावी नतीजों का जो इतिहास रहा है, उसे देखकर सबसे ज्यादा संभावना इसी की है। जोगी और मायावती की जुगलबंदी ने अगर 7-8 या कह लीजिए कि 10 सीटें भी अपने नाम की तो यह दोनों किंगमेकर हो सकते हैं और फिर बीजेपी और कांग्रेस दोनों को सत्ता में आने के लिए कड़ी मशक्कत करनी होगी, यह तय है। 

टॅग्स :छत्तीसगढ़ चुनावरमन सिंहकांग्रेसभारतीय जनता पार्टी (बीजेपी)
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