अमेरिकी कंपनी ने किया दावा, अब गायों के एंटीबॉडीज से कोरोना वायरस को कर सकते हैं खत्म

By मनाली रस्तोगी | Published: June 9, 2020 10:47 AM2020-06-09T10:47:43+5:302020-06-09T10:47:43+5:30

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कोरोना वायरस ने जहां पूरे विश्व को अपनी गिरफ्त में ले लिया है तो वहीं दुनियाभर के वैज्ञानिक लगातार इसका एंटीडोट खोजने में जुटे हुए हैं। इस बीच अमेरिका की एक बायोटेक कंपनी ने दावा किया है कि कोरोना वायरस को खत्म करने के लिए गाय के शरीर के एंटीबॉडीज का इस्तेमाल किया जा सकता है।

अमेरिकी बायेटेक कंपनी सैब बायोथेराप्यूटिक्स ने दावा किया है कि कोरोना वायरस को खत्म करने के दवा जेनेटिकली मॉडीफाइड गायों के शरीर से एंटीबॉडी निकालकर बनाई जा सकती है। ऐसे में कंपनी जल्द से जल्द इसपर परीक्षण करेगी।

इस मामले में जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी में संक्रामक बीमारियों के फिजिशियन अमेश अदाल्जा का कहना है कि संबंधित कंपनी द्वारा किया गया दावा सकारात्मक, आशाजनक और आत्मविश्वास भर देने वाला है। आपको कोरोना वायरस जैसे घातक वायरस से लड़ने के लिए अभी कई हथियारों की आवश्यकता होगी।

वैसे तो वैज्ञानिक एंटीबॉडीज की जांच-पड़ताल करने के लिए कल्चर की गईं कोशिकाओं या फिर तंबाकू के पौधे पर प्रयोगशालाओं में काम करते हैं, लेकिन 20 साल से गायों के खुरों में एंटीबॉडीज को विकसित करने का काम बायोथेराप्यूटिक्स कंपनी करती है।

मालूम हो, कंपनी गायों में आनुवंशिक (जेनेटिक) बदलाव करती है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि गायों की प्रतिरोधक कोशिकाएं और अधिक विकसित हो सकें और वो खतरनाक बीमारियों से लड़ सकें। इसके साथ ही गायों में विकसित होने वाली एंटीबॉडीज का इस्तेमाल इंसानों के लिए किया जा सकता है क्योंकि गायों में एंटीबॉडीज ज्यादा मात्रा में विकसित होती हैं।

यूनिवर्सिटी ऑफ पिट्सबर्गके इम्यूनोलॉजिस्ट विलियम क्लिमस्त्रा ने कहा कि कंपनी की गायों में मौजूद एंटीबॉडी में कोरोना वायरस के स्पाइक प्रोटीन को मारने की क्षमता होती है। दरअसल अपने आप में ही ये गाय बायोरिएक्टर होती है, जिसकी वजह से वह बहुत सी गंभीर बीमारियों से लड़ने के लिए बड़ी संख्या में एंटीबॉडी विकसित करने में सक्षम है।

सैब बायोथेराप्यूटिक्स के सीईओ एडी सुलिवन का कहना है कि अन्य छोटे जीवों की तुलना में गायों के पास अधिक खून होता है, जिसके कारण एंटीबॉडीज भी गायों के शरीर में ज्यादा विकसित होती हैं। ऐसे में इन्हें बाद में इंसानों में सुधाकर इस्तेमाल किय जा सकता है।

एडी ने ये भी बताया कि जहां एक ओर कोरोना वायरस से लड़ने के लिए अधिकांश कंपनियां मोनोक्लोनल एंटीबॉडी विकसित कर रही हैं, जबकि गाय पॉलीक्लोनल एंटीबॉडी बनाने में सक्षम हैं। ऐसे में मोनोक्लोनल एंटीबॉडी की तुलना में पॉलीक्लोनल एंटीबॉडी ज्यादा सक्षम हैं।

अपनी बात को जारी रखते हुए एडी सुलिवन ने कहा कि मिडिल ईस्ट रेस्पोरेटरी सिंड्रोम (MERS) के दौरान भी यही रास्ता अपनाया गया था, जिसके बाद यह पता चला कि अन्य जीवों की तुलना में गायों की एंटीबॉडीज में अधिक ताकत होती है।

एडी सुलिवन ने कहा कि कोरोना वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी 7 हफ्ते के अंदर गाय के शरीर में रेडी हो रही हैं। यही नहीं, इस दौरान गाय अधिक बीमार भी नहीं हो रही हैं। इसके अलावा हाल ही में हुई जांच से पता चला कि कोरोना वायरस के स्पाइक प्रोटीन को गाय के शरीर में बन रहे एंटीबॉडी ने खत्म कर दिया।

वहीं, जब गायों के प्लाज्मा का प्रयोगशाला में परीक्षण किया गया तो गया कि यह मानव प्लाज्मा थेरेपी की तुलना में चार प्रतिशत अधिक शक्तिशाली होता है, जोकि मानव शरीर में कोविड-19 को प्रवेश करने की अनुमति नहीं देता है।

एडी ने बताया कि इंसानों पर गाय की एंटीबॉडी का परीक्षण कुछ ही हफ़्तों में शुरू किया जाएगा। इस परीक्षण से पता चल पायेगा कि गाय की एंटीबॉडी इंसानों में कितना कारगर साबित होती है। हालांकि, उम्मीद जताई जा रही है कि गाय की एंटीबॉडी अन्य दवाओं और इलाज से बेहतर साबित होगी।