जब साधु के भेष में अयोध्या आए महाकाल! जानिए कैसे भगवान श्रीराम ने छोड़ी थी ये धरती

By विनीत कुमार | Published: March 18, 2020 01:42 PM2020-03-18T13:42:37+5:302020-03-18T13:45:06+5:30

Next

हिंदू मान्यताओं के अनुसार पृथ्वी लोक की एक सच्चाई है कि यहां जो भी आता है, उसे जाना ही होता है और इससे भगवान भी कभी नहीं बचे। फिर वह चाहे त्रेतायुग में जन्में श्रीराम हों या फिर द्वापर में अधर्मियों का नाश करने आए श्रीकृष्ण, सभी को समय पूरा होने पर ये भूलोक छोड़ जाना पड़ा।

रामायण काल में रावण के वध और फिर कई वर्षों तक अयोध्या में गद्दी संभालने के बाद श्रीराम को भी मृत्यु का सामना करना पड़ा था। शेषनाग के अवतार लक्ष्मण भी मृत्यु को प्राप्त हुए। विधि का विधान आखिरकार उन पर भी लागू हुआ। आज हम आपको लक्ष्मण और श्रीराम के मृत्युलोक छोड़ने की कथा बताने जा रहे हैं।

पौराणिक कथा के अनुसार सबसे पहले पृथ्वीलोक लक्ष्मण ने छोड़ी। वे शेषनाग का अवतार थे। लक्ष्मण के बाद भगवान राम भी बैकुंठ लौट गये थे। श्रीकृष्ण की मृत्यु के संबंध में एक प्रसंग ये है कि उन्हें एक शिकारी का बाण पैरों में लगा था लेकिन क्या आप जानते हैं श्रीराम की मृत्यु कैसे हुई। इसके पीछे भी भगवान की एक लीला है।

रामायण की कथा के अनुसार एक दिन भगवान राम से मिलने एक संत आये और उनसे अकेले में कुछ जरूरी बात करने के लिए कहने लगे। भगवान राम इसके लिए तैयार हो गये लेकिन संत ने यह शर्त रखी कि उन दोनों की वार्तालाप के दौरान अगर कोई भी आ जाता है तो उसे मृत्युदंड दिया जाए।

संत की शर्त सुन राम ने बात मान ली और लक्ष्मण को जिम्मेदारी सौंपी कि उनकी बातचीत के बीच कोई भी विघ्न नहीं डाले। दरअसल, राम के साथ जो संत बात कर रहे थे वे महाकाल थे और वे यह बताने आये थे कि धरती पर उनका समय अब पूरा हो चुका है।

श्रीराम तो विष्णु के अवतार थे। इसलिए उन्हें पता था कि क्या होने वाला है। वहीं, लक्ष्मण को यह बात पता नहीं थी। बहरहाल वे द्वारपाल बनकर स्वंय पहरेदारी करने लगे ताकि कोई भी अंदर कक्ष में नहीं जा सके।

इसी बीच दुर्वासा ऋषि वहां अचानक आ गये और राम से मिलने की बात कहने लगे। लक्ष्मण ने जब उनसे प्रार्थना करते हुए इसके लिए मना किया तो दुर्वासा ऋषि क्रोधित हो गये और राम सहित पूरी अयोध्या को शाप देने की बात कहने लगे।

दुर्वासा ऋषि की बात सुन लक्ष्मण दुविधा में फंस गए। लक्ष्मण ने सोचा कि अगर पूरी अयोध्या को शाप लगा तो अनिष्ट हो जाएगा। इससे बेहतर है कि वे ही मृत्युदंड स्वीकार कर ले। यह विचार कर लक्ष्मण उस कक्ष में चले गये जहां संत और राम के बीच बात हो रही थी।

लक्ष्मण ने राम को पूरी बात बताई। ऐसे में ऋषि दुर्वासा और राम की मुलाकात तो हो गई लेकिन प्रतिज्ञा के अनुसार लक्ष्मण को प्राण दंड दिया जाना था। इसलिए राम ने लक्ष्मण को देश से बाहर चले जाने का आदेश दिया। उस युग में देश से बाहर निकाला जाना भी मृत्यु के बराबर माना जाता था। ऐसे में लक्ष्मण सरयू नदी के अंदर चले गये और शरीर त्याग दिया।

श्रीराम भी अपने भाई के बिना एक पल नहीं रह सकते थे। उन्हें जब इस बात की जानकारी मिली तो वे भी अपना राजपाट अपने पुत्रों को सौंपकर सरयू नदी में समा गये। इस प्रकार भगवान राम भी बैकुंठ लौट गये।