1 / 5फाल्गुन शुक्ल पक्ष की एकादशी को आमलकी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस बार आमलकी एकादशी व्रत कल 14 मार्च सोमवार को रखा जाएगा। इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा के चलते ही इसे आमलकी एकादशी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के साथ आंवले के वृक्ष की भी विधि-विधान से पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि जो भक्त आमलकी एकादशी के दिन विधि पूर्वक व्रत रखकर भगवान श्री हरि विष्णु और आंवला की पूजा करते हैं उनकी समस्त प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और अंत में उन्हें मोक्ष प्राप्त होता है। 2 / 5आंवले का वृक्ष भगवान विष्णु को प्रिय माना जाता है। मान्यता है कि आंवले के वृक्ष में श्री हरि और माता लक्ष्मी का वास होता है। इसके मूल, यानी जड़ में श्री विष्णु तने में शिव और ऊपर के हिस्से में ब्रहमा का वास माना जाता है। साथ ही इसकी टहनियों में मुनि, देवता, पत्तों में वसु, फूलों में मरुद्गण का निवास माना जाता है।3 / 5आमलकी एकादशी पूजा विधि: आमलकी एकादशी के दिन आंवले के पेड़ के नीचे भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर एक चौकी पर स्थापित कर विधिवत पूजा करें। यदि आंवले का पेड़ नहीं है तो घर के पूजा स्थान पर भी आप पूजा कर सकते हैं। पेड़ की जड़ में एक वेदी बनाकर उस पर कलश स्थापित करें। पूजा में भगवान विष्णु को रोली, चंदन, अक्षत, फूल, धूप और नैवेद्य सहित आंवला अर्पित कर घी का दीपक जला कर आंवला एकादशी व्रत कथा पढ़ें या सुनें, फिर आरती करें।4 / 5आमलकी एकादशी मुहूर्त: 13 मार्च सुबह 10 बजकर 24 मिनट से एकादशी शुरू होगी जो 14 मार्च को दोपहर 12 बजकर 8 मिनट पर समाप्त होगी।5 / 5आमलकी एकादशी व्रत का महत्व: पौराणिक शास्त्रों में आंवला वृक्ष भगवान विष्णु का प्रतीक माना जाता है। इसके हर अंग में ईश्वर का स्थान माना गया है। मान्यता है कि आमलकी एकादशी के दिन आंवला और श्री हरि की पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और शत्रुओं के भय से मुक्ति मिलती है धन-संपत्ति पद प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है। हर एकादशी तिथि की तरह आमलकी एकादशी के दिन चालव का सेवन नहीं करना चाहिए, बल्कि इस दिन दान-पुण्य के कार्य करने चाहिए।