Music legend: हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के पुरोधा, गायिकी के 'रसराज' नहीं रहे, see pics By सतीश कुमार सिंह | Published: August 17, 2020 07:33 PM 2020-08-17T19:33:09+5:30 2020-08-17T19:33:09+5:30
Next Next महान शास्त्रीय गायक पंडित जसराज का अमेरिका में दिल का दौरा पड़ने से सोमवार की सुबह निधन हो गया। कोरोना वायरस महामारी के कारण लॉकडाउन के बाद से पंडित जसराज न्यूजर्सी में ही थे। उन्होंने आज सुबह आखिरी सांस ली। उनकी बेटी दुर्गा जसराज ने यह जानकारी दी।
पंडित जसराज के परिवार ने एक बयान में कहा ,‘‘ बहुत दुख के साथ हमें सूचित करना पड़ रहा है कि संगीत मार्तंड पंडित जसराज जी का अमेरिका के न्यूजर्सी में अपने आवास पर आज सुबह 5 बजकर 15 मिनट पर दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया।’’
उन्होंने कहा ,‘‘ हम प्रार्थना करते हैं कि भगवान कृष्ण स्वर्ग के द्वार पर उनका स्वागत करें जहां वह अपना पसंदीदा भजन ‘ ओम नमो भगवते वासुदेवाय’ उन्हें समर्पित करें। हम उनकी आत्मा की शांति के लिये प्रार्थना करते हैं।’’
संगीत किंवदंती और अद्वितीय शास्त्रीय गायक पंडित जसराज के निधन से बेहद दुखी हूँ। पद्म विभूषण से सम्मानित पंडित जसराज ने 8 दशकों से भी लंबे करियर में लोगों को अपने संगीत से मंत्रमुग्ध किया। उनके परिवार, दोस्तों और संगीत प्रेमियों के प्रति संवेदनाएं :राष्ट्रपति कोविंद
पंडित जसराज के दुर्भाग्यपूर्ण निधन से भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र में एक गहरा शून्य है। न केवल उनकी प्रस्तुतियां उत्कृष्ट थीं, उन्होंने कई अन्य गायकों के लिए एक असाधारण गुरु के रूप में भी अपनी पहचान बनाई। दुनिया भर में उनके परिवार और प्रशंसकों के प्रति संवेदना: पीएम नरेंद्र मोदी
सुप्रसिद्ध शास्त्रीय गायक पंडित जसराज के निधन से मुझे गहरा दुःख हुआ है। मेवाती घराना से जुड़े पंडितजी का सम्पूर्ण जीवन सुर साधना में बीता। सुरों के संसार को उन्होंने अपनी कला से नए शिखर दिए। ईश्वर उन्हें अपने श्रीचरणों में स्थान दें : रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह
उन्होंने आगे कहा , ‘आपकी प्रार्थनाओं के लिये धन्यवाद। बापूजी जय हो ’ इस साल जनवरी में अपना 90वां जन्मदिन मनाने वाले पंडित जसराज ने आखिरी प्रस्तुति नौ अप्रैल को हनुमान जयंती पर फेसबुक लाइव के जरिये वाराणसी के संकटमोचन हनुमान मंदिर के लिये दी थी।
28 जनवरी 1930 को हरियाणा के हिसार में जन्मे पंडित जसराज ऐसे परिवार से ताल्लुक रखते थे, जो 4 पीढ़ियों से शास्त्रीय संगीत की परंपरा को आगे बढ़ा रहा था।खयाल शैली की गायिकी पंडित जसराज की विशेषता रही। उनके पिता पंडित मोतीराम मेवाती घराने के संगीतज्ञ थे। जब पंडित जसराज महज तीन-चार साल के थे, तभी उनके पिता का निधन हो गया था।
पंडित जसराज ने एक अनोखी जुगलबंदी की रचना की। इसमें महिला और पुरुष गायक अलग-अलग रागों में एक साथ गाते हैं। इस जुगलबंदी को जसरंगी नाम दिया गया।
वे 14 साल की उम्र तक तबला सीखते थे। बाद में उन्होंने गायिकी की तालीम शुरू की। उन्होंने साढ़े तीन सप्तक तक शुद्ध उच्चारण और स्पष्टता रखने की मेवाती घराने की विशेषता को आगे बढ़ाया।