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Tulsidas Balaram: 36 मैच और 10 गोल, एशियाई खेल में स्वर्ण पदक, 1960 रोम ओलंपिक में किया था कमाल, जानें कौन थे फुटबॉलर और ओलंपियन बलराम

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: February 16, 2023 18:21 IST

Tulsidas Balaram: 1950 और 1960 के दशक में भारतीय फुटबॉल की सुनहरी पीढ़ी का हिस्सा रहे, जिसमें वह चुन्नी गोस्वामी और पीके बनर्जी जैसे दिग्गजों के साथ खेलते थे जिससे उन्हें ‘होली ट्रिनिटी’ (त्रिमूर्ति) के नाम से पुकारा जाता था।

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ठळक मुद्देबलराम उत्तरपारा में हुगली नदी के किनारे एक फ्लैट में रहते थे।अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) के ‘टैलेंट स्पॉटर’ के रूप में भी काम किया था।संतोष ट्रॉफी में बंगाल और हैदराबाद का प्रतिनिधित्व किया और सफलता हासिल की।

Tulsidas Balaram: भारत के एशियाई खेलों के स्वर्ण पदक विजेता फुटबॉलर और ओलंपियन तुलसीदास बलराम का लंबी बीमारी के कारण गुरूवार को यहां निधन हो गया। उनके परिवार के करीबी सूत्रों ने यह जानकारी दी। बलराम 87 वर्ष के थे।

 

वह 1950 और 1960 के दशक में भारतीय फुटबॉल की सुनहरी पीढ़ी का हिस्सा रहे, जिसमें वह चुन्नी गोस्वामी और पीके बनर्जी जैसे दिग्गजों के साथ खेलते थे जिससे उन्हें ‘होली ट्रिनिटी’ (त्रिमूर्ति) के नाम से पुकारा जाता था। विधुर बलराम उत्तरपारा में हुगली नदी के किनारे एक फ्लैट में रहते थे। पिछले साल 26 दिसंबर को उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

1962 के एशियाड चैंपियन का पेशाब के संक्रमण और पेट संबंधित बीमारी के लिये उपचार किया जा रहा था। परिवार के एक करीबी सूत्र ने बताया, ‘‘उनकी हालत में सुधार नहीं हुआ और आज दोपहर करीब दो बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। ’’ अर्जुन पुरस्कार से नवाजे जा चुके बलराम का जन्म चार अक्टूबर 1936 को सिकंदराबाद में अम्मुगुडा गांव में हुआ था।

उनके 1960 रोम ओलंपिक में प्रदर्शन को भुलाया नहीं जा सकता। तब हंगरी, फ्रांस और पेरू के साथ ‘ग्रुप ऑफ डेथ’ में शामिल भारत को पहले मैच में हंगरी से 1-2 से हार मिली थी लेकिन बलराम ने 79वें मिनट में गोल करके खुद का नाम इतिहास के पन्नों में शामिल कराया। पेरू के खिलाफ मैच में भी वह गोल करने में सफल रहे थे।

भारत कुछ दिनों बाद फ्रांस को हराकर उलटफेर करने के करीब पहुंच गया था जिसमें भी बलराम का प्रदर्शन शानदार रहा था। जकार्ता एशियाई खेलों के फाइनल में भारत ने दक्षिण कोरिया को 2-1 से हराकर स्वर्ण पदक जीता था। यह बहुस्पर्धा महाद्वीपीय प्रतियोगिता में देश की दूसरी खिताबी जीत थी और तब से यह उपलब्धि दोहरायी नहीं जा सकी है।

वह ज्यादातर ‘सेंटर फॉरवर्ड’ या ‘लेफ्ट विंगर’ के तौर पर खेलते थे। लेकिन खराब स्वास्थ्य के कारण उन्होंने 1963 में खेल से अलविदा होने का फैसला किया। उनका करियर 1955 और 1963 के बीच आठ साल का रहा क्योंकि 27 साल की उम्र में टीबी के कारण उन्हें करियर खत्म करना पड़ा था।

बलराम ने अपना अंतरराष्ट्रीय पदार्पण 1956 मेलबर्न ओलंपिक में यूगोस्लाविया के खिलाफ किया था। इस ओलंपिक में भारत चौथे स्थान पर रहा। उन्होंने देश के लिए 36 मैच खेले और 10 गोल किये जिसमें एशियाई खेलों के चार गोल भी शामिल थे।

बलराम ने संतोष ट्रॉफी में बंगाल और हैदराबाद का प्रतिनिधित्व किया और दोनों राज्यों के साथ सफलता हासिल की। सक्रिय फुटबॉलर के तौर पर संन्यास के बाद बलराम ने कलकत्ता मेयर की टीम को कोचिंग दी और अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) के ‘टैलेंट स्पॉटर’ के रूप में भी काम किया था।

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