मीठापुर से तोक्यो तक, संघर्षों पर सफलता की कहानी लिखी भारत के ध्वजवाहक मनप्रीत ने
By भाषा | Published: July 9, 2021 01:30 PM2021-07-09T13:30:31+5:302021-07-09T13:30:31+5:30
(मोना पार्थसारथी)
नयी दिल्ली, नौ जुलाई बचपन में अपनी मां को घर चलाने के लिये संघर्ष करता देख बड़े होकर कुछ खास करना उसका सपना बन गया । पंजाब के मीठापुर गांव से निकलकर तोक्यो में तिरंगा थामने के मौके तक भारतीय हॉकी टीम के कप्तान मनप्रीत सिंह ने संघर्षों पर सफलता की एक नयी कहानी लिख दी है ।
तोक्यो में 23 जुलाई को ओलंपिक के उद्घाटन समारोह में मनप्रीत मशहूर मुक्केबाज एम सी मैरीकॉम के साथ भारतीय दल के ध्वजवाहक होंगे । यह सम्मान पाने वाले वह छठे और परगट सिंह (अटलांटा ओलंपिक 1996) के बाद पहले हॉकी खिलाड़ी हैं ।
मनप्रीत ने भाषा को दिये इंटरव्यू में कहा ,‘‘ मैने कभी नहीं सोचा था कि यह मौका मिलेगा। मुझे पता चला तो मैं स्तब्ध रह गया । पता ही नहीं चला कि क्या बोलूं । मेरे और भारतीय हॉकी के लिये यह बहुत बड़ा पल है । मीठापुर से परगट सर के बाद मैं दूसरा खिलाड़ी हूं जो ओलंपिक में भारतीय दल का ध्वजवाहक बनूंगा ।’’
भारतीय टीम में 2011 में पदार्पण करने वाले मनप्रीत के लिये मीठापुर से तोक्यो तक के सफर में बहुत कुछ बदल गया । उन्होंने कहा ,‘‘ मैने अच्छे खिलाड़ियों से बहुत कुछ सीखा । जिदंगी में भी काफी उतार चढाव देखे और अब पीछे मुड़कर देखने पर गर्व होता है कि मैं अपने परिवार का , गांव का और देश का नाम रोशन कर सका ।’’
अपने संघर्षों के बारे में उन्होंने बताया ,‘‘ मेरे पिता दुबई में कारपेंटर का काम करते थे । जब मैं दस साल का था तो वह मानसिक परेशानी के कारण भारत लौट आये और फिर कोई काम नहीं कर सके। हम तीन भाई थे और परिवार में ऐसा कोई नहीं था जो घर चला सके ।’’
उन्होंने कहा ,‘‘ मेरी मां ने सिलाई वगैरह करके हमें पाला । मैने अपनी मां को संघर्ष करते देखा है और मैं असहाय महसूस करता था कि छोटा होने के कारण कोई मदद नहीं कर सकता था लेकिन मैने ठान ली थी कि एक दिन अपनी मां को गर्व करने का मौका दूंगा ।’’
पंजाब के मीठापुर गांव में ही जन्में परगट सिंह उनके आदर्श थे । उन्होंने कहा ,‘‘ मैं देखता था कि गांव में उनकी कितनी इज्जत है । वह उस समय डीएसपी थे और मैं बचपन में उनसे मिला तो मैने कहा कि मैं भी एक दिन आपकी तरह डीएसपी बनूंगा और आज मैं उसी पद पर हूं ।’’
मनप्रीत ने कहा कि कभी हार नहीं मानने का जज्बा उन्होंने बचपन के संघर्षों से सीखा ।
उन्हें सबसे ज्यादा अपने पिता की कमी महसूस हो रही है जो अब इस दुनिया में नहीं हैं ।
उन्होंने कहा ,‘‘मम्मी को जब पता चला कि मुझे यह मौका मिला है तो वह बहुत भावुक हो गई । मैं अपने पिता का लाड़ला था लेकिन मेरी जिदंगी का सबसे अहम पल देखने के लिये वह नहीं हैं । मुझे कप्तान बनते भी वह नहीं देख सके । उनका सपना था कि मैं भारत के लिये खेलूं । मुझे यकीन है कि तोक्यो में जब मैं तिरंगा थामकर चलूंगा तो वह आसमान से कहीं मुझे आशीर्वाद दे रहे होंगे ।’’
ओलंपिक में भारत का ध्वजवाहक बनने का सम्मान हॉकी में लाल सिंह बुखारी(1932 लॉस एंजिलिस), मेजर ध्यानचंद (1936 म्युनिख), बलबीर सिंह सीनियर (1952 हेलसिंकी), जफर इकबाल (1984 लॉस एंजिलिस) और परगट (1996 अटलांटा) को मिला है ।
मनप्रीत ने कहा ,‘‘ मैं खुशकिस्मत हूं कि इन लीजैंड के साथ मेरा नाम आयेगा ।मेरे सारे सपने पूरे हो रहे हैं और अब एक ही सपना बचा है , ओलंपिक में पदक जीतने का ।’’
अपेक्षाओं का अहसास होने के बावजूद उन पर किसी तरह का दबाव नहीं है । उन्होंने कहा ,‘‘ अपेक्षाओं का दबाव नहीं है बल्कि हम इसे सकारात्मक लेते हैं । हॉकी में ओलंपिक पदक के लिये चालीस साल से देश इंतजार कर रहा है और अच्छा लगता है कि पूरे देश की दुआयें आपके साथ है और सभी आपको पदक जीतते देखना चाहते हैं ।’’
उन्हें टीम की काबिलियत पर यकीन है और शीर्ष टीमों को हराने का आत्मविश्वास भी ।
पिछले चार साल से टीम के कप्तान मनप्रीत ने कहा ,‘‘इस टीम में जुझारूपन है और विरोधी टीम के रसूख से यह खौफ नहीं खाती । हमारे 19 खिलाड़ियों ने योयो टेस्ट पास किया है और फिटनेस में हम किसी से कम नहीं हैं । नीदरलैंड, बेंल्जियम , अर्जेंटीना , आस्ट्रेलिया जैसी बड़ी टीमों के खिलाफ पूरे समय तक एक ऊर्जा के सथ खेल रहे हैं ।’’
अपना तीसरा ओलंपिक खेलने जा रहे मनप्रीत ने कहा कि लॉकडाउन में साथ रहते हुए टीम का आपसी तालमेल बेहतरीन हुआ है जो प्रदर्शन में नजर आयेगा ।
उन्होंने कहा,‘‘ लॉकडाउन में हमने एक दूसरे के परिवार और संघर्षों के बारे में जाना और एक दूसरे के और करीब आये । ओलंपिक में हम सभी एक ईकाई के रूप में इन संघर्षों पर सफलता की नयी दास्तान लिखने के इरादे से उतरेंगे।
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