#KuchhPositiveKarteHain: कभी होटल में किया काम तो कभी DTC बसों में की सफाई, अब देश के लिए मेडल जीतने को तैयार है ये पैरा एथलीट

By सुमित राय | Published: July 28, 2018 10:03 AM2018-07-28T10:03:10+5:302018-07-28T11:21:56+5:30

नारायण ठाकुर ने हाल ही में पैरा नेशनल एथलेटिक्स में 100 और 200 मीटर की रेस जीती है और अब एशियन पैरा गेम्स की तैयारी कर रहे हैं।

Exclusive Interview of Para Athlete Narayan Thakur with Sumit Rai | #KuchhPositiveKarteHain: कभी होटल में किया काम तो कभी DTC बसों में की सफाई, अब देश के लिए मेडल जीतने को तैयार है ये पैरा एथलीट

नारायण ने हाल ही में पैरा नेशनल एथलेटिक्स में 100 और 200 मीटर की रेस जीती है।

नई दिल्ली, 28 जुलाई। कहते हैं कि अगर दिल में चाहत हो तो इंसान कोई भी मुकाम हासिल कर सकता हैं। हां, हो सकता है कि इसके लिए कई तरह की मुसीबतों का सामना करना पड़े, कोई आपकी मदद ना करे, लोग आपकी हंसी उड़ाएं और तरह-तरह के ज्ञान दें। ऐसा ही कुछ हुआ पैरा एथलीट नारायण ठाकुर के साथ। पैरा एथलीट नारायण ठाकुर बचपन से ही हाफ पैरालाइज्ड हैं, लेकिन उन्होंने अपनी इस कमी को कभी भी सफलता में रुकावट नहीं बनने दी। नारायण ने हाल ही में पैरा नेशनल एथलेटिक्स में 100 और 200 मीटर की रेस जीती है और अब एशियन पैरा गेम्स की तैयारी कर रहे हैं।

बचपन से हाफ पैरालाइज्ड होने और 13 साल की उम्र में पिता को खोने के बाद नारायण ने परिवार की मदद के लिए कई तरह के काम करने की कोशिश की, लेकिन पैरालाइज्ड होने के कारण काम भी मुश्किल से मिला। लोकमत न्यूज हिंदी से बात करते हुए नारायण ने जीवन की जीत से लेकर मैदान की जीत तक के हर पर्दे को उठाया।

आपके परिवार में कौन-कौन है ?

मेरा परिवार दिल्ली के समयपुर बादली में रहता है। जब मैं 13 साल का था, तब मेरे पिता की मौत हो गई थी। मेरे परिवार में मेरी मां, एक बड़ा और एक छोटा भाई है। बड़ा भाई कैब चलाते हैं और छोटा भाई अभी पढ़ाई करता है। वहीं मां बीड़ी-सिगरेट की एक दुकान चलाती है।

पिता की मौत के बाद आपको किस तरह की मुसीबतों का सामना करना पड़ा ?

शुरुआत से ही मेरे परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी और पिता की मौत के बाद हालत और ज्यादा खराब हो गई। इसके बाद मैंने कुछ काम करने का सोचा, लेकिन पैरालाइज्ड होने के कारण लोग काम नहीं देते थे।

किस-किस तरह का काम किया आपने ?

जब मैं 20 साल का था तब बहुत मुश्किल से एक होटल में काम मिला, लेकिन पैरालाइज्ड होने के कारण वहां भी ज्यादा दिन तक काम नहीं कर पाया। इसके बाद मैंने डीटीसी डिपो में काम किया, जहां बसों में सफाई का काम करता था।

एथलीट बनने का कब सोचा और इसके लिए कहां से प्रेरणा मिली ?

जब मैं डीटीसी डिपो में काम करता था, तब मेरी मुलाकात प्रदीप जी से हुई, उन्होंने मुझे स्पोर्ट्स के बारे में बताया और मुझे वहां से खेलने की प्रेरणा मिली। प्रदीप सर ने ट्रेनिंग के लिए काफी मदद की।

एथलीट बनने में किस तरह की मुसीबतों का सामना करना पड़ा ?

जब मैंने एथलेटिक्स में करियर बनाने की शुरुआत की, तब लोगों ने कहा कि पैरालाइज्ड है कहां इन सब चक्करों में पड़ रहा है, पढ़ाई पर ध्यान दे कहीं नौकरी लग जाएगी। लेकिन मैने हिम्मत नहीं हारी और अपना ध्यान खेल पर लगाया।

कैसे हुई एथलीट बनने की शुरुआत ?

पैरालाइज्ड होने के कारण चलने में थोड़ी दिक्कत होती थी, ऐसे में दौड़ने के बारे में तो सोच भी नहीं सकता था। इसलिए पहले एक्सरसाइज और योग कर खुद को दौड़ने के लायक बनाया। फिर ट्रेनिंग की शुरुआत की।

ट्रेनिंग की शुरुआत कैसे और कहां से हुई ?

प्रदीप सर ने डीडीए रोहिनी स्टेडियम में ज्वाइन करवाया, लेकिन हैंडिकैप्ड होने के कारण कई कोचों ने ट्रेनिंग देने से मना कर दिया। इसके बाद मैंने जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में प्रैक्टिस शुरू की।

आपकी सरकार से क्या चाहत है, क्या सरकार से आपको किसी तरह की मदद मिली ?

दिल्ली सरकार की स्कॉलरशिप बहुत कम है इस वजह से हमें काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पिछले साल जब मैं चाइना गया था, तब सरकार ने भेजने से मना कर दिया था। तब मैं अपने खर्चे पर गया था। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मिले थे तब उन्होंने कहा था कि स्कॉलरशिप को बढ़ाएंगे, लेकिन अभी तक नहीं बढ़ी है।

पैरा एशियन गेम्स के लिए किस तरह की तैयारी कर रहे हैं और उसके आगे क्या प्लान है।

नेशनल गेम्स जीतने के बाद मैं अपनी कैटेगरी में नंबर एक पर चल रहा हूं तो इसलिए मेरा टीम में चुना जाना कंफर्म है। अभी में दिल्ली के प्रयागराग स्टेडियम में एशियन गेम्स की तैयारी कर रहा हूं, इसमें मेरे कोच अमित खन्ना मदद कर रहे हैं। अमित खन्ना सर खेल में मदद करने के साथ-साथ फाइनेंसियल तौर पर भी काफी मदद करते हैं।

अभी की तैयारी में किस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है ?

त्यागराज स्टेडियम में अमित खन्ना सर के साथ तैयारी तो बहुत अच्छे से चल रही है, लेकिन मुझे स्टेडियम तक पहुंचने के लिए काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। मैं समयपुर बादली में रहता हूं, वहां से स्टेडियम की दूरी करीब 35 किलोमीटर है। घर से स्टेडियम तक आने के लिए चार बसें बदलनी पड़ती है और करीब 3 घंटे का समय लग रहा है।

लोकमत के जरिए लोगों और साथी खिलाड़ियों को क्या मैसेज देना चाहते हैं ?

लोकमत के जरिए मैं लोगों को बताना चाहता हूं कि चाहे आप दिव्यांग हों या नॉर्मल को यहीं कहना चाहूंगा कि कभी हिम्मत नहीं हारना, सफलता जरूर मिलेगी।

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