24 अक्टूबर को जब महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के परिणाम घोषित किए जाएंगे तो देवेंद्र फड़नवीस पिछले 50 सालों में राज्य के ऐसे पहले मुख्यमंत्री बन जाएंगे, जिसने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया है। आखिरी बार महाराष्ट्र में ऐसा तब हुआ था, जब वसंतराव नायक इसके मुख्यमंत्री बने थे।
महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में मुख्य मुकाबला दो गठबंधनों के बीच है। ये मुकाबला बीजेपी-शिवसेना और कांग्रेस-एनसीपी के गठबंधन का है। संयोग से 2014 के पिछले विधानसभा चुनावों में ये चारों ही पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ी थीं।
लोकसभा चुनावों का दिख सकता है असर!
महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनावों के महज पांच महीने बाद हो रहे हैं, जिनमें सतारूढ़ बीजेपी ने राज्य और राष्ट्रीय स्तर, दोनों जगहों पर जोरदार प्रदर्शन किया था और अपनी सीटों और वोट शेयर दोनों में इजाफा किया था।
महाराष्ट्र में अगले पिछले तीन दशक के चुनावी आंकड़ों पर नजर दौड़ाए तो पता चलता है कि लोकसभा चुनावों का असर विधानसभा चुनावों पर भी होता है और नतीजे लगभग एक जैसे ही रहते हैं।
उदाहरण के लिए 2004, 2009 और 2014 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव लोकसभा के तुरंत बाद हुए थे जबकि 1999 दोनों चुनाव साथ हुए था। लेकिन इन विधानसभा सभा चुनावों में वोटिंग पैटर्न लगभग उसी साल हुए लोकसभा चुनावों जैसे ही थे।
1990 और 1995 में विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनावों से कुछ महीने पहले हुए थे, लेकिन राज्य चुनावों का वोटिंग पैटर्न ही लोकसभा में भी नजर आया था।
2019 लोकसभा चुनावों में बीजेपी-शिवसेना ने जीती थीं 41 सीटें
2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी-शिवसेना ने महाराष्ट्र की 48 में से 41 सीटें (बीजेपी 23, शिवसेना 18) जीती थीं। इन चुनावों में इस गठबंधन ने राज्य में 50.88 फीसदी वोट हासिल किए थे।
इसके उलट इन चुनावो में कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन ने महज 5 सीटें ही जीती थीं और उनका वोट शेयर भी 31.79 फीसदी ही रहा था।
2014 में लोकसभा जैसे ही रहे थे विधानसभा के नतीजे
पांच साल पहले के 2014 लोकसभा चुनावों में भी चुनावी तस्वीर ज्यादा अलग नहीं थी। उस समय बीजेपी-शिवसेना गठबंधन ने लोकसभा चुनावों में महाराष्ट्र में 41 सीटें जीती थीं और उनका वोट शेयर 50 फीसदी था। वहीं कांग्रेस-एनसीपी ने उन चुनावों में 6 सीटें जीती थीं और उनका वोट शेयर 34.41 फीसदी वोट हासिल किए थे, जो 2019 चुनावों से ज्यादा अलग नहीं था।
इसके कुछ ही महीनों बाद जब महाराष्ट्र में जब विधानसभा चुनाव हुए को नतीजे लगभग लोकसभा जैसे ही थे।
लेकिन लोकसभा के उलट विधानसभा चुनावों के लिए शिवसेना और बीजेपी सीट बंटवारो के लेकर सहमति न बनने के बाद अलग-अलग लड़ने का फैसला किया था। ये पहली बार था जब इन दोनों ही पार्टियों ने लगभग सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे।
इसके बाद जब नतीजे आए तो बीजेपी 122 सीटों (27.81 फीसदी वोट) के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। वहीं शिवसेना ने 19.35 फीसदी के साथ 63 सीटें जीती थीं। चुनावों के बाद बीजेपी-शिवसेना ने हाथ मिलाया और सरकार बनाई। उन विधानसभा चुनावों में बीजेपी शिवसेना की संयुक्त सीटें 185 रही थीं, जबकि उनका संयुक्त वोट शेयर 47.16 फीसदी रहा था।
वहीं, कांग्रेस-एनसीपी ने 83 सीटें (कांग्रेस 41, एनसीपी 41) जीती थीं और उनका संयुक्त वोट शेयर 35.19 फीसदी थी, जो फिर से लगभग 2014 के लोकसभा चुनावों (34.41 फीसदी) के समान रहा था।
1990 में कांग्रेस का चला था सिक्का
1990 में विधानसभा चुनाव पहले हुए थे, जिनमें मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी-शिवसेना गठबंधन के बीच था। तब बीजेपी-शिवसेना का वोट शेयर 26.65 फीसदी और कांग्रेस का वोट शेयर 38.17 फीसदी था। शिवसेना ने पहली बार महाराष्ट्र में चुनावी मैदान में कदम रखा था और 15.94 फीसदी के साथ अपनी ताकत का अहसास कराया था।
इसके एक साल बाद हुए लोकसभा चुनावों में बीजेपी-शिवसेना के वोट शेयर लगभग वैसे ही रहे (29.65 फीसदी, बीजेपी 20.20, शिवेसना 9.45) लेकिन कांग्रेस के वोट शेयप में उछाल आया और उसने 48.40 फीसदी वोट हासिल किए।
इसकी एक प्रमुख वजह ये थी कि उसी साल राजीव गांधी की हत्या हुई थी।
1995 में शिवसेना-बीजेपी गठबंधन ने पहली बार बनाई थी सरकार
वहीं 1995-96 में हुए विधानसभा चुनावों में उलट ट्रेंड देखने को मिला। बीजेपी-शिवसेना ने इन चुनावों में 138 सीटें (29.91 फीसदी वोट शेयप) जीतते हुए पहली बार महाराष्ट्र में अपनी गठबंधन सरकार बनाई। विधानसभा चुनाव लड़ने के महज पांच सालों के अंदर ही शिवसेना को मुख्यमंत्री मिल गया था।
इसके एक साल बाद हुए लोकसभा चुनावों में बीजेपी-शिवसेना का वोट शेयर 38.64 फीसदी हो गया था, जबकि कांग्रेस का 34.78 फीसदी रगा था।
सतारूढ़ बीजेपी के सामने इन महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में लोकसभा चुनावों की अपनी खुद की सफलता दोहराने पर होगी। पिछले साल नवंबर में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने बीजेपी से छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान समेत तीन राज्यों को छीना था। ऐसे में बीजेपी कांग्रेस की चुनौती को इन चुनावों में हल्के में नहीं ले सकती है।