महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव: जानें क्या है बड़ी पार्टियों का हाल, कौन कितने पानी में
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: September 23, 2019 07:35 AM2019-09-23T07:35:49+5:302019-09-23T07:35:49+5:30
बीजेपी अंदरूनी नुकसान के कारण परेशानी हो सकती है. कांग्रेस-राकांपा के नेताओं को पार्टी में शामिल होने के बाद तरजीह दिए जाने से टिकट की चाह रखने वालों में नाराजगी है.
महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के लिए मतदान की तारीखों का ऐलान हो चुका है. भाजपा-शिवसेना के बीच गठबंधन पर फैसला अपने अंतिम चरण में है और जल्द ही सीटों के बंटवारे का ऐलान हो सकता है. उधर, कांग्रेस और राकांपा में समझौता हो चुका है. ऐसे में चुनाव मैदान में उतरने वाली हर पार्टी के पास कहीं बढ़त है तो कहीं कड़ी चुनौतियां हैं.
मतदान से पहले महाराष्ट्र की 6 बड़ी पार्टियों का हाल..
1. भारतीय जनता पार्टी
कहां आगे-
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की अपील के बलबूते भाजपा के हौसले बुलंद हैं. 2014 में 122 सीटों के साथ पहली बार सीएम की कुर्सी मिलने के बाद से पार्टी निकाय चुनावों में भी लगातार आगे बढ़ती जा रही है.
क्या है चुनौती-
पार्टी के अंदरूनी नुकसान के कारण परेशानी हो सकती है. कांग्रेस-राकांपा के नेताओं को पार्टी में शामिल होने के बाद तरजीह दिए जाने से टिकट की चाह रखने वालों में नाराजगी है. पार्टी में कुछ दागदार नेताओं को भी शामिल कर लिया गया है, जिससे पार्टी की छवि पर असर पड़ सकता है.
कहां है मौका-
जैसे एक समय में कांग्रेस हर जगह नजर आती थी, भाजपा के पास भी वैसा ही आधार बनाने का मौका है. साथ ही गठबंधन सहयोगी शिवसेना के वोटरों को लुभाने का भी सटीक मौका है.
2. कांग्रेस
कहां आगे-
कांग्रेस की राज्य इकाई को हाल ही में नए हाथों में सौंपा गया है. इससे पार्टी को स्थिरता मिल सकती है. साथ ही चुनाव प्रचार अभियान को रफ्तार मिल सकती है.
क्या है चुनौती-
कार्यकर्ताओं के मनोबल को वापस लाना बड़ी चुनौती होगा. पार्टी के पास फंड्स की कमी है और सबसे बड़ा सवाल राज्य में एक लोकिप्रय चेहरे का है.
कहां है मौका-
पार्टी के पास मुंबई में खुद को दोबारा खड़ा करने का बड़ा मौका है ताकि इलाके में वह पकड़ वापस हासिल कर सके. उसके पास खोने को कुछ नहीं, ऐसे में सब कुछ झोंक सकती है.
किससे खतरा-
नेतृत्व और सीटों के लेकर पार्टी की अंदरूनी कलह भारी पड़ सकती है. वहीं, पार्टी के नेता भी विधायकी की चाह में भाजपा की ओर रु ख कर रहे हैं.
3. शिवसेना
कहां आगे-
भाजपा से गठबंधन का फायदा शिवसेना को हो सकता है. पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच 2014 से चली आ रही कन्फ्यूजन खत्म हो जाएगी. कांग्रेस-राकांपा के नेताओं के पार्टी में शामिल होने से आत्मविश्वास बढ़ेगा.
क्या है चुनौती-
सबसे बड़ी चुनौती गठबंधन सहयोगी भाजपा से ही आ सकती है. भाजपा और पीएम मोदी की लोकप्रियता के ऊपर निर्भरता से नुकसान हो सकता है. लोगों को यह विश्वास दिलाना होगा कि वह आरे, अर्थव्यवस्था जैसे मुद्दों पर भाजपा के खिलाफ होने के बावजूद मजबूत गठबंधन में उसके साथ है.
कहां है मौका-
आदित्य ठाकरे को नेता के तौर पर पेश करने के लिए बड़ा मंच. विपक्ष के कमजोर होने के कारण शिवसेना उस क्षेत्र में भी अपने लिए मौके निकाल सकती है.
किससे खतरा-
भाजपा को अपने दम पर बहुमत मिलने से सेना की कीमत गिर सकती है. ऐसे में उसे 2024 के चुनावों तक खतरा ङोलना पड़ सकता है.
4. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी(राकांपा)
कहां आगे-
शरद पवार के तौर पर मजबूत पार्टी नेतृत्व. ऐसे कई इलाके हैं जो राकांपा के गढ़ हैं, वहां राकांपा की पकड़ मजबूत रहने की संभावनाएं हो सकती हैं.
क्या है चुनौती-
पवार के नजदीकियों समेत बड़ी संख्या में नेताओं के भाजपा में जाने से नुकसान हो सकता है. पार्टी की कमान आगे चलकर किसके हाथों में होगी, अजित पवार या सुप्रिया सुले, यह भी बड़ी सवाल है. पश्चिमी महाराष्ट्र में राकांपा के हाथ से कई इलाके निकल गए हैं. छगन भुजबल जैसे नेताओं का घोटाले में नाम आना और अजित पवार और दूसरे नेताओं के खिलाफ राज्य सहकारी बैंक कर्ज केस में एफआईआर होने से पार्टी की छवि पर नकारात्मक प्रभाव.
कहां है मौका-
कथित सिंचाई घोटाले में पार्टी के नेताओं के खिलाफ पांच साल से चल रही जांच में कुछ भी ठोस सामने नहीं आया है. सरकार के खिलाफ किसानों और गन्ना सहकारी संगठनों के मूड से फायदा हो सकता है.
किससे खतरा-
कांग्रेस की छवि खुद पर हावी होने से नुकसान हो सकता है.
5. वंचित बहुजन अगाड़ी
प्रकाश आंबेडकर की वीबीए और एआईएमआईएम में गठबंधन होने से लोकसभा की कम से कम 5 सीटों पर कांग्रेस-राकांपा को नुकसान हुआ. हालांकि, गठबंधन टूट गया लेकिन आंबेडकर के मजबूत विपक्षी नेता के तौर पर उभरने का मौका.
6. एआईएमआईएम
पिछली बार एआईएमआईएम को 2 विधानसभा सीटें मिली थीं और इस बार भी वीबीए से गठबंधन का फायदा होता. हालांकि, कांग्रेस-राकांपा की कमजोरी का फायदा पार्टी को भी हो सकता है.