मुंबई की चुनावी राजनीति-5: उत्तर भारतीय बने मुंबई में ताकतवर वोट बैंक

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: September 16, 2019 08:28 AM2019-09-16T08:28:21+5:302019-09-16T08:28:21+5:30

भाजपा और शिवसेना मुंबई में बड़ी ताकत के रूप में उभरे और कांग्रेस की भूमिका सिमटती गई. नई सदी की शुरुआत से ही शिवसेना का उत्तर भारतीय विरोध नर्म पड़ता चला गया और वह उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश करने लगी.

Electoral politics of Mumbai-5: North Indian became the strongest vote bank in Mumbai | मुंबई की चुनावी राजनीति-5: उत्तर भारतीय बने मुंबई में ताकतवर वोट बैंक

मुंबई की चुनावी राजनीति-5: उत्तर भारतीय बने मुंबई में ताकतवर वोट बैंक

Highlights शिवसेना ने मुंबई में हिंदी भाषियों को चले जाने की चेतावनी दी. शिवसेना हिंदी भाषियों के लिए ‘भैया’ शब्द का प्रयोग करती है.

अस्सी और नब्बे के दशक के बीच मुंबई की राजनीति तेजी से बदली. उत्तर भारतीय विरोध और समर्थन मुंबई की राजनीति का केंद्रबिंदु बन गया. उत्तर भारतीय विरोध की राजनीति ने मुंबई के हिंदी भाषियों में डर का माहौल तो पैदा कर दिया लेकिन इस पर सवार होकर शिवसेना को बहुत फायदा हुआ. इनकी ओर अस्सी तथा नब्बे के दशक में भाजपा में अटल बिहारी वाजपेयी जैसे दिग्गज के नेतृत्व में उत्तर भारत में कई लोकप्रिय चेहरे उतरे और उन्होंने मुंबई कांग्रेस के हिंदी वोट बैंक में सेंध लगानी शुरू कर दी. 

इसका धीरे-धीरे ही सही लेकिन स्थायी असर हुआ. भाजपा और शिवसेना मुंबई में बड़ी ताकत के रूप में उभरे और कांग्रेस की भूमिका सिमटती गई. नई सदी की शुरुआत से ही शिवसेना का उत्तर भारतीय विरोध नर्म पड़ता चला गया और वह उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश करने लगी.

अस्सी से नब्बे के दशक के बीच उत्तर भारत से मुंबई में बड़ी संख्या में लोगों का रोजगार की तलाश में पलायन हुआ. 1990-91 में आर्थिक उदारीकरण के दौर की शुरुआत तथा निजी उच्च शिक्षा संस्थानों का जाल फैल जाने से मुंबई में बिहार से भी युवा आने लगे. इसके चलते शिवसेना कांग्रेस तथा भाजपा का ध्यान दक्षिण भारतीयों से हटकर उत्तर भारतीयों की ओर चला गया. शिवसेना ने मुंबई में हिंदी भाषियों को चले जाने की चेतावनी दी. 

शिवसेना का तर्क था कि मुंबई में आकर उत्तर भारतीय तथा बिहारी स्थानीय मराठी भाषी युवकों के रोजगार में और देश की व्यावसायिक राजधानी की अर्थव्यवस्था पर कब्जा कर रहे हैं. शिवसेना ने व्यावसायिकों को भी चेतावनी दी कि वे अपने साइनबोर्ड हिंदी में लगाने की हिमाकत न करें. शिवसेना हिंदी भाषियों के लिए ‘भैया’ शब्द का प्रयोग करती है. नब्बे के दशक के बाद उत्तरप्रदेश के हिंदी भाषियों के बाद बिहारियों ने भी मुंबई में अपनी ताकत दिखानी शुरू कर दी. 

मुंबई में नब्बे के दशक तक छठ का पर्व घरों तक सिमटा हुआ था. 1990 के बाद सार्वजनिक रूप से उसका आयोजन होने लगा और पिछले 15 वर्षो में तो उसका स्वरूप विशाल हो गया. 1980 में जनता दल से अलग होकर जनसंघ ने भाजपा का चोला पहन लिया और मुंबई में गुजरातियों  तथा हिंदी भाषियों के बीच पैठ बनानी शुरू कर दी. 1980 की कांग्रेस लहर में मुंबई में भी हिंदी-मराठी का भेद भूलकर मतदाताओं ने कांग्रेस का साथ दिया. इससे शिवसेना कुछ वक्त के लिए पीछे रह गई.

1978 से 1985 तक विधानसभा चुनाव में मुंबई में शिवसेना खाली हाथ रही लेकिन भाजपा अपनी ताकत दिखाती रही. 1980 में भी उसने विधानसभा चुनाव में 9.98} वोट हासिल किए और 14 सीटें जीतीं. मुंबई में वह कांग्रेस के बाद दूसरी सबसे बड़ी ताकत बनी. 1984 में राजीव गांधी की हत्या के एक वर्ष बाद 1985 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की लहर फिर चली और कांग्रेस ने 166 सीटें जीतीं. मुंबई और विदर्भ का इसमें महत्वपूर्ण योगदान रहा. शिवसेना फिर खाली हाथ रही और वामपंथी भी सिकुड़ गए. 

भाजपा ने मुंबई सहित पूरे राज्य में अपनी ताकत बढ़ा ली. 1985 में विधानसभा में उसकी सीटें बढ़कर 20 हो गई. मुंबई में गुजराती और हिंदी बहुल क्षेत्रों में भाजपा की पैठ बढ़ती दिखाई देने लगी. विधानसभा चुनाव में लगातार हार के बावजूद शिवसेना का उत्तर भारतीय विरोध प्रखर होता गया. इससे मुंबई के बाहर ठाणो, नासिक, कोंकण तथा मराठवाड़ा के बड़े हिस्से तक उसकी जड़ें फैलती चली गईं. ‘भैया’ शब्द शिवसेना का प्रमुख चुनावी हथियार बना रहा.

भाजपा-शिवसेना गठबंधन, आरक्षण तथा राम मंदिर आंदोलन के चलते कांग्रेस का ध्यान मुंबई पर केंद्रित नहीं रह पाया. नब्बे से 2000 के बीच कांग्रेस की पकड़ मुंबई पर ढीली होती गई.

Web Title: Electoral politics of Mumbai-5: North Indian became the strongest vote bank in Mumbai

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