सुरंग में फंसे मजदूरों ने जिंदा रहने के लिए चट्टानों से टपकता पानी चाटा, मुरमुरे खाए, बताई अपनी कहानी

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: November 29, 2023 02:45 PM2023-11-29T14:45:15+5:302023-11-29T14:47:18+5:30

41 श्रमिकों में से एक श्रमिक अनिल बेदिया ने कहा कि हमने अपनी प्यास बुझाने के लिए चट्टानों से टपकते पानी को चाटा और शुरूआती दस दिनों तक मुरमुरे खाकर जीवित रहे।

Workers trapped in tunnel licked water dripping from rocks to stay alive puffed rice | सुरंग में फंसे मजदूरों ने जिंदा रहने के लिए चट्टानों से टपकता पानी चाटा, मुरमुरे खाए, बताई अपनी कहानी

(फाइल फोटो)

Highlightsफंसे मजदूरों ने जिंदा रहने के लिए चट्टानों से टपकता पानी चाटामलबा ढहने के बाद 12 नवंबर से सुरंग में फंसे थेपहले दस दिनों तक मुरमुरे खाकर जीवित रहे

नई दिल्ली: उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में सिलक्यारा सुरंग से मंगलवार रात सुरक्षित बचाए गए 41 श्रमिकों में से एक श्रमिक अनिल बेदिया ने कहा कि हमने अपनी प्यास बुझाने के लिए चट्टानों से टपकते पानी को चाटा और शुरूआती दस दिनों तक मुरमुरे खाकर जीवित रहे। झारखंड के 22 वर्षीय श्रमिक ने बताया कि उसने 12 नवंबर को सुरंग का हिस्सा ढहने के बाद मौत को बहुत करीब से देखा। बेदिया मलबा ढहने के बाद 12 नवंबर से सुरंग में फंसे थे।

उन्होंने बुधवार को से फोन पर करते हुई अपनी कहानी साझा की। बेदिया ने कहा, "मलबा ढहने के बाद तेज चीखों से पूरा इलाका गूंज गया..हम सब ने सोचा कि हम सुरंग के भीतर ही दफन हो जाएंगे। शुरूआती कुछ दिनों में हमने सारी उम्मीदे खो दी थी।" उन्होंने कहा, "यह एक बुरे सपने जैसा था, हमने अपनी प्यास बुझाने के लिए चट्टानों से टपकते पानी को चाटा और पहले दस दिनों तक मुरमुरे खाकर जीवित रहे।"

बेदिया रांची के बाहरी इलाके खिराबेड़ा गांव के रहने वाले हैं जहां से कुल 13 लोग एक नवंबर को उत्तरकाशी गए थे। उन्होंने बताया कि उन्हें नहीं पता था कि किस्मत ने उनके लिए क्या लिखा है। बेदिया ने बताया कि जब आपदा आई तो सौभाग्य से खिराबेड़ा के 13 लोगों में से केवल तीन ही सुरंग के अंदर थे। सुरंग के भीतर फंसे 41 श्रमिकों में से 15 श्रमिक झारखंड से थे। ये मजदूर रांची, गिरिडीह, खूंटी और पश्चिमी सिंहभूम के रहने वाले हैं। बेदिया ने बताया, "हमारे जीवित रहने की पहली उम्मीद तब जगी जब अधिकारियों ने लगभग 70 घंटों के बाद हमसे संपर्क स्थापित किया।" उनके अनुसार, उनके दो पर्यवेक्षकों ने उन्हें चट्टानों से टपकता पानी पीने के लिए कहा। बेदिया ने कहा, "हमारे पास सुरंग के अंदर खुद को राहत देने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं था। आखिरकार, जब हमने बाहर से हमसे बात करने वाले लोगों की आवाजें सुनीं, तो दृढ़ विश्वास और जीवित रहने की आशा ने हमारी हताशा को बदल दिया।"

उन्होंने कहा, "शुरूआती दस दिनों की चिंता के बाद पानी की बोतलें, केले, सेब और संतरे जैसे फलों के अलावा चावल, दाल और चपाती जैसे गर्म भोजन की आपूर्ति नियमित रूप से की जाने लगी। उन्होंने कहा, "हम जल्द से जल्द सुरक्षित बाहर निकलने के लिए प्रार्थना करते थे... आखिरकार भगवान ने हमारी सुन ली।"

उनके गांव के एक स्थानीय ने कहा कि चिंता से परेशान उसकी मां ने पिछले दो सप्ताह से खाना नहीं बनाया था और पड़ोसियों ने जो कुछ भी उन्हें दिया उसी से परिवार का गुजारा चल रहा था। खिराबेड़ा गांव के रहने वाले लकवाग्रस्त श्रवण बेदिया (55) का इकलौता बेटा राजेंद्र (22) भी उत्तराखंड सुरंग में फंस गया था। मंगलवार शाम को अपने बेटे के बाहर निकाले जाने की खबर के बाद उन्हें व्हीलचेयर पर जश्न मनाते देखा गया। राजेंद्र के अलावा गांव के दो अन्य लोग, सुखराम और अनिल भी 17 दिनों तक सुरंग के भीतर फंसे रहे। दोनों की उम्र करीब 20 साल के आसपास थी। सुखराम की लकवाग्रस्त मां पार्वती भी बेटे के सुरंग में फंसे होने की खबर से गमगीन थी। उनके सुरंग से बाहर निकलने के बाद उन्होंने खुशी जाहिर की। 

Web Title: Workers trapped in tunnel licked water dripping from rocks to stay alive puffed rice

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