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लोक सभा 2019: प्रियंका गांधी को चुनाव लड़ने के लिए इससे बेहतर सीट नहीं मिलेगी, जानिए क्या है वजह

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: January 23, 2019 17:37 IST

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपनी बहन प्रियंका गांधी को कांग्रेस महासचिव (पूर्वी उत्तर प्रदेश) नियुक्त किया है। प्रियंका को पूर्वी यूपी की कमान सौंपने के क्या मायने हैं?

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ठळक मुद्देराहुल गांधी ने प्रियंका गांधी को लोक सभा चुनाव 2019 के लिए पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी नियुक्त किया है। प्रियंका गांधी इससे पहले अमेठी और रायबरेली सीट के लिए चुनाव प्रचार करती थीं लेकिन वो सक्रिय राजनीति या संगठन से जुड़ी किसी जिम्मेदारी से दूर रहती थीं।प्रियंका गांधी के भाई राहुल गांधी ने दिसंबर 2017 में कांग्रेस अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाली थी।

आखिरकार ना-ना करते करते प्रियंका गांधी राजनीति में आ ही गईं। बुधवार को उनकी पोलिटिक्स में ऑफिशियल एंट्री के साथ ही यह सवाल चहुँओर पूछा जाने लगा है कि प्रियंका लोक सभा 2019 में चुनाव लड़ेंगी या नहीं और लड़ेंगी तो किस सीट से। ज्यादातर राजनीतिक जानकारों का मानना है कि प्रियंका रायबरेली से चुनाव लड़ सकती हैं। कांग्रेस इस सवाल को अभी टाल रही है लेकिन यूपी और रायबरेली से गांधी परिवार के पुराने सम्बन्ध को देखते हुए प्रियंका के लिए रायबरेली सबसे स्वाभाविक सीट होगी।

उत्तर प्रदेश गांधी परिवार के लिए बेहद खास रहा है। इलाहाबाद कभी नेहरू परिवार का गृह जनपद रहा है।  मोतीलाल नेहरू इलाहाबाद हाई कोर्ट में वकील थे। वहीं से उन्होंने कांग्रेस की राजनीति शुरू की थी। मोतीलाल नेहरू परिवार का निवास आनंद भवन आज संग्रहालय बन चुका है लेकिन यह इमारत राज्य से देश के शीर्ष राजनीतिक परिवार से जुड़ाव का ठोस गवाह है। देश के पहले आम चुनाव में नेहरू ने यूपी के फूलपुर सीट से चुनाव लड़ा और जीता था।

यूपी और नेहरू की विरासत

नेहरू की बेटी और देश की तीसरी प्रधानमंंत्री इंदिरा गांधी भी यूपी की रायबरेली सीट से चुनाव लड़ीं और जीती थीं। इंदिरा गांधी अपने जीवन में एक बार ही चुनाव हारी थीं वो भी रायबरेली से ही। नेहरू के नाती और इंदिरा के बेटे राजीव गांधी भी रायबरेली से सांसद चुनकर संसद पहुंचे थे।

जब राजीव गांधी के निधन के सात साल बाद 1998 में सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बनीं। सोनिया ने जब 1999 में पहली बार चुनाव लड़ा तो उन्होंने कर्नाटक की बेल्लारी और यूपी की अमेठी सीट से एक साथ चुनाव लड़ा। दोनों सीटों पर सोनिया ने चुनाव में जीत हासिल की लेकिन उन्होंने बाद में बेल्लारी सीट से इस्तीफा दे दिया था। सोनिया के इस फैसले से साफ हो गया कि गांधी परिवार उत्तर प्रदेश से अपना कनेक्शन जारी रखेगा।

साल 2004 में जब सोनिया और राजीव के बेटे राहुल गांधी सक्रिय राजनीति में उतरे तो उन्होंने अमेठी सीट पर चुनाव लड़ा और जीता। साल 2004 में सोनिया ने अपने पति और सास की सीट रायबरेली से चुनाव जीतकर संसद पहुँचीं।

पिछले डेढ़ दशकों से अमेठी और रायबरेली सीट से राहुल और सोनिया चुनाव जीतते आ रहे हैं। साल 2014 की नरेंद्र मोदी लहर में यूपी में कांग्रेस का इन दोनों सीटों को छोड़कर पूरे राज्य से सूपड़ा साफ हो गया। कांग्रेस को उसके गढ़ में चुनौती देने के मंसूबे से बीजेपी ने अमेठी सीट से स्मृति ईरानी को मैदान में उतारा था लेकिन वो कांग्रेस के युवराज को मात नहीं दे पायीं।

सोनिया गांधी की बीमारी

सोनिया गांधी 1999 से ही यूपी की रायबरेसी संसदीय सीट से सांसद हैं। (फाइल फोटो)
साल 2014 के लोक सभा चुनाव प्रचार के दौरान ही तत्कालीन अध्यक्ष सोनिया गांधी वाराणसी में एक चुनाव रैली के दौरान बीमार हो गयीं। सोनिया को रैली के बीच में ही विशेष विमान से दिल्ली लाया गया और यहाँ के आर्मी अस्पताल में वो कई दिनों तक भर्ती रहीं। उसी समय से अंदरखाने यह चर्चा होने लगी कि सोनिया अपनी नाजुक तबीयत के कारण सक्रिय राजनीति से अलग हो सकती हैं और उनकी जगह भरने के लिए उनकी बेटी प्रियंका राजनीति में आ सकती हैं।

गुजरात, कर्नाटक, पंजाब इत्यादि राज्यों के विधान सभा चुनाव के बीच में ही दिसंबर 2017 में सोनिया गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ दिया और उनकी जगह राहुल गांधी ने ले ली। पिछले एक साल में कांग्रेस की कमान पूरी तरह से राहुल गांधी के हाथ में दिख रही है जिससे साफ हो गया कि सोनिया अब पूरी तरह राहुल पर भरोसा करने लगी हैं।

मध्यप्रदेश, राजस्थान, छ्त्तीसगढ़, मिजोरम और तेलंगाना के विधान सभा चुनाव में राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस ने जैसा प्रदर्शन किया उसके बाद यह साफ हो गया कि सोनिया ने सही समय पर राहुल को पार्टी की कमान सौंपी है। पिछले एक साल में सोनिया राजनीतिक मंच से लगभग गायब रही हैं। 

कांग्रेस का भविष्य अब भले ही राहुल के हाथों में सुरक्षित लग रहा हो लेकिन पार्टी के सामने एक बड़ा सवाल यह रहा है कि अगर सोनिया सक्रिय राजनीति से पूरी तरह अलग होती हैं तो गांधी परिवार की पहचान बन चुकी रायबरेली सीट को क्या होगा।

बीजेपी के निशाने पर हैं अमेठी-रायबरेली

2014 के लोक सभा चुनाव में बीजेपी नेता स्मृति ईरानी राहुल गांधी के खिलाफ अमेठी से चुनाव लड़ी थीं।
साल 2014 में जिस तरह बीजेपी ने राहुल को अमेठी सीट पर मात देकर 'कांग्रेस मुक्त' भारत का संदेश देने की विफल कोशिश की उसके बाद कांग्रेस का पूरा अहसास है कि इस बार भी अमेठी और रायबरेली सीट पर बीजेपी कांग्रेस को हराकर प्रतीकात्मक जीत हासिल करना चाहेगी।

अमेठी और रायबरेली लोक सभा सीटों का गांधी परिवार के पास रहना एक तरह से उस राजनीतिक विरासत के मौजूद होने का संकेत है जिसके दम पर इस परिवार ने अब तक देश को तीन प्रधानमंत्री और पाँच कांग्रेस अध्यक्ष दिये हैं।  

ऐसे में रायबरेली सीट को गांधी परिवार अपने पास ही रखना चाहेगा। और यह भी साफ है कि सोनिया की छोड़ी हुई कुर्सी पर प्रियंका गांधी से ज्यादा उपयुक्त उम्मीदवार दूसरा नहीं होगा। 

आज भले ही वरिष्ठ कांग्रेस नेता मोतीलाल वोरा ने मीडिया से कहा  हो कि प्रियंका के रायबरेली से चुनाव लड़ने पर फैसला वक़्त आने पर होगा, राहुल गांधी ने कहा हो कि चुनाव लड़ने का फैसला प्रियंका का निजी फैसला होगा, लेकिन राजनीतिक पंडितों ने मजमून पढ़कर खत की इबारत भाँप ली है। साफ है कि चुनावी एंट्री के लिए प्रियंका गांधी को रायबरेली से बेहतर सीट नहीं मिलेगी।

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