अमित शाह ने नागरिकता बिल को शीत सत्र में ही पारित कराने पर क्यों दिया जोर? सामने आया अहम राज
By हरीश गुप्ता | Published: January 2, 2020 08:49 AM2020-01-02T08:49:23+5:302020-01-02T08:49:23+5:30
राजनीतिक रूप से भाजपा के लिए यह बेहद महत्वाकांक्षी लक्ष्य है, इसलिए जब अमित शाह ने इस संदर्भ में प्रस्ताव रखा तो भाजपा हाईकमान ने इसका स्वागत किया. यदि पश्चिम बंगाल में सीएए पर अमल होता है तो इसका सीधा असर राज्य की 95 विधानसभा सीटों पर पड़ेगा.
नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) से जुड़ा अहम राज सामने आ गया है कि क्यों केंद्र सरकार और गृह मंत्री अमित शाह इसे संसद के शीत सत्र के अंतिम दिनों में पारित कराने के लिए पूरा जोर लगा दिया. भाजपा और केंद्र सरकार के लिए वर्ष 2019 बेहद सफल और ऐतिहासिक साबित हुआ है. लोकसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत से जीत दर्ज करने के बाद सरकार ने बेहद तत्परता के साथ लंबे समय से अटके 'तीन तलाक' बिल को संसद के मानसून सत्र के दौरान 31 जुलाई को पारित करा लिया.
इसके बाद देश उस ऐतिहासिक क्षण का साक्षी बना, जब संसद ने 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर से धारा 370 के विशेष प्रावधान हटाने वाले बिल पर अपनी मुहर लगा दी. इसी दौरान सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि कश्मीर घाटी में उपद्रव या हिंसा की छुटपुट घटनाओं के अलावा स्थिति शांतिपूर्ण बनी रही. दुनिया ने भी भारत के इस कदम को स्वीकार किया. भाजपा नीत केंद्र सरकार के उत्साह को बढ़ाने वाली एक घटना उस वक्त हुई, जब 9 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत के आधार पर फैसला सुनाते हुए अयोध्या में राम मंदिर का रास्ता साफ कर दिया.
शीर्ष अदालत के इस फैसले से एक सदी से भी ज्यादा समय से अनसुलझे विवाद का अंत हो गया. इन घटनाओं से अमित शाह का उत्साह चरम पर पहुंच गया और उन्होंने तय किया कि लंबे समय से अटके पड़े नागरिकता संशोधन बिल को भी 2019 में ही पारित करा लिया जाएगा. यह कदम पश्चिम बंगाल में वर्ष 2021 में होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा को राजनीतिक लाभ पहुंचाने वाला साबित हो सकता है. 11 करोड़ की जनसंख्या वाले इस राज्य में करीब 7 करोड़ वोटर हैं.
गृह मंत्रालय का अनुमान है कि इनमें से करीब 1 करोड़ अवैध अप्रवासी हैं. भाजपा का आकलन है कि इनमें से लगभग 25-30 लाख लोग गैर मुस्लिम हैं. नागरिकता कानून के पारित होने के साथ ही उन्हें नागरिकता प्रदान करने का रास्ता साफ हो जाएगा और वे वैध वोटर बन जाएंगे, जबकि राज्य में अवैध रूप से रह रहे लगभग 70 लाख मुस्लिम अधिकारों से वंचित हो जाएंगे.
राजनीतिक रूप से भाजपा के लिए यह बेहद महत्वाकांक्षी लक्ष्य है, इसलिए जब अमित शाह ने इस संदर्भ में प्रस्ताव रखा तो भाजपा हाईकमान ने इसका स्वागत किया. यदि पश्चिम बंगाल में सीएए पर अमल होता है तो इसका सीधा असर राज्य की 95 विधानसभा सीटों पर पड़ेगा. हालांकि कानून के खिलाफ लोग जिस तरह से सड़कों पर उतर आए हैं, अभी कह पाना मुश्किल है कि शाह अपने लक्ष्य को हासिल करने में किस हद तक कामयाब हो पाएंगे.
असम में एनआरसी से लिया सबक विपक्ष की कमजोरी का उठाया फायदा असम में एनआरसी की कवायद का भले ही ठोस नतीजा नहीं निकला लेकिन यह तथ्य सामने आया कि केवल इसी राज्य में 18 लाख से अधिक लोग अवैध रूप से रह रहे हैं. भाजपा को लगता है कि पश्चिम बंगाल में इसी तरह के लोगों की संख्या 1 करोड़ से अधिक हो सकती है. इन बातों को ध्यान में रखते हुए भाजपा और सरकार ने तय किया कि सीएए को शीत सत्र में ही पारित करा लिया जाए. अमित शाह जानते थे कि विपक्ष न ही संगठित है और न ही ताकतवर. गैर राजग दलों की हालत भी ऐसी है कि उन्हें बिल का समर्थन करना ही होगा.
प. बंगाल में 'कमल' खिलाने के लिए शाह सीख रहे हैं बांग्ला
अमित शाह के लिए पश्चिम बंगाल में 'कमल' खिलाना, त्रिपुरा की जीत से भी बड़ा सपना है. इन दिनों वे जोर-शोर से बांग्ला सीख रहे हैं ताकि चुनाव प्रचार के दौरान राज्य की जनता को उसी की जुबान में संबोधित कर सकें. ऐसा कर वे यह साबित करना चाहते हैं कि भाजपा सिर्फ हिंदीभाषियों की पार्टी नहीं है.