अयोध्या: राम मंदिर निर्माण के मुद्दे पर बीजेपी-संघ में महीनों तक थी तनातनी, जानिए फिर कैसे हुआ समझौता

By अभिषेक पाण्डेय | Published: November 1, 2019 10:09 AM2019-11-01T10:09:00+5:302019-11-01T10:09:52+5:30

RSS, BJP: पिछले साल लोकसभा चुनावों से ठीक पहले अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के मुद्दे पर सत्तारूढ़ बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक में दूरियां बढ़ गई थीं

When Ram Mandir Issue emerged as irritant between RSS, BJP, and how they agreed on Ayodhya | अयोध्या: राम मंदिर निर्माण के मुद्दे पर बीजेपी-संघ में महीनों तक थी तनातनी, जानिए फिर कैसे हुआ समझौता

राम मंदिर निर्माण के मुद्दे पर बीजेपी-संघ में महीनों तक थी दूरियां

Highlightsलोकसभा चुनावों से पहले बीजेपी और संघ में राम मंदिर मुद्दे पर नहीं थी सहमतिसंघ चाहता था कि बीजेपी सरकार संसद में कानून बनाकर करे राम मंदिर का निर्माण

राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की अयोध्या मामले पर बीजेपी और अपने प्रचारकों के साथ होने वाली बैठक टालना, इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने से पहले, सत्तारूढ़ पार्टी के साथ जारी उसकी महीनों पुरानी टकराव में नरमी का संकेत हैं। 

बुधवार को संघ ने अपने टॉप प्रचारकों, सत्तारूढ़ बीजेपी और विश्व हिंदू परिषद के नेताओं के साथ 31 अक्टूबर से 4 नवंबर तक प्रस्ताविक बैठक को टाल दिया। लेकिन पिछले साल आरएसएस और बीजेपी के बीच संसद में कानून के जरिए राम मंदिर निर्माण की मांग को लेकर कई महीनों तक तनातनी रही थी। 

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, लोकसभा चुनावों से महज छह महीने पहले राम मंदिर निर्माण का मुद्दा बीजेपी और संघ के बीच तनाव की वजह बन गया था। 

मंदिर निर्माण पर कानून बनाने को लेकर बीजेपी और संघ में आ गई थीं दूरियां

सूत्रों के मुताबिक, इस तनाव ने एनडीए की पहली सरकार के दौरान तब के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और वीएचपी के अशोक सिंघल और आरएएस प्रमुख सुदर्शन के बीच तनाव की यादें ताजा कर दीं। 

लेकिन इस बार बीजेपी नेता संघ को ये समझाने में सफल रहे कि राम मंदिर निर्माण के लिए संसद कानून लाने का रास्ता कोर्ट में प्रतिकूल साबित हो सकता है।
 
संघ जल्द से जल्द मंदिर निर्माण की मांग पर अड़ा था

दोनों पक्षों के बीच इस मुद्दे पर तनाव की शुरुआत आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत द्वारा सितंबर 2018 में दिल्ली में विज्ञान भवन में तीन दिवसीय चर्चा के दौरान मंदिर के जल्द से जल्द निर्माण की मांग से शुरू हुआ।

भागवत ने ये मांग 18 अक्टूबर 2018 को नागपुर में हुई अपनी दशहरा रैली में भी उठाई-उन्होंने 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से अपने पिछले चार भाषणों में कभी भी इस मुद्दे को नहीं उठाया था। दशहरा के एक पखवाड़े के भीतर ही विश्व हिंदू परिषद ने ऐक्शन प्लान तैयार करने के लिए संतों के साथ बैठक की। 

बीजेपी ने संघ को मनाने के लिए कीं कईं बैंठकें

इसके बाद तनाव बढ़ गया और बीजेपी ने अपना पक्ष रखा। पिछले साल अक्टूबर में लखनऊ में हुई एक समन्वय बैठक में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने आरएसएस के संयुक्त महासचिव कृष्ण गोपाल की मौजूदगी में इस बात के संकेत दिए कि कोर्ट की अनदेखी करने में सरकार की सीमाएं हैं। लेकिन संघ ने वीएचपी द्वारा नियोजित आंदोलन को प्रोत्साहित करना जारी रखा।  

रिपोर्ट के मुताबिक, इसके बाद बीजेपी ने कानूनी बिरादरी में अपने दोस्तों से सलाह ली। बीजेपी के लीगल सेल के प्रमुख जगदीप धनखंड़, जो अब पश्चिम बंगाल के गर्वनर, ने मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में होने के बाजूद कानून बनाने के रास्ते का समर्थन किया था।   

इसके बाद बीजेपी की ओर से संघ को मान-मनौव्वल और समझाने की कोशिशों का दौरा जारी रहा कि मंदिर निर्माण के लिए कानून बनाने का कदम उल्टा पड़ सकता है। लेकिन संघ नहीं माना और वीएचपी समर्थित अखिल भारतीय संत समिति (एबीएसएस) ने राम मंदिर निर्माण के लिए कानून बनाने की मांग करते हुए अयोध्या, नागपुर, बेंगलुरु और दिल्ली में धर्मसभाओं के आयोजन का ऐलान कर दिया।

ये धर्मसभाएं क्रमश: 25 नवंबर को नागपुर और अयोध्या, 2 दिसंबर को मुंबई और 9 दिसंबर को दिल्ली में हुईं। इनमें मोहन भागवत, कृष्ण गोपाल जैसे संघ के बड़े नेता भी शामिल हुए।

मोदी और शाह की कोशिशों से माना संघ

सूत्रों के मुताबिक बीजेपी नेताओं ने लोकसभा चुनावों से पहले किसी भी प्रकार के टकराव से बचने के लिए 21 दिसंबर को अमित शाह और मोहन भागवत की बैठक में फिर से संघ को मनाने की कोशिश की। इस बैठक के बाद संतों को मनाने के लिए शाह ने अखिर भारतीय संत समिति के प्रमुख सदस्यों के साथ बैठकें शुरू की। साथ ही पीएम मोदी द्वारा मिले आश्वासन ने भी मामले को ठंडा करने का काम किया।

नए साल के दिन पीएम मोदी ने एएनआई को दिए इंटरव्यू में कहा, 'कानूनी प्रक्रिया पूरी होने देते हैं। कानूनी प्रक्रिया पूरी होने के बाद सरकार की जो भी जिम्मेदारी होगी, हम उसे पूरा करने के लिए सभी प्रयास करने को तैयार हैं।' इसके बाद जनवरी के पहले हफ्ते में अमित शाह, रामलाल ने भागवत के साथ चेन्नई में बैठक की, जिससे मामला सुलझने की शुरुआत हुई और ये दोनों इस मुद्दे पर साथ चलने को सहमत हुए।

इसके बाद केंद्र सरकार ने 29 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट से मंदिर ट्रस्ट को 1992 में बाबरी मस्जिद ध्वस्त किए जाने के बाद अधिग्रहित की गई उस 67 एकड़ अतिरिक्त भूमि सौंपने को कहा, जिसे लेकर विवाद नहीं है। शीर्ष अदालत ने कहा 2003 में अधिग्रहित की गई भूमि के मामले में यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया। 

Web Title: When Ram Mandir Issue emerged as irritant between RSS, BJP, and how they agreed on Ayodhya

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे