... जब भारतीय वैज्ञानिकों ने अपना ध्यान कोविड-19 की ओर लगाया, अनुसंधान में ऊंची छलांग लगाई

By भाषा | Updated: December 27, 2020 17:03 IST2020-12-27T17:03:53+5:302020-12-27T17:03:53+5:30

... when Indian scientists turned their attention to Kovid-19, leaped higher in research | ... जब भारतीय वैज्ञानिकों ने अपना ध्यान कोविड-19 की ओर लगाया, अनुसंधान में ऊंची छलांग लगाई

... जब भारतीय वैज्ञानिकों ने अपना ध्यान कोविड-19 की ओर लगाया, अनुसंधान में ऊंची छलांग लगाई

(शकूर राठेर)

नयी दिल्ली, 27 दिसंबर भारत में इस साल जनवरी के आखिरी सप्ताह में कोविड-19 का पहला मामला सामने आया था और तब से वैज्ञानिक तेजी से फैलने वाली इस बीमारी की उत्पत्ति का पता लगाने, नैदानिक जांच और टीका विकास जैसे अहम अनुसंधान कार्यों में जुटे हैं।

कई ने तो कोविड-19 के हिसाब से अपना अनुसंधान बदल दिया तो कई अन्य ने इस महामारी को पराजित करने की ज्वलंत और तात्कालिक जरूरत के चलते नए सिरे से शुरुआत की।

एक साल गुजर जाने के बाद वैज्ञानिकों के प्रयास रंग लाने लगे हैं और भारतीय वैज्ञानिक सीमित वित्तपोषण एवं संसाधनों के बावजूद इस बीमारी के विरुद्ध वैश्विक लड़ाई में अग्रिम मोर्चे पर हैं।

उदाहरण के लिए भारत में कोरोना वायरस का पहला मामला आने से पहले ही देबाज्योति चक्रवर्ती ने अनुमान व्यक्त किया था कि वैज्ञानिकों का काम निर्धारित है और समय रहते प्रयास शुरू हो गए।

जनवरी में दिल्ली के सीएसआईआर -इंस्टिट्यूट ऑफ जिनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायलॉजी में चक्रवर्ती और उनकी टीम ‘जीन एडिटिंग’ प्रौद्योगिकी सीआरआईएसपीआर के आधार पर ‘सिकल सेल एनीमिया’ की नैदानिक जांच के लिए प्रोटोटाइप पर काम कर रही थी।

चक्रवर्ती ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘इस महामारी के बारे में सूचना सामने आई और हम सार्स-कोव-2 वायरस की दिशा में मुड़ने लगे तथा जरूरी सूचनाएं जुटाने लगे।’’

जनवरी में ही इस टीम ने सीआरआईएसपीआर आधारित कोविड-19 जांच ‘फेलुदा’ पर काम शुरू कर दिया था। यह जांच सस्ती, सुरक्षित और मानक आरटीपीसीआर जांच का विकल्प है। इसमें जांच परिणाम में महज 45 मिनट लगते हैं।

चक्रवर्ती की तरह ही भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई के रजनीश भारद्वाज और अमित अग्रवाल भौतिकी के किसी अन्य विषय पर अनुसंधान में व्यस्त थे। लेकिन कोविड-19 महामारी आने पर उन्होंने कोरोना वायरस संक्रमण के मुख्य कारणों पर ध्यान लगाना शुरू कर दिया।

भारद्वाज ने कहा, ‘‘ हम इन वैज्ञानिक और सामाजिक रूप से प्रासंगिक समस्याओं पर काम शुरू करने वाले पहले वैज्ञानिकों में शामिल हैं। उदाहरण के लिए प्रतिष्ठित पत्रिका ‘फिजिक्स ऑफ फ्लूड्स’ में कोविड पर दूसरा तथा इसी विषय पर प्रकाशित अंक में तीन और शोधपत्र हमारे समूह से थे।’’

उन्होंने कहा, ‘‘चिकित्सा बिरादरी ने भी अप्रत्याशित तरीके से क्लिनिकल डाटा और टीके के विकास पर रिपोर्टिंग की है।’’

इस महामारी से पहले हैदराबाद के ‘सेंटर फॉर डीएनए फिंगरप्रिंटिंग एंड डायग्नोस्टिक’ में मुरली धरन बाश्याम और उनकी टीम अग्नाश्य कैंसर तथा अन्य विषय पर अनुसंधान कर रही थी।

वैज्ञानिक ने कहा, ‘‘ जब लॉकडाउन लगाया गया तब हमारे समूह के लिए परेशान करने वाली बात थी। लेकिन हमने अहसास किया कि हमें प्रतीक्षा करने की जरूरत है। जून 2020 तक हमने सोचा कि कोविड-19 अनुसंधान में योगदान करना हमारा कर्तव्य है।’’

कई राष्ट्रीय संस्थानों के अनुसंधानकर्ताओं और जैव प्रौद्योगिकी विभाग के के साथ चर्चा के बाद सरकार ने कोविड-19 अनुंसधान के चार अहम क्षेत्रों-- वायरस जिनोमिक्स, डायग्नोस्टिक्स, थेरैपेटिक्स और टीका विकास को चिह्नित किया।

बाश्याम ने कहा, ‘‘मेरे समूह ने वायरल जिनोमिक्स के क्षेत्र में योदान करने का निर्णय किया क्योंकि वह हमारी महारत का क्षेत्र था।

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