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चीनी सामान के बहिष्कार का नारा क्या कामयाब होगा, भारत कितना है तैयार

By शीलेष शर्मा | Updated: June 24, 2020 17:36 IST

डब्ल्यू टी ओ के नियमों के तहत भारत सहित कोई देश किसी भी देश जिसमें चीन भी शामिल है के सामन के आयात -निर्यात को रोक नहीं सकता ,लेकिन व्यापर पर अंकुश लगाने के विकल्प हैं जिसके तहत आयातित सामन पर डम्पिंग ड्यूटी ,गुणवत्ता की जांच परख के साथ साथ लोगों को आयातित सामान के बाहिष्कार करने जैसे उपाय शामिल हैं। परन्तु जिस तरह चीन ने व्यापार का जाल दुनिया भर में बिछा रखा है उसे देखते हुये यह पूरी तरह नामुमकिन है कि चीन से व्यापर का रास्ता पूरी तरह बंद कर दिया जाये . 

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ठळक मुद्देचीनी सामान का बहिष्कार, चीनी कंपनियों को दिये गये ठेकों पर प्रतिबंध का सैलाब आ गया हैदेश की अर्थव्यवस्था जिस दौर से गुजर रही है उस समय निवेश को रोकने अथवा उससे इंकार करना देश की अर्थ व्यवस्था के लिये आत्मघाती साबित होगा।

नई दिल्ली: भारत -चीन सीमा पर शहीद हुये सैनिकों को लेकर चीन के खिलाफ देश भर में उठे आक्रोश से चीनी सामान का बहिष्कार, चीनी कंपनियों को दिये गये ठेकों पर प्रतिबंध का सैलाब आ गया है लेकिन उसी के साथ राजनैतिक दलों और विशषज्ञों की ओर से यह सवाल भी खड़ा हो रहा है कि क्या भारत, चीन से हो रहे व्यापार को आज के हालात में प्रतिबंधित करने की स्थिति में है? राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भाजपा के आर्थिक मामलों के विचारक एस गुरुमूर्ति सरकार के उस फ़ैसले को मूर्खतापूर्ण फ़ैसला मानते हैं जिसके तहत चीनी निवेश को रोकने अथवा उसके बहिष्कार की बात कही जा रही है। 

उनका मानना है कि देश की अर्थव्यवस्था जिस दौर से गुजर रही है उस समय निवेश को रोकने अथवा उससे इंकार करना देश की अर्थ व्यवस्था के लिये आत्मघाती साबित होगा। गुरुमूर्ति ने पूछा कि चीन से निवेश रोकने के बाद अर्थव्यवस्था चलाने के लिये निवेश कहाँ से आयेगा। चीन से व्यापर को रोकने के लिये लंबे समय तक योजनाबद्ध तरीके से काम करना होगा ,यह आवेश में आकर लिये जाने वाला फ़ैसला नहीं है। महाराष्ट्र ने जिस तरह 5 हज़ार करोड़ के चीनी निवेश को ठन्डे बस्ते में डालने की बात कही है वह व्यावहारिक नहीं है ,क्या आप रोज़गार के अवसर गंवाना चाहते हैं। हाँ यदि व्यक्तिगत स्तर पर कोई व्यक्ति चीनी सामन का बहिष्कार करता है तो उसकी मर्ज़ी है और वह इसके लिए स्वतंत्र है।

चीन भारत में 8 बिलियन अमेरिकी डॉलर कर चुका है निवेश

आंकड़े बताते हैं कि इस समय चीन भारत में 8 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश कर चुका है, भारतीय बाज़ार में चीन निर्मित 70 फ़ीसदी स्मार्ट मोबाईल फ़ोन हैं ,प्रधानमंत्री मोदी की स्टार्ट अप स्कीम में चीन का 5. 5 बिलियन डॉलर का निवेश है। 2008 में जब दुनिया आर्थिक मंदी के दौर में आयी चीन ने चतुराई से बाज़ार के ज़रिये कूटिनीति करने का निर्णय किया और दुनिया भर में अमेरिकी निर्भरता को रोक कर चीनी उत्पादों को भर दिया। गैर सरकारी आंकड़े बताते हैं कि भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 2. 34 बिलियन अमेरिकी डॉलर है। प्रमुख अर्थशास्त्री और कांग्रेस नेता प्रो। गौरव बल्लभ मानते हैं कि मोदी सरकार आज के हालात के लिये दोषी है क्योंकि इसी सरकार ने 2014 में प्रति व्यक्ति आयात 3000 रुपये था वह 6000 रुपये तक जा पहुंचा है ,मोदी सरकार ने चीन से आयात को बढ़ाने में अपनी ताक़त लगा दी। आज हम चीन से 5. 15 लाख करोड़ का आयात कर रहे हैं और चीन को हमारा निर्यात महज 1. 15 लाख करोड़ है जिससे व्यापर घाटा लगभग 4 लाख करोड़ पर जा पहुंचा है। जो दुनिया के किसी दो देशों के बीच सबसे अधिक है। 

कांग्रेस चाहती है कि चीनी सामान का बहिष्कार हो

उन्होंने मोदी के मेक इन इंडिया कार्यक्रम पर सवाल उठाते हुये कहा कि वास्तब में यह मेड बाई चाइना कार्यक्रम है क्योंकि आज देश में 800 चीनी कंपनियां उत्पादन कर रही हैं जिनको हम मेड इन इंडिया कह कर बेच रहे हैं। 300 चीनी कंपनिया मेक इन इंडिया के तहत रजिस्टर्ड की गयी हैं। चीन भारत में अपना जाल बिछा चुका है। कांग्रेस चाहती है कि चीनी सामान का बहिष्कार हो लेकिन सरकार की नीतियों ने उसे जकड़ रखा है। रेल, दूरसंचार ,निर्माण जैसे क्षेत्रों में चीन हाबी है एँटिबायटिक दवाओं का 80 फ़ीसदी से अधिक हिस्सा हम चीन से ले रहे हैं। 2014 में चीन का निवेश 1. 6 बिलियन अमेरिकी डॉलर था लेकिन मोदी सरकार ने 2019 में इसे 2. 6 बिलियन अमेरिकी डॉलर पर पहुंचा दिया दूसरे विशेषज्ञ भी मानते हैं चीन से व्यापर पर अंकुश लगाना अब आसान नहीं है ,यदि आप अवरोधक खड़े करते हैं तो चीन थाईलैंड ,वियतनाम ,सिंगापुर ,बांग्लादेश ,नेपाल जैसे किसी देश में उत्पादन कर भारत में उस देश के नाम से अपने उत्पादों को खपायेगा।

टॅग्स :चीनइंडिया
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