अयोध्या विवाद: 'मोल्डिंग ऑफ रिलीफ' क्या होता है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों से मांगा है जवाब

By विनीत कुमार | Published: October 16, 2019 07:32 PM2019-10-16T19:32:47+5:302019-10-16T19:33:11+5:30

‘मोल्डिंग ऑफ रिलीफ' (राहत में बदलाव) का प्रावधान आम तौर पर सिविल सूट वाले मामलों के लिए होता है। अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट मे इसका जिक्र किया और सभी पक्षकारों से लिखित में जवाब भी मांगा है।

what is Moulding of relief supreme court demands written answers within 3 days in Ayodhya Dispute | अयोध्या विवाद: 'मोल्डिंग ऑफ रिलीफ' क्या होता है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों से मांगा है जवाब

'मोल्डिंग ऑफ रिलीफ' क्या होता है, जानिए

Highlightsसुप्रीम कोर्ट में पूरी हो गई राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद पर सुनवाईकोर्ट ने ‘मोल्डिंग ऑफ रिलीफ' पर सभी पक्षों से लिखित दलील दाखिल करने को कहा है‘मोल्डिंग ऑफ रिलीफ' का प्रावधान आमतौर पर सिविल सूट वाले मामलों के लिए होता है

अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई बुधवार को पूरी हो गई। इसके साथ ही फैसले की उम्मीद भी बढ़ गई है। माना जा रहा है कि अगले महीने इस ऐतिहासिक मामले पर फैसला आ सकता है। सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने इस मामले में लगातार 40 दिन सुनवाई करते हुए इसे पूरा किया। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के अलावा संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनंजय वाई चन्द्रचूड, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर भी शामिल हैं। 

कोर्ट ने बहरहाल सुनवाई के बाद पक्षों को ‘मोल्डिंग ऑफ रिलीफ’ के मुद्दे पर लिखित दलील दाखिल करने के लिये तीन दिन का समय दिया। ऐसे में सवाल उठता है कि ‘मोल्डिंग ऑफ रिलीफ’ क्या है, जिसके जरिए सुप्रीम कोर्ट अब फैसले की निकालने के करीब है।

‘मोल्डिंग ऑफ रिलीफ’ क्या होता है?

‘मोल्डिंग ऑफ रिलीफ' (राहत में बदलाव) का प्रावधान आम तौर पर सिविल सूट वाले मामलों के लिए होता है। सीधे और आसान शब्दों में अगर इसे समझे तो इसका मतलब ये हुआ कि ऐसे मामलों में याचिकाकर्ता और विभिन्न पक्ष कोर्ट से जो मांग रखते हैं, अगर वह पूरी नहीं होती या वो उसे नहीं मिलती तो उस विकल्प पर बात होती है जो उसे दिया जा सके। 

उदाहरण के तौर पर अगर अयोध्या विवाद की ही बात करें तो अगर जमीन का मालिकाना हक एक पक्ष को दिया जाता है तो दूसरे पक्ष को क्या देना चाहिए, इस पर विचार होता है। ऐसे में सीधा मतलब ये है कि सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षकारों से लिखित में तीन दिन के भीतर मोल्डिंग ऑफ रिलीफ पर जवाब मांगा है। यानी अगर किसी पक्षकार के खिलाफ फैसला आता है तो उसे विकल्प के तौर पर क्या चाहिए, इस बात की जानकारी उसे कोर्ट को लिखित में देनी होगी।

इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था मामला

सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ अयोध्या में 2.77 एकड़ विवादित भूमि को तीन पक्षकारों-सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला- के बीच बराबर-बराबर बांटने का आदेश देने संबंधी इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिका पर पिछले कई सालों से सुनवाई कर रही थी। मामला आने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मई 2011 में हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुये अयोध्या में यथास्थिति बनाये रखने का आदेश दिया था।

Web Title: what is Moulding of relief supreme court demands written answers within 3 days in Ayodhya Dispute

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