उत्तराखंड: अपनों से मिलने की आस में सुरंग के पास ठंड में डटे हैं लोग

By भाषा | Updated: February 9, 2021 19:08 IST2021-02-09T19:08:07+5:302021-02-09T19:08:07+5:30

Uttarakhand: People are freezing near the tunnel in the hope of meeting their loved ones | उत्तराखंड: अपनों से मिलने की आस में सुरंग के पास ठंड में डटे हैं लोग

उत्तराखंड: अपनों से मिलने की आस में सुरंग के पास ठंड में डटे हैं लोग

तपोवन, नौ फरवरी धौलीगंगा में रविवार को आई बाढ़ से यहां एनटीपीसी की पनबिजली परियोजना के ध्वस्त बैराज के आसपास अभी भी गाद और पानी के जमाव के कारण दलदल बना हुआ है। हालांकि, ठंड के बावजूद अपने लापता परिजनों से मिलने की आस में लोग यहां सुबह से ही जमा हो जाते हैं।

इन लोगों ने रविवार की शाम से ही तपोवन में डेरा डाला हुआ है और हर सुबह वे तपोवन से आधा किलोमीटर की दूरी पर स्थित धौलीगंगा के किनारे चले आते हैं और वहां अपनों से मिलने के इंतजार में बैठे रहते हैं।

इन्हीं में से एक लंगासू के कांचुला गांव के दीपक नग्वाल भी हैं, जिनके बहनोई एनटीपीसी की उसी सुरंग में काम कर रहे थे जहां बाढ़ का पानी और मलबा भर गया। सेना, राष्ट्रीय आपदा मोचन बल सहित कई एजेंसियां वहां सुरंग खोलने का प्रयास कर रही हैं लेकिन अभी तक वे वहां फंसे लोगों तक पहुंच नहीं बना सकी हैं।

दीपक के साथ उनके बहनोई की बड़े भाई और अन्य रिश्तेदार भी हैं।

उन्होंने बताया कि उनके बहनोई सतेश्वर सिंह यहां एचसीसी कंपनी में पानी निकासी प्रणाली में मैकेनिक के रूप में कार्यरत थे जो रविवार को अपनी ड्यूटी पर थे।

चमोली जिले के किमाणा गांव के तीन युवक भी इसी सुरंग में फंसे हैं। इन युवकों का हाल जानने के लिए पिछले तीन दिन से किमाणा के 40 से अधिक लोग तपोवन में हैं।

किमाणा गांव के दर्शन सिंह बिष्ट ने बताया कि उनके तीन रिश्तेदार, अरविंद सिंह, रामकिशन सिंह और रोहित सिंह इस सुरंग में फंसे हुए हैं। अठारह से 20 साल की उम्र के इन युवकों ने दो महीने पहले ही ऋत्विक कंपनी में नौकरी शुरू की थी। घर में अब इनके वृद्ध मां-बाप ही रह गए हैं।

तपोवन के पास के ही डाक गांव के दर्शन सिंह बिष्ट भी इस सुरंग के अंदर फंसे हुए हैं। वह यहां पानी निकासी से जुड़े कार्य में मैकेनिक के रूप में कार्यरत थे।

उनके भाई विजय सिंह बिष्ट पिछले तीन दिनों से अपना काम-धंधा छोड़कर उनके जीवित होने की आशा में टनल गेट के पास ही डटे हुए हैं।

विजय सिंह बिष्ट ने बताया कि जैसे-जैसे समय निकलता जा रहा है, भाई की कुशलता को लेकर उनकी बेचैनी भी बढ़ती जा रही है।

उन्होंने कहा कि राहत कार्यों में उन्नत मशीनों का उपयोग होना चाहिए जो अभी नहीं हो रहा है। ऐसे में मलबा साफ करने में ज्यादा समय लग रहा है।

करछौं गांव के 60 साल के भवान सिंह फरस्वाण भी रविवार सुबह से ही अपने गांव के साथियों के साथ एक युवक की तलाश में सुरंग के पास आ जाते हैं। स्वयं भवान सिंह के परिवार से रैणी में ध्वस्त हुई ऋषिगंगा पनबिजली परियोजना से भी दो लोग लापता हैं।

इस हादसे में देश और प्रदेश के अलग-अलग भागों के लोग भी लापता हैं। देहरादून के समीप जौनसार के दातुनू गांव के ही अकेले 19 लोग आपदा में लापता हैं। इस गांव के 25 लोग यहां एनटीपीसी के विभिन्न ठेकेदारों के साथ कार्यरत थे, जिनमें से रविवार को छह की छुट्टी थी जो हादसे का शिकार होने से बच गए।

दातुनू गांव के अमर सिंह मायूस हैं और उन्होंने बताया कि पूरा गांव शोक में है।

तपोवन के बैराज स्थल जैसे ही हालात रेणी में भी हैं जहां ऋषिगंगा परियोजना स्थल में 46 लोग लापता हो गए थे। वहां भी देश के अलग-अलग भागों से परिजन अपनों से मिलने की आस में बैठे हुए हैं।

यहां मंगलवार सुबह चार शव बरामद किए गए है जिनमें एक पुलिस का जवान भी शामिल है।

राज्य आपदा प्रतिवादन बल के कमांडेंट नवनीत सिंह भुल्लर ने बताया कि सुरंग में फंसे लोगों को बाहर निकालने का चुनौतीपूर्ण राहत अभियान जारी है और आशा है कि जल्द ही सुरंग में फंसे लोगों को निकाल लिया जायेगा।

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