यूपी चुनाव से पहले एक हुए चाचा-भतीजा, शिवपाल से मुलाकात के बाद अखिलेश ने किया गठबंधन का एलान
By आजाद खान | Published: December 17, 2021 08:21 AM2021-12-17T08:21:48+5:302021-12-17T08:24:58+5:30
2022 के आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सपा और प्रसपा का यह गठबंधन बीजेपी को सीधा टक्कर दे सकता है।
भारत: उत्तर प्रदेश में चुनाव को मद्देनजर रखते हुए अब राजनीतिक पार्टियां भी गठबंधन और विलय करने लगी हैं। ऐसे समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (प्रसपा) के अध्यक्ष शिवपाल यादव से मुलाकात और गठबंधन पर चर्चा ने सियासत को गर्मा दिया है। उन्होंने अपने चाचा से उनके घर पर ही मुलाकात किया और गठबंधन के साथ अन्य कई और मुद्दों पर भी चर्चा किया। बता दें कि चाचा शिवपाल पहले से ही सपा के साथ गठबंधन का ईशारा दे रहे थे और दोनों पार्टियों को मिलकर चुनाव में काम करने की बात कह रहे थे। अखिलेश यादव ने इस मुलाकात के बाद ट्वीट कर इसकी जानकारी दी।
चाचा के घर अचानक पहुंचे सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव
बता दें कि चाचा शिवपाल गुरुवार को विधानसभा की एक बैठक में भाग लेने आए थे। ऐसे में एकाएक दोनों के मुलाकात का प्लान बना और अपने चाचा से मिलने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव उनके घर पहुंचे। बताया जा रहा है कि दोनों के बीच लगभग 40 मिनट तक बातचीत हुई जिसमें दोनों दलों के बीच गठबंधन को लेकर सहमति बनी। वहीं इस बीच यह भी खबर है कि इस मुलाकात में मुलायम सिंह यादव व शिवपाल के बेटे आदित्य यादव की भी अहम भूमिका रही है। इस अहम बैठक की जानकारी देते हुए सपा अध्यक्ष ने ट्वीट किया और कहा कि दोनों पार्टियों के बीच सिटों के बटवारे को लेकर सहमति बन गई है।
प्रसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जी से मुलाक़ात हुई और गठबंधन की बात तय हुई।
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) December 16, 2021
क्षेत्रीय दलों को साथ लेने की नीति सपा को निरंतर मजबूत कर रही है और सपा और अन्य सहयोगियों को ऐतिहासिक जीत की ओर ले जा रही है। #बाइस_में_बाइसिकलpic.twitter.com/x3k5wWX09A
2016 से चाचा-भतीजा के रास्ते थे अलग
2017 के विधानसभा चुनाव से पहले ही सत्ता और संगठन को लेकर 2016 में अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल के बीच तनाव शुरू हो गया था। उस समय यूपी के सीएम अखिलेश यादव थे और तत्कालीन कैबिनेट मंत्री शिवपाल यादव थे। इस बीच विधानसभा चुनाव से ऐन पहले एक जनवरी 2017 को अखिलेश को सपा अध्यक्ष बना दिया गया था। वहीं चुनाव बाद जब शिवपाल को पार्टी में तवज्जो नहीं मिली तो उन्होंने अलग होकर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (प्रसपा) लोहिया का गठन कर लिया था। इसके बाद से दोनों में दूरियां देखने को मिल रही थी।